अचेतन मन की स्थिति को जोड़ें विज्ञान से- प्रो. कालरा
विश्वविद्यालय के विज्ञान प्रसार महोत्सव का समापन विजेता हुए पुरस्कृत कम्युनिटी रेडियो पर हुए साक्षात्कार

आगरा, जागरण संवाददाता। विज्ञान को समझने के लिए अब दायरा बढ़ाने की जरूरत है। परंपरागत विज्ञान के साथ अब उसके दायरे से परे के विषयों पर ध्यान केंद्रित कर अवचेतन मन की स्थिति को भी विज्ञान से जोड़ने की जरूरत है। इसके लिए माइक्रो काशन और मेक्रो काशन के बीच सामंजस्य बनाना जरूरी है। यह कहना था दयालबाग शिक्षण संस्थान के निदेशक प्रो. पीके कालरा का, वे डा. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित सात दिवसीय विज्ञान प्रसार महोत्सव के समापन समारोह में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे।
खंदारी परिसर स्थित आइईटी संस्थान में हुए समापन समारोह में प्रो. कालरा ने कहा कि प्राचीन काल में हमारा विज्ञान शास्त्र इसलिए सर्वोच्च स्तर पर था, क्योंकि उस समय ध्यान और आध्यात्मिक शक्तियों को विज्ञान से जोड़कर ही खोज की जाती थी। आज तरक्की पाने के लिए उसी दिशा में सोचने की आवश्यकता है। जीवन की भौतिक आवश्यकताओं को सीमित कर ज्ञान की आवश्यकता बढ़ाने से ही क्वालिटी आफ लाइफ प्राप्त की जा सकती है। कार्यवाहक कुलपति प्रो. विनय कुमार पाठक का कहना था कि विश्व की उत्पत्ति कैसे हुई और यह कैसे काम करता है, इसको लेकर तमाम शोध चल रहे हैं, लेकिन इस रहस्य और इस थ्योरी की खोज भारत में ध्यान के माध्यम से सदियों पहले हो चुकी है। यही स्थिति गाड पार्टिकल थ्योरी को लेकर है, उस शोध पर भी भारतीय वैज्ञानिक एसएन बोस के हस्ताक्षर हुए थे। क्वांटम थ्योरी में भी रुद्र तांडव की प्रतिमा विद्यमान होती है। ऐसा इसलिए क्योंकि विश्व की उत्पति का राज कहां छिपा है, भारत पहले ही तलाश चुका था।
समारोह में सात दिन में हुई विभिन्न प्रतियोगिताओं के विजेताओं को पुरस्कृत किया गया। विवि के कम्युनिटी रेडियो में विजेताओं के साक्षात्कार हुए। साक्षात्कार प्रोग्रामिग हेड पूजा सक्सेना ने लिए। विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रति कुलपति प्रो. अजय तनेजा, डीन अकादमिक प्रो. संजीव कुमार, प्रो. वीके सारस्वत उपस्थित रहे। प्रो. संजय चौधरी, लेफ्टी. डा. रीता निगम, डा. रचिता शर्मा, डा. अंकुर गुप्ता, डा. आरके अग्निहोत्री, डा. देवेंद्र कुमार, प्रो. इंदु जोशी, डा. एसके जैन आदि ने सहयोग दिया।
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