अब गर्भ निरोधक गोलियों से हो रहा महिलाओं की इस घातक बीमारी का इलाज
गर्भ धारण के लिए घातक पीसीओएस बीमारी के इलाज के लिए हो रहा गोलियों का इस्तेमाल। चिकित्सक बता रहे सुरक्षित लेकिन बीमारी की अनदेखी हो सकती है खतरनाक।
आगरा [तनु गुप्ता]: जीवन की आपाधापी में बदली लाइफ स्टाइल से होने वाली घातक बीमारी लाइफ को बुरी तरह प्रभावित कर सकती है। घातक बीमारी से पीडि़त महिला भविष्य में गर्भ धारण कर सके इसके लिए गर्भ निरोधक गोलियों से ही इसका इलाज ढूंढा गया है। महिला चिकित्सक इस इलाज को सुरक्षित भी मानती हैं लेकिन इसके साथ ही कैल्शियम देना भी नहीं भूलतीं।
14 से 40 वर्ष तक की उम्र में होने वाली पीसीओएस बीमारी के बारे में वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. अभिलाषा प्रकाश का कहना है कि खराब लाइफ स्टाइल के कारण होने वाली यह परेशानी पूरी लाइफ को परेशान कर सकती है। इसलिये पहले तो बचाव की ही सलाह दी जाती है लेकिन यदि बीमारी अपनी चपेट में ले ही ले तो इसका समय पर इलाज बेहद जरूरी हो जाता है। डॉ. अभिलाषा कहती हैं कि यह सही है कि गर्भ निरोधक दवाओं से पीसीओएस का इलाज किया जाता है लेकिन यह पूरी तरह सुरक्षित हैं। 16 वर्ष की उम्र के बाद ही यह दवाएं दी जाती हैं ताकि किशोरियों के शारीरिक विकास पर असर न पड़े।
किन दवाओं की दी जा रही सलाह
डॉ. अभिलाषा ने बताया कि सबसे पहले किशोरी का अल्ट्रासाउंड और ब्लड टेस्ट कराया जाता है। यदि अल्ट्रासाउंड में पॉलीसिस्टिक ओवरी आती है और ब्लड टेस्ट में हार्मोनल डिस्टर्बेंस होता है तो पीसीओएस का इलाज शुरू किया जाता है। सबसे पहले माहावारी नियमित की जाती है। साइप्रोटिरोन एसिटेड सॉल्ट वाली दवा नौ माह तक दी जाती है। इसके अलावा माइलो आइनो सिटोल के साथ डी चाइरो सॉल्ट की दवाएं चलती हैं। दवाओं के साथ एक्सरसाइज, मॉर्निंग वॉक और योगा एवं साथ ही फास्ट फूड से परहेज रखने की सलाह भी दी जाती है।
क्या है पीसीओएस और इसके लक्षण
डॉ. अभिलाषा के अनुसार पीसीओएस यानी पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम महिलाओं में होने वाली एक तरह की बीमारी है। बदलती लाइफस्टाइल और कई कारणों से आजकल कम उम्र में ही महिलाएं इस बीमारी की शिकार हो रही हैं। पीसीओएस एक ऐसी बीमारी है, जिसमें महिलाओं के सेक्स हार्मोंस संतुलित नहीं रहते। इसके कारण ओवरी में सिस्ट यानी छोटी-छोटी फोडिय़ां हो जाती हैं। ये सिस्ट छोटी-छोटी थैलीनुमा रचनाएं होती हैं, जिनमें तरल पदार्थ भरा होता है। ओवरी में ये जमा होती रहती हैं और इनका आकार भी धीरे-धीरे बढ़ता चला जाता है। इसी स्थिति को पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम कहते हैं। इस बीमारी मेंं इस बीमारी से पीडि़त महिला में टेस्टोस्टेरोन हार्मोन का स्तर बढ़ रहा है।
एसएन में बढ़े मामले
एसएन मेडिकल कॉलेज की ओपीडी में दस से 15 फीसद 15 से 45 की उम्र में पीडि़त महिलाएं पहुंच रही हैं। इसमें छात्राओं की संख्या अधिक है।
पीसीओएस के लक्षण
अनियमित माहवारी
पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम का सबसे प्रमुख लक्षण है अनियमित माहवारी। इससे ग्रसित महिलाओं या लड़कियों को वर्ष में बहुत कम पीरियड्स होते हैं। कुछ मामलों में अधिक रक्त स्त्राव की समस्या तो कुछ महिलाओं में मासिक धर्म के रुक जाने की समस्या हो जाती है।
मुंहासे
कई बार चेहरे पर मुंहासे निकल आते हैं। आमतौर पर हर बार मुंहासे निकलने को पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम से जोड़कर नहीं देखा जा सकता।
बढ़ता वजन
पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम का एक लक्षण ये भी है कि इसमें पीडि़त का शरीर मोटा होने लगता है। हाथ पैर पतले और सेंट्रल ओवेसिटी की परेशानी हो जाती है।
चेहरे पर बाल
पीसीओएस से पीडि़त महिला के चेहरे पर मोटे बाल निकल आते हैं। चेहरे पर ही नहीं, बल्कि पेट के निचले हिस्से, चेस्ट और पीठ पर भी बाल निकलने लगते हैं।
डिप्रेशन
पीसीओएस से पीडि़त महिला कई बार डिप्रेशन की शिकार हो जाती है। इस तरह के लक्षण दिखने पर डॉक्टर से तुरंत संपर्क करें।
गर्भधारण में पीसीओएस बनता है बाधक
किशोरावस्था में होने वाली यह बीमारी विवाह के बाद परिवार बढ़ाने में सबसे बड़ी मुश्किल बनती है। इससे पीडि़त महिला गर्भ बहुत मुश्किल से धारण करती है। यदि गर्भ ठहर भी जाए तो गर्भ का रुकना मुश्किल होता है।
खानपान में करें बदलाव
पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम से निजात पाने के लिए सबसे पहले आपको अपने खानपान में बदलाव करना पड़ेगा। फलों का ज्यादा से ज्यादा सेवन करें। हरी सब्जिय़ां खाएं। अनाज का सेवन बढ़ा दें और ड्राईफ्रूट्स रोजाना की खुराक में शामिल करें।
ये भूलकर भी न खाएं
बहुत ज्यादा मीट, चीज और फ्राइड फूड खाने से बचें। इससे वजन बढ़ता है और पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम का खतरा भी रहता है।
क्यों होता है कम उम्र में पीसीओएस?
चिकित्सकों के अनुसार, पिछले 10-15 सालों में यह बीमारी किशोरियों में ज्यादा होने लगी है। पहले यह 30 वर्ष से ज्यादा उम्र वाली महिलाओं में होती थी लेकिन अब इसकी शुरुआत 14 वर्ष में ही हो जाती है।
खराब डायट
जंक फूड, जैसे- पिज्जा, बर्गर आदि शरीर को नुकसान पहुंचाते हैं। बहुत ज़्यादा ऑयली, मीठा और वसायुक्त भोजन भी इस बीमारी का कारण है।
मोटापा
जंक फूड खाने, पूरा दिन स्कूल या घर में बैठे रहने और मोबाइल, लैपटॉप, कंप्यूटर, वीडियो गेम से चिपके रहने के कारण कम उम्र की लड़कियों का वजन बढऩे लगता है और यही बढ़ा हुआ वजन इस बीमारी का कारण बन जाता है।
ख़तरनाक हो सकता है पीसीओएस
कुछ महिलाओं में पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम के कारण कई बार हाई कोलेस्ट्रॉल, हाइपर टेंशन, ब्रेस्ट कैंसर, डायबिटीज आदि बीमारियां भी देखने को मिलती हैं।