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    देवी की टेढ़ी प्रतिमा नवमी पर हो जाती है सीधी, जानें कहां निभाई जाती है 750 वर्ष पुरानी परंपरा

    By Prateek GuptaEdited By:
    Updated: Fri, 05 Oct 2018 11:54 AM (IST)

    वर्ष भर टेढ़ी रहने वाली देवी प्रतिमा राम नवमी पर हो जाती है सीधी। नरी सेमरी माता में निभाई जाती है अनूठी परंपरा। हर वर्ष लगता है यहां मेला। मेले में होता है कई रेल गाडि़यों का विशेष ठहराव।

    देवी की टेढ़ी प्रतिमा नवमी पर हो जाती है सीधी, जानें कहां निभाई जाती है 750 वर्ष पुरानी परंपरा

    आगरा [नंदराम राजपूत]। रामनवमी के दिन जब हम उपासना, साधना करके देवी मां की पूजा अर्चना कर मनौतियां मांग रहे होते हैं, तब मथुरा के विकास खंड चौमुहां के गांव नरी सेमरी मैया की लठ्ठों से पीट-पीट कर पूजा करके अनूठी पंरपरा निभाई जाती है। छाता तहसील में राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित नरी सेमरी देवी मंदिर का ये अनूठा इतिहास करीब 750 साल पुराना है।

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    क्या है लटठों से पूजा की परंपरा

    नरी, सांखी, अलवाई, रहेडा गांव के क्षत्रिय देवी मां की लटठों से पूजा करते हैं। ये क्षत्रिय लोग घोडों पर सवार होकर सज धज करके आंधी की तरह आते हैं और तूफान की तरह चले जाते हैं। घोड़ों की टाप से पूरे मेला में सन्नाटा छा जाता है। पुलिस प्रशासन भीड़ को तितर बितर कर देते, मां के दर्शनों को लगी लंबी- लंबी कतारों में खड़े श्रद्धालुओं की दृश्य देखकर सांस थम जाती है। यहां अलग- अलग गांवों के लोग अलग- अलग समय में आते हैं मंदिर में घुसकर देवी मंदिर के दरवाजे पर जमकर लाठियां भांजते हैं, प्रसाद लेते हैं और चले जाते हैं।

    शौर्य से जुड़ी है ये परंपरा

    इस पंरपरा के विरोध में भी कई बार सुर भी उठे मगर यहां के लोग इसे शौर्य प्रदर्शन से जोड़ते हैं। इस अजीब पूजा अर्चना को देखकर हर कोई स्तब्ध रह जाता है। इस पूजा को देखने के लिए काफी दूर दराज के लोग आते हैं।

    नवमी के दिन होती है प्रतिमा सीधी

    पुजारी हरि बौहरे व दीप चंद जादौन कहते हैं कि प्रथम विशेषता ये है कि देवी मां की प्रतिमा सदैव झुकी सी रहती है मगर रामनवमी के दिन प्रतिमा एकदम सीधी दिखाई देती है। यहां सिसौदिया- जादौन घार के मध्य सीमा विवाद हुआ था तब ब्रिटिश हुकुमत में यहां सात लोगों को खुलेआम फांसी की सजा दी गई थी।

    विशेष पूजा

    चैत्र माह की अमावस्या के बाद नरी सेमरी में तीज के दिन आगरा के ध्यानू (धांधू )भगत के वंशज विशेष पूजा अर्चना के दौरान आरती करते हैं। आरती के दीपक के ऊपर एक सफेद चादर तानी जाती है। इसमें विशेषता यह रहती है कि दीपक की लौ कपड़े को पार करके ऊपर निकल जाती है मगर कपड़ा नहीं जलता है। वहीं तीज के दिन नगरकोट में संध्या आरती नहीं होती है। ऐसा विश्वास है कि इस दिन मां नगरकोट से चलकर यहां विराजती हैं।

    क्या है लोक मान्यता

    लोक मान्यता है कि आगरा के ध्यानू (धांधू) भगत नगरकोट (कांगड़ा हिमाचल प्रदेश)वाली देवी का अनन्य भक्त था। उसने पूजा अर्चना कर देवी मां को प्रसन्न कर लिया था और वरदान में देवी मां को अपने साथ आगरा चलने की शर्त रख दी थी, मगर देवी मां ने कहा कि पीछे मुड़कर मत देखना अगर जहां देख लिया वहां से आगे नहीं जाऊंगी। ध्यानू नगरकोट से चलकर नरी सेमरी आ गया मगर उसने यहां पीछे मुड़कर देख लिया। तभी से मां यहां विराजमान हैं।

    बाद में गांव के अजीता सिंह बाबा को जमीन से देवी की प्रतिमा प्राप्त हुई, तब यहां दद्दी देवी मां के भगत बने। सिसौदिया व जादौं घार के बीच सीमा विवाद को लेकर काफी संघर्ष हुआ था। तभी से यहां ल_ पूजा की पंरपरा चली आ रही है। मंदिर करीब 28 एकड़ बना में है। दिल्ली से नरी सेमरी करीब 115 तथा आगरा से 85 किलोमीटर दूरी पर है। मेले के दौरान यहां रेलवे का हाल्ट स्टेशन बनता है जहां कई मेल गाडिय़ों का विशेष ठहराव होता है।

     

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