बटेश्वर: यहां उल्टी दिशा में बहती हैं यमुना जी, सतयुग और द्वापर युग की हैं ऐतिहासिक धरोहर
बटेश्वर, यमुना नदी के किनारे बसा, भगवान शिव की नगरी है और राजा सूरसेन की राजधानी रहा है। यहाँ महादेव मंदिरों की शृंखला और जैन मंदिर हैं। सतयुग, त्रेता और द्वापर युग का इतिहास यहाँ छिपा है। महाभारत काल में वसुदेव की बारात यहाँ से गुजरी थी, और पांडवों ने अज्ञातवास में यहाँ सैन्य तैयारी की थी। मराठाओं की स्मृति में यहाँ एक विशाल मंदिर भी बना है।

बटेश्वर की फाइल फोटो।
बबलू यादव l जागरण बाह: आगरा से 75 और बाह से 12 किलोमीटर उत्तर दिशा में यमुना नदी के किनारे बसी बाबा भोलेनाथ नाथ की नगरी बटेश्वर धाम। यह भगवान श्रीकृष्ण के पूर्वज राजा सूरसेन की राजधानी रही। यमुना किनारे महादेव मंदिरों की अद्भुत शृंखला, शौरीपुर के ऐतिहासिक जैन मंदिर, भगवान नेमिनाथ की गर्भ और जन्मस्थली का गौरव हासिल है। जहां सतयुग, त्रेता और द्वापर युग का इतिहास छुपा हुआ है। यहां कार्तिक में हर साल विशाल पशु और लोक मेला का आयोजन होता है। पूर्णिमा के विशेष स्नान पर यहां लाखों श्रद्धालुओं आते है।
पुराणाें में है उल्लेख
पुराणों में उल्लेख है कि महाभारत काल में वसुदेव की बरात बटेश्वर से मथुरा गई थी। श्रीकृष्ण द्वारा कंस का वध करने के बाद उसका पार्थिव शरीर बटेश्वर में यमुना नदी के जिस किनारे से टकराया, उस स्थान को कंस करार नाम दिया गया। यह साक्ष्य आज भी मौजूद है। अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने भी सैन्य तैयारी बटेश्वर व शौरीपुर में रहकर की थी। बटेश्वर शेरशाह सूरी का भी आक्रमण केंद्र रहा, उसने यहां पर किले भी बनवाएं थे।
पानीपत के तीसरे युद्ध में वीरगति प्राप्त की। हजारों मराठाओं की स्मृति में मराठा सम्राट मारू शंकर ने बटेश्वर में एक विशाल मंदिर बनवाया, जो उनकी वीर गाथा अब भी सुना रहा है। इस मंदिर में वीर योद्धाओं को दीप जलाकर श्रद्धांजलि दी जाती है। दीपक रखने के निशान यहां देखे जा सकते हैं।
उल्टी दिशा में बहती हैं यमुना जी
यमुना नदी पश्चिम से पूर्व की दिशा की ओर बह रही है, लेकिन बटेश्वर नगरी में यह पूरब से पश्चिम दिशा की ओर बहती हुई बटेश्वर का चक्कर लगाती है। यह आकृति अर्द्धचंद्राकार का रूप लेती हुई बह रही है। कार्तिक पूर्णिमा पर चंद्रमा का प्रकाश जब तट पर बनी 101 महादेव मंदिरों की शृंखला पर पड़ता है, तो मंदिरों का प्रतिबिंब यमुना में स्पष्ट झलकता है। यह अलौकिक पल श्रद्धालुओं को रोमांचित करता है। हालांकि अब दर्जनों मंदिर व घाट ध्वस्त हो चुके हैं। उन्हें पर्यटन विभाग द्वारा संरक्षित किया जा रहा है। कार्तिक पूर्णिमा पर जिला पंचायत इनकी रंगी पुताई आदि का कार्य कराती है।

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