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    काबुल में दफन होने से पहले छह महीने तक रखा रहा था बादशाह बाबर का शरीर, वो जगह है आज भी

    By Prateek GuptaEdited By:
    Updated: Sat, 21 Nov 2020 12:24 PM (IST)

    काबुल से पहले चौबुर्जी में हुआ था बाबर का दफन। यमुना ब्रिज स्टेशन पर स्थित स्मारक है उपेक्षा का शिकार। स्मारक पर लगा है ताला आसपास हो गए अवैध निर्माण। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित स्मारक चौबुर्जी है। यह स्मारक संरक्षित तो है लेकिन उपेक्षित है।

    आगरा में चौबुर्जी, जहां बाबर के शव को रखा गया था।

    आगरा, निर्लोष कुमार। भारत में मुगल वंश की स्थापना करने वाले बाबर का मकबरा काबुल में है। इतिहास के पन्ने उलटने पर पता चलता है कि काबुल में दफनाने से पूर्व बाबर का दफन आगरा में चौबुर्जी में किया गया था। यमुना पार स्थित यह स्मारक उपेक्षा का शिकार है और पर्यटकों को इसके बारे में जानकारी नहीं मिलती।

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    वर्ष 1526 में पानीपत के युद्ध में इब्राहीम लोदी को हराने के बाद बाबर ने आगरा का रुख किया था। उसने यमुना पार चारबाग और आराम बाग बनवाए थे। वर्तमान में चारबाग का अस्तित्व तो नहीं बचा है, लेकिन यहां यमुना ब्रिज स्टेशन रोड पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित स्मारक चौबुर्जी है। यह स्मारक संरक्षित तो है, लेकिन उपेक्षित है। इसके गेट पर ताला लगा रहता है, अगर कोई पर्यटक स्मारक देखना भी चाहे तो देख नहीं सकता है। इतिहासविद राजकिशोर राजे बताते हैं कि वर्ष 1530 में बाबर की मृत्यु के बाद उसके शव को यहां दफनाया गया था। छह माह बाद उसके शव को काबुल ले जाकर दफन किया गया था।

    कार्लायल ने बताया था मोतीबाग का हिस्सा

    कार्लायल ने रामबाग को बाबर का दफन स्थान बताया था। उसने चौबुर्जी को शाहजहां द्वारा स्थापित मोतीबाग में बना हुआ बताया था। कार्लायल के अनुसार इस स्थान का उपयोग ब्रिटिश लोग निवास स्थान के रूप में करते थे। आयताकार प्लान, उठा हुआ प्लेटफार्म, मेहराब का आकारा, कोनों पर जुड़ी हुई मीनारों से यह एत्माद्दौला की प्रतिकृति सा नजर आता है। अंतर सिर्फ एत्माद्दौला का संगमरमर और चौबुर्जी का रेड सैंड स्टोन से बना होना है।

    मुमताज के हुए थे तीन दफन

    बाबर के दो तो मुमताज के तीन दफन हुए थे। मुमताज की मृत्यु बुरहानपुर में हुई थी। उसका पहला दफन वहीं हुआ था। छह माह बाद उसके शव को बुरहानपुर से आगरा लाया गया था। ताजमहल में शाही मस्जिद के निकट उद्यान में बने जिलाऊखाना में उसका दूसरा दफन किया गया था। उसका तीसरा दफन ताजमहल में वर्तमान जगह में हुआ था।