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    Taj Mahal Controversy: नीलाम तक हो चुका है ताजमहल, मथुरा के सेठ लक्ष्मीचंद्र ने सात लाख रुपये में खरीद ली थी प्रेम की निशानी

    By Tanu GuptaEdited By:
    Updated: Fri, 13 May 2022 06:02 PM (IST)

    Taj Mahal Controversy ब्रिटिशर्स के नियंत्रण में आगरा वर्ष 1803 में आया था। ब्रिटिश काल में वायसराय लार्ड विलियम बैंटिक के समय की गई थी स्मारक की नीला ...और पढ़ें

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    Taj Mahal Controversy: मथुरा के एक सेठ खरीद चुके हैं ताजमहल को।

    आगरा, निर्लोष कुमार। ताजमहल के बंद तहखाने को खुलवाने को दायर याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच खारिज कर चुकी है। इन दिनों ताजमहल और उससे जुड़े रहस्य एक बार फिर चर्चाओं में हैं। इन्हीं में से एक वाकया ताजमहल की नीलामी का है। ब्रिटिश काल में ताजमहल को नीलामी में मथुरा के सेठ लक्ष्मीचंद्र ने सात लाख रुपये की बोली लगाकर खरीद लिया था। हालांकि, विरोध के चलते नीलामी को स्थगित कर दिया गया था, जिससे ताजमहल बच गया।

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    ब्रिटिशर्स के नियंत्रण में आगरा वर्ष 1803 में आया था। भारतीय व अंग्रेजी लेखकों ने अपनी किताबों में ताजमहल की नीलामी का उल्लेख किया है। रामनाथ ने किताब "द ताजमहल'''' और ब्रिटिश लेखक एचजी केन्स ने "आगरा एंड नेवरहुड्स'''' में इसका जिक्र किया है। वर्ष 1828 से 1835 तक लार्ड विलियम बैंटिक भारत में वायसराय रहे थे। वह चाहते थे ताजमहल की खूबसूरत पच्चीकारी के पत्थरों को तोड़कर उनकी बिक्री कर सरकारी खजाने को भरा जाए। उनके समय में भारत की राजधानी रहे काेलकाता से प्रकाशित होने वाले अंग्रेजी अखबार में 26 जुलाई, 1831 को ताजमहल की नीलामी का विज्ञापन छपा था। नीलामी में राजस्थान व मथुरा के सेठों ने बोलियां लगाईं। मथुरा के सेठ लक्ष्मीचंद्र ने सात लाख रुपये की बोली लगाकर ताजमहल खरीद लिया।

    ताजमहल तोड़कर उसके कीमती पत्थरों को लंदन ले जाकर बेचने पर अधिक धन खर्च होने की वजह से बैंटिक ने नीलामी को स्थगित कर दिया। बाद में उसने एक बार फिर ताजमहल की नीलामी की, जिसमें सेठों के साथ ब्रिटिशर्स को भी आमंत्रित किया गया। इससे पूर्व ही भारत से लंदन गए किसी सैनिक ने लंदन असेंबली में शिकायत कर दी। विरोध के चलते वायसराय को नीलामी रोकने को कहा गया। इससे ताजमहल बच गया। हालांकि, कुछ इतिहासकारों ने ताजमहल की नीलामी को अफवाह बताया है।

    उन्होंने अपनी पुस्तकों में लिखा है कि ताजमहल के आसपास जीर्ण-शीर्ण भवनों व हवेलियों को तोड़कर खेती के लिए समतल किया गया था। इतिहासविद् राजकिशाेर राजे का कहना है कि बैंटिक ने ताजमहल के पत्थरों को बेचकर धन कमाने के लिए नीलामी कराई थी। ब्रिटिश काल में दाराशिकोह की हवेली को भी नीलाम किया गया था। ताजमहल की किस्मत अच्छी थी, जो वह बच गया।