Street Food: राजस्थानी दाल-बाटी का स्वाद महका रहा है ताजनगरी को, वैराइटी भी हैं भरपूर
Street Food फ्राइड दालबाटी सादा दालबाटी भरेंवां दालबाटी कंडे वाली और ओवन वाली दालबाटी आगरा में उपलब्ध हैं। इसके साथ चना उडद की दाल आलू की सूखी सब्जी पुदीना की चटनी और नींबू परोसा जाता है। जो इसे सुपाच्य बनाता है।

आगरा, जागरण संवाददाता। वैसे तो दालबाटी का जायका राजस्थान से इजाद हुआ, लेकिन आगरा में भी इसके प्रति दीवानगी कम नहीं है। शहर के प्रमुख मिष्ठान विक्रेताओं से लेकर संजय प्लेस जैसे व्यावसायिक हब और पुराने किनारी व जौहरी बाजार तक में इस शानदार व्यंजन का स्वाद लोगों को खूब भाता है।
सावन के महीने में इसे इसलिए भी खाया जाता है क्योंकि गेहूं के आटे, सूजी और बेसन से तैयार बाटी में मसालों की भरावन की जाती है। इसे चना व उडद की दाल के साथ आलू और नींबू की तासीर साथ मिलकर इसे उमस व गर्मी भरे मौसम में भी सुपाच्य बना देते हैं।
पुरानी पसंद है इसका स्वाद
ब्रजभोग व ब्रज रसायनम के संचालक राजेंद्र कुमार गुप्ता बताते हैं कि उनके मोती कटरा स्थित प्रतिष्ठान पर दालबाटी वर्ष 987 से मिलती है। वह खुद राजस्थान से हैं, इसलिए उन्होंने वहां के खाने को अपनी मिठाई की दुकान पर प्रयोग के तौर पर शुरू किया, तो उसका स्वाद लोगों को खूब भाया। तब वह तीन रूपये की एक बाटी बेचते थे, जो बदलते समय और महंगाई के कारण 50 रुपये एक तक पहुंच गई है।
कई तरह की है दालबाटी
आमतौर पर लोग सोचते होंगे की दालबाटी तो दालबाटी है। स्वाद के शौकिनों ने इसके भी कई प्रकार तैयार कर दिए हैं। आगरा में वर्तमान में फ्राइड दालबाटी, सादा दालबाटी, भरेंवां दालबाटी, कंडे वाली और ओवन वाली दालबाटी उपलब्ध हैं। इसके साथ चना उडद की दाल, आलू की सूखी सब्जी, पुदीना की चटनी और नींबू परोसा जाता है, जिसका स्वाद अलग ही जायका देता है। इसके साथ पूर्वांचल व बिहार का लिट्टी-चोखा भी खूब प्रचलित है।
यहां का स्वाद है खास
पुराने शहर में मोती कटरा, शाह मार्केट, बेलनगंज, सेठ गली, संजय प्लेस, जौहरी बाजार, किनारी बाजार, फुलट्टी, कमला नगर, शास्त्रीपुरम आदि इलाकों में भी प्रमुख मिष्ठान विक्रेताओं से लेकर अलग काउंटर पर भी यह आसानी से उपलब्ध हैं।
तमाम संगठन करते हैं दाल-बाटी का आयोजन
सावन के महीने में तमाम व्यापारकि और सामाजिक संगठन अपने बैनर तले दाल-बाटी भेज का आयोजन करते हैं। जिसमें आगंतुकों को पूरी-कचौडी या अन्य पकवानों के स्थान पर दाल-बाटी और चूरमा के लडडू ही परोसे जाते हैं।
यह है राजस्थानी मान्यता
दालबाटी को लेकर राजस्थानी मान्यता है कि जब राजपूत लड़ाके युद्ध के लिए जाते थे तो रेगिस्तान में भटकने से बचने के लिए बाटी का प्रयोग किया करते थे। जाते वक्त वह आटे की बाटी बनाकर रेत में डाल दिया करते थे और लौटते में अपने भाले से निशाना लगाकर उन्हें रेत से निकालते लाते थे। तपती रेत में वह अच्छी तरह पक जाती थी। छावनी पर उसके साथ खाने को दाल बनी होती थी, जिससे साथ सैनिक इसका भाेजन करते थे। सैनिकों का इससे पेट भी भर जाता था और वह मार्ग से भटकते भी नहीं थे।

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