अंगिरा की भूमि: विश्व ताप से मुक्ति हितार्थ जप-तप में लीन
झरना नाला के पास है भगवान बाला जी का मंदिर। मंदिर मेंहदीपुर बाला जी का रेप्लिका है। 40 दिन से कठोर तप पर रहे यहां के महंत।
आगरा, अजय शुक्ला। ब्रजभूमि से बाहर जब यमुना तट पर बसे आगरा जिले का जिक्र चलता है तो जेहन में दो ही बातें उभरती हैं, ताजमहल और मुगल सल्तनत की राजधानी। लेकिन, यह महज कुछ सदियों का सच है। यमुना किनारे आबाद पिनाहट, बसई, निबोहरा, मोतीपुरा, खैरागढ़, बल्केश्वर, रुनकता, सिकंदरा, मांगारौल, पोइया, कचौरा, पारना, तनौरा के इतिहास की गहराइयों में जाइए तो न केवल इसकी प्राचीनता के दर्शन होंगे बल्कि इसका भी सहज साक्षात्कार होगा कि आखिर क्यों भगवान कृष्ण की भक्ति और विचारधारा इस प्राचीन नगर से निकलकर यूरोप-अमेरिका तक आज लोगों को सम्मोहित कर रही है। महर्षि जमदग्नि, महर्षि अंगिरा (एक विचार यह भी है कि आगरा का नाम उन्हीं के नाम पर पड़ा), च्यवनप्राश का फार्मूला खोजने वाले च्यवन ऋषि, श्रंगी ऋषि की यह तपोभूमि आज भी लोक का ताप मिटाकर जनकल्याण और विश्व शांति के लिए साधनारत है। बाहर से आने वाले पर्यटकों को महर्षि अंगिरा की भूमि का यह रंग शायद ही दिखे लेकिन जब आप यमुना के किनारों से लेकर सूख चुकी उटंगन नदी और चंबल के बीहड़ों में स्थित गांवों की तरफ दृष्टि का विस्तार करें तो मन को शांति और शीतलता देने वाले यह दृश्य सहज दिख जाएंगे।
सूरज से बरसता 45 से 47 डिग्री का ताप जब वातानुकूलित कक्षों में भी जन-मन को व्याकुल कर रहा हो तो चारों ओर भभकती ज्वाला के बीच तप में लीन किसी दिव्यात्मा को कठिन साधना में रत देख जो दर्शन सुख प्राप्त होता है, वह बाहर ही नहीं भक्त के भीतर के ताप को भी शीतल कर देता है। यह ताप दैहिक, दैविक हो या भौतिक। आगरा-फिरोजाबाद राष्ट्रीय राजमार्ग से तनिक भीतर बायीं ओर ऊबड़-खाबड़ रास्तों से जाकर झरना नाला के पास आपको भगवान बाला जी का मंदिर मिलेगा। यह मंदिर मेंहदीपुर बाला जी का रेप्लिका है। इसे 1008 श्री श्री बालाजी धाम मंदिर कहते हैं। इस मंदिर में उसी भांति भक्तों के संकटों का निवारण किया जाता है। प्राचीनता इतनी कि काल गणना किसी को याद नहीं। हां, समय के साथ यह भव्यता जरूर लेता जा रहा है।
मंदिर से सटे प्रांगण में नाथ सम्प्रदाय के नागा साधु और मंदिर के महंत श्री भगवान भारद्वाज पिछले 40 दिनों से साधनारत हैं। साधना भी ऐसी कि देखते ही आस्था में मस्तक स्वत: नत हो जाए। कोई तीन मीटर व्यास में बने गोलाकार चबूतरे पर महंतश्री जब तप में लीन होते हैं तो प्रत्येक कोण पर गोबर के 21-21 उपलों की 21 ढेरियों से कभी लपट उठ रही होती है, तो कभी ताप ऊष्मा धधक रही होती है। ऐसी ही स्थिति में लंगोटधारी महंतश्री रोजाना तीन घंटे सिर से कंबल ओढ़कर तप में लीन रहते हैं। ऊपर कोई छांव नहीं और नीचे चटाई का आसन। शुक्रवार को इस तप की पूर्णाहुति हो रही है।
महंत जी बताते हैं कि वह 12 वर्ष की उम्र से ही जनकल्याण के लिए साधनारत हैं। यहां सीकर (राजस्थान) से 1995 में आये थे। तब से वह 12-12 वर्षों के खंड में ज्येष्ठ और बैशाख माह में जब सूरज जल रहा होता है और धरती तप रही होती है, तब लोगों के हृदय का ताप मिटाने के लिए 40 दिन की साधना में चले जाते हैं। दो खंडों के बीच वह दो-तीन वर्ष का विराम लगाते हैं। वर्तमान में 12 वर्षीय तप-खंड का यह सातवां वर्ष है। महंत जी बताते हैं कि यह तपस्या शिव आराधना है। भगवान भोलेनाथ ही उनके गुरु हैं और विश्व शांति व जनकल्याण ही लक्ष्य। मंदिर में शनिवार को बाबा की गद्दी भी लगाई जाती है जिसमें वह दूरदराज से आये भक्तों की व्याधियों का निवारण करते हैं। अपनी तप विधि के बारे में वह बताते हैं कि दोपहर 12 से 3 बजे तक तीन घंटे तक पहले वह शिव साधना, फिर गरम साधना और ठंडी साधना करते हैं। तप के दौरान शरीर का जो ताप बढ़ जाता है, उसे शांत करने के लिए मंत्रों द्वारा ठंडी साधना होती है। वे गत चार मई से साधनारत हैं और आज भंडारे के प्रसाद वितरण के साथ यह तप पूर्ण हो रहा है।
मनसुखपुरा में साधनारत भोलेनाथ
भगवान भारद्वाज की तरह ही ब्लाक पिनाहट की ग्राम पंचायत नगला भरी के उप गांव मनसुखपुरा स्थित यमुना के बीहड़ मे गांव से करीब दो सो मीटर दूर स्थित भोले बाबा आश्रम भी इन दिनों बालाजी धाम की तरह क्षेत्रीय आस्था का केंद्र बना है। यहां संत भोले बाबा करीब बीस बर्ष से रहकर तपस्यारत हैं। राजस्थान के धौलपुर जिले के पहाड़ी मरैना गांव के रहने वाले टीकाराम के पुत्र प्रभुशंकर ने बारह बर्ष की आयु में घर छोड़कर वृन्दावन के संत रामानंद सरस्वती से दीक्षा ली और गुरु ने नाम दिया भोलानंद। अब लोग उन्हें भोलेबाबा कहते हैं। देश के सभी तीर्थो का भ्रमण करने और अपने गुरु महाराज के शरीर त्याग के बाद गुरु महाराज के आश्रम भोलेबाबा मनसुखपुरा में आकर भजन करना शुरू कर दिया। भोले बाबा का कहना है कि करीब तीस वर्ष से इसी तरह धूप में तप कर भजन कर रहे हैं। धूप मे तपने का कारण बताते हैं कि शरीर को जितना सुख दो, उतना ही बिगड़ता है। जितना परेशान करो उतना ही इससे मन हटकर प्रभु चरणों मे लगता है। दस वर्षों से लगातार प्रति वर्ष वो यहां धूप में बैठकर तपस्या करते और भागवत का श्रवण करते हैं, जिसमें आसपास के लोग भी शामिल होते हैं। यह क्रम चार महीने मई से अगस्त तक चलता है।
साधनारत हैं महंत अवधूत गिरि
सलेमाबाद हकीमपुरा के रमण बिहारी आश्रम में महंत अवधूत गिरि महराज भी अग्नि के बीच बीते 30 दिनों से साधनारत हैं। उद्देश्य वही है, जनकल्याण व विश्व शांति। महंत अवधूत गिरि महराज मूलत: काशी में वास करते हैं और भक्तों के बुलावे पर जाकर तप-साधना करते हैं। वह 108 उपलों (कंडों) की पांच ढेरियों के बीच तप-साधना करते हैं। 11 बजे से दोपहर दो बजे तक तीन घंटे साधना में बैठते हैं। महंत जी के भक्त डॉ जेएस तोमर बताते हैं कि अवधूत बाबा 14 मई से साधनारत हैं जिसकी पूर्णाहुति 14 जून (शुक्रवार) को होगी। इसी के साथ 168 गांवों का भंडारा होगा।
ग्रामीण क्षेत्रों में बरस रहा भागवद कथा का अमृत
एत्मादपुर का गांव उजरई हो या फतेहपुर सीकरी का मंडी मिर्जा खां, फतेहाबाद का ग्राम खंडेर हो या पिनाहट का गांव पडुआपुरा यहां भरी दोपहरी लगे पंडालों में भागवत कथा का अमृत बरस रहा है। ग्रामीण महिलाएं सुबह का काम निपटाकर शांत भाव से कथा सुनती हैं। ऐसे में न उन्हें गरमी सताती है और न कोई दूसरा ताप। सिर्फ इन्हीं गांवों में नहीं किसी भी कस्बे या बड़े गांव की ओर निकल जाइए यहां लोग प्रभु महिमा के श्रवण में लीन मिल जाएंगें। महर्षि अंगिरा की नगरी का यह अद्भुद रंग बरबस ही मन को आध्यात्म में खींच लेता है।
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