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    Shardiya Navratra 2022: सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा से होता है बुरी शक्तियों का नाश, पढ़ें पूजन कथा

    By Tanu GuptaEdited By:
    Updated: Sat, 01 Oct 2022 02:04 PM (IST)

    Shardiya Navratra 2022 नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की विधि विधान से पूजा करने वाले भक्तों पर माता रानी अपनी कृपा बरसाती हैं। हिंदू मान्यताओं के अनुसार मां कालरात्रि अपने भक्तों को काल से बचाती हैं। अकाल मृत्यु नहीं होती है।

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    Shardiya Navratra 2022: कल है नवरात्रि की सातवीं अधिष्ठात्री देवी कालरात्रि का दिन।

    आगरा, तनु गुप्ता। नवरात्रि की सप्तमी तिथि में मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। मां कालरात्रि की पूजा करने से जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं। मां कालरात्रि की पूजा से शनिदेव भी शांत होते हैं। धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी के अनुसार शारदीय नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि का पूजन किया जाता है। इस दिन साधक का मन सहस्रार चक्र में स्थित होता है।

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    कैसा है मां कालरात्रि का स्वरूप

    ये दुष्टों का संहार करती हैं। इनका रंग काला है और ये तीन नेत्रधारी हैं। मां के केश खुले हुए हैं और गले में मुंड की माला धारण करती हैं। इनके हाथों में खड्ग और कांटा है और गधा इनका वाहन है। मां कालरात्रि की 4 भुजाएं हैं। इनका रूप देखने में अत्यंत भयंकर है परंतु ये अपने भक्तों को हमेशा शुभ फल प्रदान करती हैंए इसलिए इन्हें शुभंकरी भी कहा जाता है। देवी कालात्रि को व्यापक रूप से माता देवी काली, महाकाली, भद्रकाली, भैरवी, रुद्रानी, चामुंडा, चंडी और दुर्गा के कई विनाशकारी रूपों में से एक माना जाता है। रौद्री और धुमोरना देवी कालात्री के अन्य कम प्रसिद्ध नामों में हैं। माना जाता है कि देवी के इस रूप में सभी राक्षस, भूत, प्रेत, पिसाच और नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश होता है।

    मां कालरात्रि कथा

    एक पौराणिक कथा के अनुसार एक रक्तबीज नाम का राक्षस था। मनुष्य के साथ देवता भी इससे परेशान थे। रक्तबीज दानव की विशेषता यह थी कि जैसे ही उसके रक्त की बूंद धरती पर गिरती तो उसके जैसा एक और दानव बन जाता था। इस राक्षस से परेशान होकर समस्या का हल जानने सभी देवता भगवान शिव के पास पहुंचे। भगवान शिव को ज्ञात था कि इस दानव का अंत माता पार्वती कर सकती हैं। भगवान शिव ने माता से अनुरोध किया। इसके बाद मां पार्वती ने स्वंय शक्ति व तेज से मां कालरात्रि को उत्पन्न किया। इसके बाद जब मां दुर्गा ने दैत्य रक्तबीज का अंत किया और उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को मां कालरात्रि ने जमीन पर गिरने से पहले ही अपने मुख में भर लिया। इस रूप में मां पार्वती कालरात्रि कहलाई।

    कालरात्रि माता की पूजा विधि

    − मां कालरात्रि की पूजा के लिए सुबह चार से 6 बजे तक का समय उत्तम माना जाता है।

    − इस दिन प्रातः जल्दी स्नानादि करके मां की पूजा के लिए लाल रंग के कपड़े पहनने चाहिए।

    − इसके बाद मां के समक्ष दीपक प्रज्वलित करें।

    − अब फल- फूल मिष्ठान आदि से विधिपूर्वक मां कालरात्रि का पूजन करें।

    − पूजा के समय मंत्र जाप करना चाहिए तत्पश्चात मां कालरात्रि की आरती करनी चाहिए।

    − इस दिन काली चालीसा, सिद्धकुंजिका स्तोत्र, अर्गला स्तोत्रम आदि चीजों का पाठ करना चाहिए।

    − इसके अलावा सप्तमी की रात्रि में तिल के तेल या सरसों के तेल की अखंड ज्योति भी जलानी चाहिए।

    मां कालरात्रि आराधना मंत्र

    जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।

    दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तु ते।