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Shardiya Navratri 2022: नवरात्रि का कल है छठवां दिन, मनवांछित वर पाने के लिए मां कात्यायनी की करें पूजा, यहां पढ़ें माता की कथा और बीज मंत्र

Shardiya Navratri 2022 कल नवरात्रि की छठवीं अधिष्ठात्री देवी कात्यायनी माता का पूजन होगा। ऋषि कात्यायन के तप से प्रसन्न होकर माता ने लिया था घर में जन्म। कुंडली में वैवाहिक योग न होने पर भी मां कात्यायनी की आराधना देती है वैवाहिक सुख।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Fri, 30 Sep 2022 12:14 PM (IST)Updated: Fri, 30 Sep 2022 12:14 PM (IST)
Shardiya Navratri 2022: नवरात्रि का कल है छठवां दिन, मनवांछित वर पाने के लिए मां कात्यायनी की करें पूजा, यहां पढ़ें माता की कथा और बीज मंत्र
Shardiya Navratri 2022: कल है माता कात्यायनी की पूजा का दिन।

आगरा, तनु गुप्ता। नवरात्रि के छठवें दिन मां कात्यायनी की पूजा करने का विधान है। मां कात्यायनी ने महिषासुर नाम के असुर का वध किया था। जिस कारण मां कात्यायनी को दानवों, असुरों और पापियों का नाश करने वाली देवी कहा जाता है। मान्यता है कि महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति मां दुर्गा ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया। जिससे उनका नाम कात्यायनी विख्यात हुआ।

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धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी के अनुसार मां कात्यायनी का शरीर स्वर्ण की तरह चमकीला है। मां कात्यायनी को शहद और शहद से बनी चीजें और पान का भाेग लगाया जाता है। इस दिन विधि विधान से माता की पूजा अर्चना करने से सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। मां कात्यायनी बृज मंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं। माता का वृदांवन में भव्य मंदिर भी है। इन्हें युद्ध की देवी भी कहा जाता है। माता को पीला रंग अत्यंग प्रिय है। इस दिन पीला वस्त्र धारण करना माता को पीला फूल अर्पित करने और मिष्ठान का भाेग लगाने से मां जल्दी प्रसन्न होती हैं। वैवाहित जीवन के लिए भी माता की पूजा फलदायी मानी गयी है।

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कात्यायनी माता का स्वरूप

मां कात्यायनी देवी का रूप बहुत आकर्षक है। माता का स्वरूप अत्यंत भव्य और दिव्य है। ये स्वर्ण के समान चमकीली हैं। इनकी चार भुजाएं हैं। दाईं तरफ का ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में है तथा नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में। मां के बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार है व नीचे वाले हाथ में कमल का फूल सुशोभित है। मां कात्यायनी का वाहन सिंह है।

मां कात्यायनी की कथा

मां दुर्गा के इस स्वरूप की प्राचीन कथा इस प्रकार है कि एक प्रसिद्ध महर्षि जिनका नाम कात्यायन था, ने भगवती जगदम्बा को पुत्री के रूप में पाने के लिए उनकी कठिन तपस्या की। कई हजार वर्ष कठिन तपस्या के पश्चात् महर्षि कात्यायन के यहां देवी जगदम्बा ने पुत्री रूप में जन्म लिया और कात्यायनी कहलायीं। ये बहुत ही गुणवंती थीं। इनका प्रमुख गुण खोज करना था। इसीलिए वैज्ञानिक युग में देवी कात्यायनी का सर्वाधिक महत्व है।मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं। इस दिन साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित रहता है। योग साधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। इस दिन जातक का मन आज्ञा चक्र में स्थित होने के कारण मां कात्यायनी के सहज रूप से दर्शन प्राप्त होते हैं। साधक इस लोक में रहते हुए अलौकिक तेज से युक्त रहता है।

कात्यायनी देवी पूजा विधि

सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं और फिर साफ- स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें। मां की प्रतिमा को शुद्ध जल या गंगाजल से स्नान कराएं। मां को पीले रंग के वस्त्र अर्पित करें। मां को स्नान कराने के बाद पुष्प अर्पित करें। मां को रोली कुमकुम लगाएं। मां को पांच प्रकार के फल और मिष्ठान का भोग लगाएं। मां कात्यायनी को शहद का भोग अवश्य लगाएं। मां कात्यायनी का अधिक से अधिक ध्यान करें। मां की आरती भी करें।

मां कात्यायनी मंत्र

या देवी सर्वभूतेषु मां कात्यायनी रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥ 

पंडित वैभव जोशी


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