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    Senate Hall of University: बीस साल बाद बहुरेंगे आंबेडकर विवि के सीनेट हॉल के दिन

    By Prateek GuptaEdited By:
    Updated: Wed, 12 Aug 2020 12:21 PM (IST)

    सीनेट हॉल में कॉपियां भर बनाया हुआ था गोदाम। सन 2000 के बाद दर्ज नहीं हुआ राज्यपाल का नाम।

    Senate Hall of University: बीस साल बाद बहुरेंगे आंबेडकर विवि के सीनेट हॉल के दिन

    आगरा, जागरण संवाददाता। डॉ. भीमराव अंबेडकर विवि की सबसे शक्तिशाली और गौरवमयी संस्था 'सीनेट हाउस' की बीस साल बाद सुध ली जा रही है। सीनेट हाउस के जीर्णोद्धार का काम शुरू हो चुका है।लंबे समय से सीनेट हॉल को गोदाम के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा था।जिस सीनेट के नाम पर डिग्रियां बांटी जाती हैं, उसके ऐतिहासिक हॉल में कापियां भरी हुईं थीं।

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    विवि एक्ट के मुताबिक, सीनेट सबसे ताकतवर संस्था है। अधिनियम के तहत इसे सबसे अधिक अधिकार दिए गए हैं। परीक्षा समिति, अकादमिक परिषद और कार्य परिषद के फैसलों को सीनेट में ही बदला या रद किया जा सकता है। सीनेट में राज्यपाल के चार प्रतिनिधियों के अलावा 15 सदस्य चुनावी प्रक्रिया के जरिए आते हैं। विवि में पंजीकृत स्नातक चुनाव लड़ सकते हैं। आजीवन सदस्यों में प्रोफेसर और लेक्चरर होते हैं। तीन साल के कार्यकाल के बाद दोबारा सीनेट का गठन किया जाता है। यही विवि के कानून बनाने वाली संस्था भी है। हर बड़े काम का अनुमोदन सीनेट से कराना जरूरी है। सीनेट की ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि डिग्रियां रद करने का अधिकार सिर्फ इसी संस्था को है। विवि की दूसरी कोई समिति ऐसा नहीं कर सकती। जानकारों के मुताबिक इसे कानून विरुद्ध माना जाएगा। इसके चुनाव भी विधान परिषद के दो अधिकारियों की निगरानी में कराए जाते हैं। सीनेट की बैठक साल में एक बार होना अनिवार्य है। ऐसी महत्वपूर्ण संस्था को विवि ने पिछले कई सालों से दरकिनार रखा हुआ है।

    एतिहासिक महत्व है हॉल का

    कुलपति सचिवालय के ठीक सामने बना सीनेट हॉल का भवन ऐतिहासिक है। इसे आठ नवंबर, 1951 को तत्कालीन गवर्नर एचपी मोदी ने लोकार्पित किया था। 66 साल पहले बनी यह इमारत पुरातात्विक महत्व की है। मुगलिया रूप लिए यह भवन अंदर से संसद जैसा है।सीनेट की कार्यवाही देखने के लिए भवन के अंदर चारों ओर बालकनी भी बनी है।

    2000 के बाद नहीं ली सुध

    सीनेट हॉल की सुध 2000 के बाद नहीं ली गई है।हॉल के अंदर दीवारों पर दो बोर्ड बने हुए हैं, एक पर 1927 से लेकर 2000 तक के चांसलर के नाम दर्ज हैं और दूसरे पर वाइस चांसलर के।2000 में विष्णुकांत शास्त्री राज्यपाल थे, उनके बाद से अब तक किसी भी राज्यपाल का नाम यहां दर्ज नहीं है। कुलपति वाले बोर्ड पर 2001 में कुलपति रहे डा. गिरीश चंद्र सक्सेना का नाम दर्ज है।

    हॉल का स्वरूप पुराने जैसा ही रखा जाएगा। छत जर्जर थी, इसलिए मरम्मत कार्य शुरू किया गया है।

    - डा. बीडी शुक्ला, पालीवाल पार्क परिसर प्रभारी