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Navratra Special: ब्रजभूमि में अष्टदल कमल सी विराजमान हैं कान्हा की सखियां- ये नव शक्तियां

राधारानी और उनकी आठ सखियां वह शक्तियां हैं जिनके बिना कृष्ण का पराक्रम और लीलाएं अधूरी हैं।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Sat, 06 Apr 2019 02:31 PM (IST)Updated: Sat, 06 Apr 2019 09:03 PM (IST)
Navratra Special: ब्रजभूमि में अष्टदल कमल सी विराजमान हैं कान्हा की सखियां- ये नव शक्तियां
Navratra Special: ब्रजभूमि में अष्टदल कमल सी विराजमान हैं कान्हा की सखियां- ये नव शक्तियां

आगरा, रसिक शर्मा। नवदुर्गा पर शक्ति स्वरूप मातारानी के बारे में सब जानते हैं लेकिन कान्हा की नव देवियां जिन्हें वह शक्ति मानते थे, यह स्वर्णिम शब्दों से झिलमिलाते इतिहास की बहुत कम लोगों को जानकारी होगी। ब्रह्मांचल पर्वत के किनारे बसा बरसाना की संरचना अष्टदल कमल सी बताई गई है। इसके केंद्र में पर्वत पर बने लाड़िली महल में ब्रज की महारानी राधारानी विराजमान हैं। आठ गांव उनको घेरे हुए हैं, जिनमें उनकी आठ सखियां विराजमान हैं। इन नव देवियों की शक्ति से कान्हा ने लीलाएं कीं। सात बरस के सांवरे ने साढ़े दस किमी लंबे और इक्कीस किमी में फैले पर्वतराज को उठाया। "कछु माखन कौ बल बढ्यौ, कछु गोपन करी सहाय। राधेजू की कृपा से, गिरिवर लियौ उठाय" यह पंक्ति नव शक्तियों की बात को पुष्ट करती है।

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आराध्य श्रीकृष्ण जब खुद ही सामान्य नहीं हैं तो उनके सामीप्य पाने वाले भी कैसे सामान्य हो सकते हैं। राधा उनकी आराध्य शक्ति हैं। राधारानी और उनकी आठ सखियां वह शक्तियां हैं, जिनके बिना कृष्ण का पराक्रम और लीलाएं अधूरी हैं।

बरसाना में अरावली की पर्वत श्रृंखला के ब्रह्मांचल पर्वत पर आठ सखियों के बीच अष्टदल कमल सी विराजमान हैं राधारानी। इसकी पहाड़ियों के पत्थर श्याम तथा गौरवर्ण के हैं। जिन्हें कृष्ण तथा राधा के अमर प्रेम का प्रतीक माना जाता है। मां कीरत और पिता वृषभानु की दुलारी का जन्म भादों के महीने की शुक्ल पक्ष अष्टमी को मूल नक्षत्र में हुआ था। राधारानी के दर्शन को देश विदेश के लोग बरसाना आते हैं। भक्तों की भीड़ के कारण गलियों में पैर रखने की जगह नहीं बचती। अष्टसखी ललिता, विशाखा, चित्रा, इंदुलेखा, चम्पकलता, रंग देवी, सुदेवी, तुंगविद्या के बिना राधारानी की कल्पना कृष्ण सी अधूरी है।

राधारानी

बरसाना राधा के पिता वृषभानु का निवास स्थान है। यहीं पर भगवान श्रीकृष्ण की आह्लादिनी शक्ति श्रीराधारानी महल में विराजमान हैं।

बरसाना में राधा रानी का विशाल मंदिर है, जिसे लाड़िली महल के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर में स्थापित राधा रानी की प्रतिमा को ब्रजाचार्य श्रील नारायण भट्ट ने बरसाना स्थित ब्रहृमेश्वर गिरि नामक पर्वत में संवत् 1626 की आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को निकाला था। इस मंदिर में दर्शन के लिए 250 सीढि़यां चढ़नी पड़ती हैं। इस मंदिर का निर्माण आज से लगभग 400 वर्ष पूर्व ओरछा नरेश ने कराया था। यहां की अधिकांश पुरानी इमारतें 300 वर्ष पुरानी हैं। भगवान श्रीकृष्ण की आह्लादिनी शक्ति राधारानी के साथ आठ की संख्या एक अद्भुत संयोग यह भी है कि राधारानी अष्टदल कमल में अष्टमी को प्रकट हुईं। उनकी प्रधान सखियों की संख्या भी आठ है और उनके कान्हा का जन्म भी भादों मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ।

बरसाना के चारों ओर अनेक प्राचीन व पौराणिक स्थल हैं। यहां स्थित जिन चार पहाड़ों पर राधा रानी का भानुगढ़, दान गढ़, विलासगढ़ व मानगढ़ हैं, वे ब्रह्मा के चार मुख माने गए हैं। इसी तरह यहां के चारों ओर सुनहरा की जो पहाड़ियां हैं उनके आगे पर्वत शिखर राधा रानी की अष्टसखी रंग देवी, सुदेवी, ललिता, विशाखा, चंपकलता, चित्रा, तुंग विद्या व इंदुलेखा के निवास स्थान हैं। यहां स्थित मोर कुटी, गहवखन व सांकरी खोर आदि भी अत्यंत प्रसिद्ध हैं। सांकरी खोर दो पहाड़ियों के बीच एक संकरा मार्ग है। कहा जाता है कि बरसाने की गोपियां जब इसमें से गुजर कर दूध- दही बेचने जाती थीं तो कृष्ण व उनके ग्वाला-बाल सखा छिपकर उनकी मटकी फोड़ देते थे और दूध-दही लूट लेते थे।

आठ शक्तियों के साथ विराजमान हैं किशोरीजू

यहां के चारों ओर सुनहरा की जो पहाड़ियां हैं उनके आगे पर्वत शिखर राधा रानी की अष्टसखी रंग देवी, सुदेवी, ललिता, विशाखा, चंपकलता, चित्रा, तुंग विद्या व इंदुलेखा के निवास स्थान हैं। ये सब आठों सखियॉं हर क्षण प्रिया-प्रियतम के मुख मंडल तथा उनके रुप माधुरी को देख-देख कर जीती है। प्रिया-प्रियतम का श्रीमुख चंद्र देखना ही इनके जीवन का आधार है। अपनी आठ शक्तियों के साथ आह्लादिनी शक्ति राधारानी की अपनी सरकार है, जहां रोजाना तमाम लोग अपनी फरियाद सुनाने पहुंचते है। और उनका विश्वास बार बार उन्हें यहां खींच लाता है।

ललिता सखी

राधारानी की प्रधान सखी में सर्व प्रथम ललिता सखी का नाम आता है। ललिता जी ऊंचागांव में विराजमान हैं। इनके बारे में ब्रजमंडल में प्रसिद्ध है कि ये प्रेम की रीति को भली भांति जानती है। मोरपंख की नीली साड़ी पहनती हैं। प्रिया - प्रियतम को पान खिलाती रहती हैं। यह सखी हर कला मे निपुण है। ललिता जी को किशोरी जी की प्रिय सखी का दर्जा प्राप्त है। कुंजन मे राधे जू को गेंद का खेल खिलाती हैं तो कभी वन विहार नौका विहार की सेवा भी इनके हिस्से में आती है।

विशाखा सखी

विशाखा सखी कमई गांव में निवास करती हैं। ये भीनी भीनी सुगंधित चीजों से बने चदंन का लेप करती है तथा चदंन लगाती है। हर सखी प्रिया- प्रियतम को सुख देने मे लगी रहती है । यह सखी श्री श्यामा जी के नित्य सानिध्य मे रहने वाली स्वामिनी की प्रिय सखी हैं। विविध रंगों के वस्त्रो का प्रेम-पूर्वक चयन करके राधारानी को धारण कराती हैं। ये छाया की तरह उनके साथ रहते हुए उनके हित की बातें करती हैं ।

चित्रा सखी

चित्रा सखी चिकसौली गांव में रहती हैं, तथा इन्हें पीली साडी पहनना अधिक प्रिय है। राधारानी को फल शरबत की सेवा चित्रा सखी के हिस्से में है। दोपहर आराम के बाद प्रिया- प्रियतम का जगाने की जिम्मेदारी चित्रासखी की है। युगल की सेवा मे फल, शरबत, मेवा लेकर आती हैं। पल पल की रुचियों को पहचानने वाली चित्रा जी सदा सेवा मे तत्पर रहती है।

इंदुलेखा सखी

इदुंलेखा आजनौंख स्थित मंदिर में भक्तों को दर्शन दे रही हैं। राधारानी का गजरा बनाती हैं तथा प्रिया-प्रियतम को प्रेम कहानी सुनाती है। हालांकि ये आठों सखियॉ हर कला मे निपुण हैं। कीरत किशोरी किसी भी सखी को कुछ भी कोई भी आज्ञा दे देती हैं। यह नृत्य और गायन में भी निपुण हैं।

चंपकलता सखी

चंपकलता हर पल कन्हैया को मोहित करने के लिए नुस्खे बताती रहती हैं। चपंकलता करहला गांव में विराजमान हैं। प्रिया-प्रियतम के लिए भोजन की सेवा का सौभाग्य इन्हें प्राप्त हैं। राधेकृष्ण की रुचि के अनुसार छप्पन भोग बना कर रसोई सेवा में लगी रहती हैं। जब प्रिया प्रियतम सिंहासन पर विराजते हैं तो यह सखी चंवर सेवा मे खडी रहती हैं।

रंगदेवी सखी

रंगदेवी रांकोली ग़ांव में रहती हैं। राधारानी की वेणी (चोटी) गूंथना और श्रंगार करना तथा उनके नैनो में काजल लगाना इनकी सेवा में शुमार है। युगल के विविध आभूषणो को सावधानी पूर्वक संभालकर रखती हैं। दिल में भक्ति और प्यार समेटे साडी आभूषण सदा सेवा मे लेकर खडी रहती हैं ।

तुंगविधा सखी

तुंगविधा सखी डभाला ग़ांव में निवास करती हैं। युगल स्वरूप में विराजमान राधा कृष्ण के दरबार मे नृत्य के साथ मधुर स्वरों से दोनों को रिझाना इनकी सेवा में शुमार है। किशोरी जू की आज्ञा की प्रतीक्षा में तत्पर रहती हैं।

सुदेवी सखी

सुनहरा गांव में निवास करने वाली सुदेवी राधारानी के नैनो मे काजल लगाती हैं । दरबार, रास और वन विहार तथा नौका विहार आदि से लौटने पर प्रिय - प्रियतम की नजर उतारती हैं ।

कैसे पहुंचें

बरसाना दिल्ली- आगरा राजमार्ग पर स्थित कोसीकलां से 7 किमी और मथुरा से 50 किमी जबकि गोवर्धन से 23 किमी की दूरी पर बरसाना गांव बसा है। आप बस, कार या टैक्सी के जरिए यहां पहुंच सकते हैं। बरसाना के लिए मथुरा से नियमित रूप से बसें चलाई जाती हैं। अगर आप ट्रेन के जरिए बरसाना पहुंचना चाह रहे हैं तो यहां का नजदीकी रेलवे स्टेशन कोसीकलां है। बरसाना में रहने के लिए काफी संख्या में धर्मशालाएं मौजूद हैं।


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