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आगरा के इस डॉक्‍टर की इच्‍छा को जान आप भी रह जाएंगे हैरान, हर मरीज होता है आकर्षित

यूरोलॉजिस्ट डॉ. शेखर वाजपेयी की मरीजों के नाम अनोखी अपील। क्‍लीनिक पर लगा बोर्ड खींचता है ध्‍यान।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Tue, 09 Jun 2020 04:27 PM (IST)Updated: Wed, 10 Jun 2020 08:35 AM (IST)
आगरा के इस डॉक्‍टर की इच्‍छा को जान आप भी रह जाएंगे हैरान, हर मरीज होता है आकर्षित
आगरा के इस डॉक्‍टर की इच्‍छा को जान आप भी रह जाएंगे हैरान, हर मरीज होता है आकर्षित

आगरा, राजेश मिश्रा। वैसे तो डॉक्टरों के क्लीनिक−अस्पताल में तमाम बोर्ड लगे रहते हैं। बीमारियाें, उनके लक्षण आदि के बारे में जानकारी होती है। मगर इससे अलावा भी बोर्ड लगे रहते हैं। परामर्श शुल्क यहां जमा कराएं। एक सप्ताह बाद दाेबारा परामर्श शुल्क लगेगा..आदि। वहीं, आगरा शहर के एक डॉक्टर के यहां अनोखा बोर्ड देखा। उस पर लिखी इबारत पढ़कर डॉक्टर और डॉक्टरी की तमाम सोचनीय बीमारियां स्वत: दूर हो गई। ये डॉक्टर हैं प्रसिद्ध यूरोलॉजिस्ट डॉ. शेखर वाजपेयी।

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मेरे बेटे रिषभ की किडनी में पथरी है। असहनीय दर्द से वो बेहाल है। बेटे को दिखाने के लिए मैं डॉ. शेखर वाजपेयी के रामरघु अस्पताल स्थित क्लीनिक पर गया था। नंबर लगाने, प्री टेस्टिंग, स्क्रीनिंग, टेम्परेचर आदि के बाद हम दोनों को अंदर प्रतीक्षा कक्ष में बैठा दिया गया। अब असिस्टेंट के बुलावे का इंतजार था। अचानक मेरी नजर दीवार पर लगे बोर्ड पर गई। पूरी दीवार क्या, पूरे कमरे में ही यही एक बोर्ड था। उस पर लिखे शब्द और संदेश पढ़ने की शुरुआत की तो पूरा पढ़ने के बाद ही रुका। मैंने अपने बेटे को भी पढ़वाया। वो भी चौंका। पापा, ऐसा तो पहली बार पढ़ रहा हूं। मुझे एक बार पढ़ने में तसल्ली नहीं हुई। फिर पढ़ा। अच्छा लगा तो एक बार और ये सोचकर पढ़ा कि शायद एक−एक संदेश याद हो गया। मगर याददाशत अब इतनी मजबूत नहीं रही साे मोबाइल फोन के कैमरे से कैद कर लिया। यकीन मानिए, इस बोर्ड को पढ़ने के दौरान मुझे चिकित्सकीय क्षेत्र के एक नई सोच का अनुभव हुआ। ऐसा भी नहीं कि अन्य डॉक्टर ऐसा नहीं सोेचते। जरूर सोचते हाेंगे, मगर कभी कहते या बताते नहीं सुने। खैर, अब बताते हैं कि इस बोर्ड में ऐसा क्या लिखा था जिसने हमें गदगद कर दिया।

मेरी अपने रोगी से इच्छा

− मरीज अपने पुराने रिकॉर्ड साथ लाएं, लेकिन अपने पुराने चिकित्सक के बारे में अपनी राय न दें। मैं उनसे श्रेष्ठ नहीं हूं।

−मेरा फोन नंबर इमरजेंसी के लिए है, कृपया अनावश्यक फोन न करें।

−यदि आप चाहते हैं कि मैं किसी बर्थ डे पार्टी, शादी−समारोह आदि में आपसे मिलूं तो कृपया वहां आप अपनी स्वास्थ्य संबंधी समस्या न बताएं।

−कृपया मुझ पर दबाव न डालें,क्योंकि मैं कुछ अतिरिक्त नहीं करता। यह मेरी जिम्मेदारी है आपका उपचार करना। ये ईश्वर है जो आपको ठीक करता है। किंतु जब कोई जटिलता आती है एक भी उसकी इच्छा से होता है कई् परेशानी, दुष्परिणाम मेरा कार्य नहीं है, ये कई बार आपका शरीर है जो विलक्षण प्रतिक्रिया करता है।

− कृपया मेरे इलाज से सलाह लें, लेकिन इंटरनेट पर सलाह न लें। जिस प्रकार से इंटरनेट पर सलाह लेकर मैं अपना कम्प्यूटर सही नहीं कर सकता, उसी तरह आप अपना इलाज गूगल से सही नहीं कर सकते।

वो संदेश जिसने सबसे ज्यादा प्रभावित किया

मैं कहना चाहता हूं कि सिर्फ आपके कारण एक चिकित्सक हूं। जब आप मेरे कक्ष में आएं तब आप एक मरीज हों न कि मंत्री, अधिकारी, पत्रकार, शिक्षक, रिश्तेदार।

धन्यवाद डॉ. शेखर वाजपेयी

गौरतलब ये है कि इस संदेश में तमाम किरदार समाहित हैं। डॉक्टर ने खुद को एक मरीज मान उन हालातों को उकेरा है जो आमतौर पर देखे जाते हैं। बाहर अन्य मरीज दर्द से कराह रहे होते हैं। नंबर पर आने के बावजूद अंदर क्लीनिक से बुलावा नहीं आता है और पहुंच वाले मरीज बगैर नंबर के अंदर चले जाते हैं। ऐसे में नंबर वाले मरीज का दर्द और बढ जाता है, जबकि मरीज जब डॉक्टर के पास जाता है तो क्या सोचता है। सोचता है कि सबसे पहले उसे देख लें। बहुत दर्द हो रहा है।

इसी तरह, कोई भी डॉक्टर नहीं चाहता कि उसका मरीज जल्द स्वस्थ न हो। मगर बीमार की प्रतिरोधक क्षमता और बीमारी की जटिलता कभी− कभी हरा देती है। वर्तमान में नेट का युग है। लोग हर बीमारी के बारे में नेट पर खाेजकर उसका खुद ही इलाज करने लगते हैं। एक डॉक्टर ने बताया कि अक्सर ऐसे केस सामने आ जाते हैं जो गूगल से देख इलाज कर लेते हैं। गंभीर बीमारी में तो ऐसा बिल्कुल नहीं करना है। 


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