Agra Fort: आगरा किला आएं तो इस कसौटी पत्थर के सिंहासन के बारे में जानना न भूलें, बड़ा रोचक है इतिहास
Agra Fort आगरा किला में है शहजादे सलीम के अकबर के खिलाफ विद्रोह की निशानी तख्त-ए-जहांगीर। दीवान-ए-खास के पास रखा हुआ है कसौटी पत्थर का बना सिंहासन। इल ...और पढ़ें

आगरा, निर्लोष कुमार। आगरा किला में मुगल शहजादे सलीम (शहंशाह जहांगीर) के शहंशाह अकबर के खिलाफ विद्रोह की निशानी आज भी मौजूद है। दीवान-ए-खास के पास रखा कसौटी पत्थर का बना तख्त-ए-जहांगीर ही उसके विद्राेह की निशानी है। इस तख्त पर बैठकर ही शहजादे सलीम ने नुरुद्दीन मुहम्मद जहांगीर बादशाह का विरुद (पदवी) धारण किया था।
मुगल शहंशाह जहांगीर तीन नवंबर, 1605 ईस्वी (नई तिथियों की गणना के अनुसार) को गद्दी पर बैठा था। जहांगीर ने अकबर के खिलाफ विद्रोह किया था। इतिहासविद राजकिशोर राजे ने किताब 'ये कैसा इतिहास' में शहजादे सलीम द्वारा शहंशाह अकबर के खिलाफ वर्ष 1602 में किए विद्रोह का उल्लेख किया है। उसने वीरसिंह बुंदेला को गुप्त रूप से निर्देश देकर झांसी के करीब आंतरी नामक स्थान पर अबुल फजल की हत्या करवा दी थी और इलाहाबाद में स्वयं के गद्दी पर बैठने की घोषणा कर दी थी। उसने इलाहाबाद में जिस पत्थर के तख्त पर बैठकर स्वयं को बादशाह घोषित किया था, वो आगरा किला में दीवान-ए-खास के पास रखा हुआ है। इसे 'तख्त-ए-जहांगीर' के नाम से जाना जाता है। यह 10 फुट सात इंच लंबा, नौ फुट 10 इंच चौड़ा और छह इंच मोटे पत्थर का बना हुआ है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) द्वारा यहां लगाए गए शिलापट्ट पर तख्त से जुड़ी जानकारी दी गई है। उसके अनुसार यह सिंहासन शहजादे सलीम ने इलाहाबाद में वर्ष 1602 में अपने लिए बनवाया था। तब उसने अपने पिता अकबर के खिलाफ विद्रोह कर दिया था। वह वर्ष 1605 में बादशाह बना, लेकिन यह सिंहासन इलाहाबाद में ही रहा। वर्ष 1610 में इसे आगरा लाया गया। इसे जहांगीर के महल में झरोखे के पास रख दिया गया। ब्रिटिश यात्री विलियम हाकिन्स ने इसे महल में रखा हुआ देखा था। अब वह महल तो नहीं है, लेकिन सिंहासन वहीं रखा हुआ है। जहांगीर ने अपनी आत्मकथा 'तुजुक-ए-जहांगीरी' में तख्त की प्रशंसा की है। उसने लिखा है कि कसौटी पत्थर का बना हुआ यह सिंहासन एक ही पत्थर का है। इसके किनारे पर अलंकृत पुष्पों के बीच फारसी भाषा में अभिलेख उत्कीर्ण हैं, जो सलीम का उल्लेख 'शाह' या 'सुल्तान' अथवा 'बादशाह' की तरह करते हैं। यह अकबर की प्रभुसत्ता को चुनौती थी। इसलिए सिंहासन जब आगरा आ गया तो जहांगीर ने इस पर दो अभिलेख और उत्कीर्ण कराए। इनमें स्वयं को राज्य का एक मात्र उत्तराधिकारी बताया और यह स्पष्ट किया कि उसने नुरुद्दीन मुहम्मद जहांगीर बादशाह का विरुद इसी सिंहासन पर बैठने के बाद धारण किया।
ब्रिटिश काल में गिरा था तोप का गोला
टूरिस्ट गाइड नितिन सिंह बताते हैं मराठों के अधीन आगरा किला पर अंग्रेजों ने पहला हमला वर्ष 1803 में जनरल गेरार्ड लेक के नेतृत्व में किया था। तोप से दागा गया एक गोला तख्त-ए-जहांगीर के ऊपर गिरने से उसके ऊपर बनी छतरी टूट गई थी और गोला उछलकर दीवार में धंस गया था। गोला गिरने से तख्त-ए-जहांगीर में दरार आ गई थी। इस सिंहासन को बनवाने के लिए जहांगीर ने ब्लैक ओनिक्स बेल्जियम से मंगवाया था।

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