Ram Mandir Ayodhya: नृत्य गोपाल दास के पैतृक मकान में भी विराजे हैं राम
Ram Mandir Ayodhya अयोध्या में मंदिर निर्माण को लेकर उनके गांव करहला में छाईं खुशियां। 55 हजार रुपये का दान ब्रज रज और जल लेकर जत्था रवाना।
आगरा, किशन चौहान। अयोध्या में श्रीराम के भव्य और दिव्य मंदिर की आधारशिला रखने की तिथि जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, राम मंदिर निर्माण आंदोलन में महती भूमिका निभाने वाले और अब राम मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष मंहत नृत्य गोपाल दास का पैतृक गांव करहला की खुशियां बढ़ती जा रही हैं। अयोध्या में मंदिर निर्माण को लेकर नृत्य गोपाल दास के समर्पण और संघर्ष को देखते हुए उनके स्वजन ने पैतृक मकान में राम दरबार को प्रतिस्थित करा दिया। यहां पर हर साल बैशाख माह की तीज (अखतीज) को अनुष्ठान में वे आते भी हैं।
वैसे तो मथुरा के करहला गांव की पौराणिक महत्ता राधारानी की सखी चंपकलता से है। चंपकलता यहीं की रहने वाली थीं मगर, श्रीराम मंदिर निर्माण आंदोलन के अगुवा महंत नृत्य गोपाल दास की जन्मस्थली से भी ये गांव चर्चा में रहा है। पूरे गांव को गुमान है कि आराध्य राम की भूमि पर भव्य मंदिर की नींव का अगुआ उनके ही गांव का लाल नृत्य गोपाल दास हैं।
पं. गंगादान महाराज और रामदेई के दो संतानें हुईं। नृत्यगोपाल दास और उनके छोटे भाई दूल्हेराम शर्मा। गांव के बुजुर्ग जगदीश बाबू बताते हैं कि नृत्य गोपाल का बचपन इसी गांव की गलियों में बीता। 11 वर्ष की आयु में वे अयोध्या चले गए थे और तब से वहीं के होकर रह गए। हालांकि वे यहां आते रहते हैं। गांव में उनके चचेरे भाई की पत्नी रुमाली ही रहती हैं। राम के प्रति नृत्य गोपाल दास की आस्था देखते हुए करीब तीन साल पहले उनके मकान में श्रीराम का मंदिर बनाया गया। इसमें बैशाख माह की तीज (अखतीज) को प्राण प्रतिष्ठा कराई गई थी। नृत्य गोपाल दास हर अखतीज को आयोजित होने वाले कार्यक्रम में आते हैं। रुमाली कहती हैं कि अयोध्या में राम मंदिर बनने को लेकर वह अपनी खुशी बयां नहीं कर पा रही हैं। ग्राम प्रधान गुपाल बताते हैं कि मंदिर आंदोलन के दौरान गांव में भी जय श्रीराम के जयकारे गूंजते थे। भगवान राम के मंदिर निर्माण को लेकर गांव में भारी उत्साह है। सभी ग्रामीणों ने चंदाकर 55 हजार रुपये राम मंदिर निर्माण को भेजे हैं।
ब्रजरज व कंगन कुंड का जल भी पहुंचेगा धर्मनगरी
राम मंदिर निर्माण के लिए ब्रजरज और करहला के विख्यात कंगन कुंड का पवित्र जल भी भेजा जा रहा है। करहला से ब्रजवासियों की एक टोली जल और रज लेकर अयोध्या के लिए कूच कर गई है। कंगन कुंड में महारास के दौरान राधारानी का कंगन गिर गया था। तभी से इसका नाम कंगन कुंड पड़ गया।
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