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    Radha Shayam Sundar Temple Vrindavan: वृंदावन के सप्त देवालय, राधाश्यामसुंदर मंदिर, जहां राधारानी ने स्वयं श्यामानंद प्रभु को प्रदान किए थे श्रीविग्रह

    By Tanu GuptaEdited By:
    Updated: Wed, 18 May 2022 12:07 PM (IST)

    Radha Shayam Sundar Temple Vrindavan राधाश्यामसुंदर मंदिर में गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय के आचार्य बलदेव विद्याभूषण के सेव्य ठा. राधाश्यामसुंदर मुख्य सिंहासन पर विराजमान हैं। मुख्य सिंहासन की बाईं ओर राधारानी द्वारा श्यामानंद प्रभु को प्रदत्त श्यामसुंदर और भरतपुर के महाराजा के कोष भंडार से स्वयं प्रकटित राधारानी प्रतिष्ठित हैं।

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    Radha Shayam Sundar Temple Vrindavan: राधाश्यामसुंदर मंदिर में विराजित विग्रह।

    आगरा, जागरण टीम। तीर्थ नगरी वृंदावन, कृष्ण की नगरी, क्रीड़ा स्थली वृंदावन। वृंदावन जहां केशव और राधा के चरण पड़े तो मां वृंदा जैसे यहां की माटी में रच बस गइ। वृंदावन जहां का कण− कण राधा और कृष्ण की अलौकिक प्रेम लीला का बखान करता है। वृंदावन जहां पग− पग पर मंदिर बने हैं। इन्हीं मंदिरों में विशेष स्थान है सप्त देवालयों का। वृंदावन के सप्त देवालयों में शामिल ठा राधाश्यासुंदर मंदिर, जो कि अनूठा है। जहां की प्रतिमा चमत्कारी हैं। आइये आज की श्रंखला में जानते हैं मंदिर का इतिहास। 

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    वृंदावन के सप्तदेवालयों में शामिल ठा. राधादामोदर मंदिर से करीब 100 मीटर की दूरी पर लोई बाजार क्षेत्र में ठा. राधाश्यामसुंदर का मंदिर स्थापित है। मंदिर में गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय के आचार्य बलदेव विद्याभूषण के सेव्य ठा. राधाश्यामसुंदर मुख्य सिंहासन पर विराजमान हैं। मुख्य सिंहासन की बाईं ओर श्रीराधारानी के हृदयकमल से प्रकटित तथा राधारानी द्वारा श्यामानंद प्रभु को प्रदत्त श्यामसुंदर और भरतपुर के महाराजा के कोष भंडार से स्वयं प्रकटित राधारानी प्रतिष्ठित हैं। जिन्हें सन् 1850 में भरतपुर के महाराजा ने मंदिर बनाकर श्यामसुंदर के संग वसंत पंचमी पर पाणिग्रहण कर दान कर दिया था। मुख्य सिंहासन के दायीं ओर ब्रजानंद देव गोस्वामी को नंदगांव से प्राप्त राधा कुंजबिहारी की मनमोहनी विग्रह सेवित है।

    ये हैं मुख्य आकर्षण

    गर्मी के दो महीने निरंतर ठाकुरजी का फूलबंगला कार्तिक नियम सेवा, प्रतिदिन होने वाला चंदन से श्रीविग्रह का पत्रावली श्रृंगार तथा अक्षय तृतीया को होने वाले अंग चंदन श्रृंगार दर्शन यहां के प्रमुख आकर्षण है।

    ये है इतिहास

    मंदिर के महंत कृष्णगोपालानंद देव गोस्वामी के अनुसार श्यामसुंदर का श्रीविग्रह स्वयं राधारनी ने अद्वैत महाप्रभु के भावेशावतार श्यामानंद प्रभु को प्रदान किया था। वसंत पंचमी सन् 1578 काे श्यामसुंदर का प्राकट्य हुआ। मंदिर के समीप राधादामोदर व राधाश्यामसुंदर मंदिर के बीच में ही राधारानी का नुपूर प्राप्ति स्थल भी है। जहां राधारानी के निर्देश पर श्यामानंद प्रभु को उनका नुपूर मिला। मंदिर में श्यामानंद प्रभु, नरोत्तम ठाकुर की पदावलियां सायंकाल गाई जाती हैं।