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    बेदम कर रहा सिस्टम: मेडल गिरवी रखने को मजबूर 'शहंशाह', राष्ट्रपति ने दिया था वीरता पुरस्कार

    By Abhishek SaxenaEdited By:
    Updated: Thu, 17 Mar 2022 04:46 PM (IST)

    राष्ट्रपति पुरस्कार विजेता शहंशाह इन दिनों बेबस है। अधिकारियों के चक्कर लगाकर एक मकान उसे अभी तक नहीं मिल सका है। सरकारी वादे कई सालों बाद भी अधूरे हैं। शहंशाह का आशियाना रेलवे ने ध्वस्त कर दिया। उम्मीद लगाए हैं कि मेडल गिरवी रखकर छत परिवार के लिए बना सके।

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    राष्ट्रपति द्वारा शहंशाह को मिला था बहादुरी का पुरस्कार

    आगरा, जागरण टीम। राष्ट्रपति पुरस्कार विजेता शहंशाह अपना मेडल गिरवी रखकर मकान बनवाना चाहता है। क्योंकि पुरस्कार मिलने के दौरान अफसरों ने उससे जो वादे किए थे, वह अब तक पूरे नहीं हो सके हैं। उसे अभी तक कांशीराम योजना के तहत अब तक मकान नहीं मिल सका है।

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    वह अधिकारियों के यहां चक्कर काट रहा है। वह जिस मकान में रहते हैं, पिछले दिनों रेलवे ने उसे भी ध्वस्त कर दिया। अब सिर छुपाने के लाले हैं। यमुनापार, महताब बाग स्थित मोतीमहल क्षेत्र में रहने वाले शहंशाह और उनके पिता बिस्सा गोताखोर हैं। बिस्सा अब तक तमाम लोगों को यमुना तथा दूसरी नदी, नहर, तालाब में डूबने से बचा चुके हैं। उनके बेटे शहंशाह ने वर्ष 2007 में मात्र 11 वर्ष की उम्र में दो डूबते हुए बच्चों को अपनी जान जोखिम में डालकर बचाया था।

    दो युवकों को बचाया था

    एत्माद्दौला के यमुना ब्रिज की बस्ती में रेलवे ब्रिज के नीचे रहने वाले शहंशाह दो सितंबर 2007 को यमुना किनारे बैठे थे। उस समय शहंशाह की उम्र 11 साल थी। शहंशाह ने बताया कि उन्होंने यमुना दो युवकों को डूबते देखा तो उनको बचाने को यमुना में कूद गए। दोनों युवकों को बचाकर किनारे ले आए। उसकी इस वीरता के लिए वर्ष 2009 मे गणतंत्र दिवस पर तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने उसे वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया था। इतना ही नही यूपीए चेयरमैन सोनिया गांधी, तत्कालीन रक्षामंत्री एके एंटनी, दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित समेत कई हस्तियों ने उसकी पीठ थपथपाई थी। शहंशाह बताते हैं कि राष्ट्रपति पुरस्कार मिलने के समय उसने अपनी पढ़ाई और सरकारी योजना मे एक मकान की इच्छा जताई थी। इसे पूरा करने का दिल्ली में वादा भी किया गया था।

    रेलवे ने हटाए आशियाने

    रेलवे ने नये पुल के निर्माण के लिए मोतीमहल क्षेत्र में अपनी जमीन से अतिक्रमण हटवाया था। इसमें तमाम मकान ध्वस्त कर दिए गए थे। इनमें शहंशाह का आशियाना भी शामिल था। वर्तमान में शहंशाह परिवार के साथ किराए के मकान में रह रहा है। वह अब अपना मेडल गिरवी रखकर मकान खरीदना चाहता है।

    एक सूटकेस मे बंद वीरता की गाथा

    शहंशाह की मां अनीसा को मकान न मिलने से ज्यादा मलाल अपने बेटे के मेडल और प्रशस्ति पत्र को टांगने के लिए घर मे जगह न होने का है। जब भी कोई उनके घर आता है तो वो एक टूटे से सूटकेस को लाती है। उससे धूल हटाकर बेटे को मिली बहादुरी की निशानी को दिखाती है।