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    Miyawaki Method: अब जापान की मियावाकी पद्धति की तर्ज पर ब्रज में बढ़ाई जाएगी हरियाली, इसमें सुरक्षित रहेंगे पौधे

    By Prateek GuptaEdited By:
    Updated: Thu, 16 Sep 2021 11:51 AM (IST)

    हर साल लाखों की संख्‍या में यहां पौधे लगाए जा रहे हैं लेकिन उनमें से अस्तित्‍व कुछ का ही बच रहा है। सर्वे में निकाला गया पौधों को बचाने का तरीका। आगामी वर्ष में मियावाकी पद्धति के आधार पर होगा पौधारोपण। तीन तरह के पौधों की पटि्टका की जाएंगी तैयार।

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    ब्रज में मथुरा से मियावाकी पद्धति पर पौधे लगाने की शुरुआत होगी।

    आगरा, चंद्रशेखर दीक्षित। हर वर्ष लाखों की संख्या में पौधारोपण हो रहा है। फिर भी ब्रज में हरियाली का क्षेत्रफल घट रहा है। इसकी पुष्टि देहरादून के वैज्ञानिकों द्वारा जारी की गई सर्वे रिपोर्ट में भी की गई है। इसलिए अब ब्रज में पौधारोपण का तरीका बदला जा रहा है। यहां पर विकास के नाम पर भी हरियाली का कटान अधिक हो रहा है। इसके लिए अब जापान की तर्ज पर (मियावाकी पद्धति) के आधार पर पौधारोपण किया जाएगा। वर्ष 2022-23 में करीब 33 लाख पौधों का जिले में रोपण किया जाएगा। इसके लिए वन अधिकारियों ने तैयारी शुरू कर दी है।

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    विकास के नाम पर हरियाली का कटान हो रहा है। वन क्षेत्र में भी कमी दर्ज की जा रही है। ऐसे में अधिक से अधिक पौधा लगाना भी वन विभाग के लिए एक चुनौती है। अब शासन ने ब्रज क्षेत्र में जापान की तर्ज पर पौधारोपण कराए जाने का निर्णय लिया है। जापान में मियावाकी पद्धति पर पौधारोपण होता है, उसी तरह से अब वन अधिकारी ब्रज में पौधारोपण करेंगे। पौधारोपण के बाद बायो फेंसिंग की जाएगी, जिस पर होने वाला खर्चा मनरेगा के तहत किया जाएगा।

    यह है मियावाकी पद्धति

    मियावाकी पद्धति एक जापानी वनीकरण विधि है। इसमें पौधों को कम दूरी पर लगाया जाता है। पौधे सूर्य का प्रकाश प्राप्त कर ऊपर की ओर वृद्धि करते हैं। पद्धति के अनुसार पौधों के तीन प्रजातियों की सूची तैयार की जाती है। जिनकी ऊंचाई पेड़ बनने पर अलग-अलग होती है। जैसे कि एक पेड़ खजूर का लगाया जाएगा, तो दूसरा पेड़ नीम, शीशम आदि का होगा। वहीं तीसरा पौधा किसी भी तरह की फुलवारी का हो सकता है। इसमें खास बात यह रहती है कि एक पेड़ ऊंचाई वाला तथा दूसरा कम ऊंचाई वाला तथा तीसरा घनी छायादार पौधा चुना जाता है। इन तीनों पौधों को थोड़े-थोड़े दिन के अंतराल पर लगाया जाता है। यक प्रक्रिया दो से तीन सप्ताह में पूरी होती है।

    यह है बायो-फेंसिंग

    बायो-फेंसिंग पौधों या झाड़ियों की पतली या संकरी पट्टीदार लाइन होती है, जो जंगली जानवरों के साथ-साथ हवा के तेज़ झोंकों और धूल आदि से भी रक्षा करती है। ग्रामीण क्षेत्रों में इसका प्रयोग प्राचीन समय से ही किया जाता रहा है। क्योंकि यह लकड़ी, पत्थर और तारों की फेंसिंग से सस्ती और ज़्यादा उपयोगी है।

    शासन की मंशा है कि आगामी वर्ष में हम लोग मियावाकी पद्धति पर पौधारोपण करें। इसको लेकर जल्द ही बैठक होगी। उसमें यह निर्धारित किया जाएगा कि पहली वर्ष में कितने पौधे मियावाकी पद्धति के आधार पर लगाए जाने हैं और कितना पौधारोपण पूर्व की तरह होना है। इसको लेकर अभी दिशा निर्देश भी मिलना बाकी है।

    रजनीकांत मित्तल, डीएफओ

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