एक ऐसी चिमनी, जहां जलाए जाते थे नोट, 86 साल पहले कर दी गई हमेशा के लिए बंद
छीपीटोला स्थित स्टेट बैंक आफ इंडिया की शाखा में बनी हुई है नोट जलाने की चिमनी। इंडियन इंपीरियल बैंक द्वारा कटे-फटे नोटों को जलाने का होता था काम। वर्ष ...और पढ़ें

आगरा, निर्लोष कुमार। कल-कारखानों और ईंट-भट्ठों पर बनी हुई ऊंची-ऊंची चिमनियों को आपने देखा होगा। उनसे निकलता धुआं हवा में प्रदूषण का जहर घोलता है। ताजमहल के शहर में एक ऐसी भी चिमनी है, जिसमें 86 वर्ष पूर्व तक नोट जलाए जाते थे। इसके बारे में अधिकांश शहरवासी अनजान हैं। वर्ष 2014 में उप्र पर्यटन विभाग ने तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव द्वारा लोकार्पित फ्लेक्स लगाकर इसे पहचान दी थी।
छीपीटोला स्थित स्टेट बैंक आफ इंडिया की शाखा के परिसर में नोट जलाने की चिमनी बनी हुई है। इसमें देशभर के कटे-फटे आैर पुराने नोटों को जलाने का काम इंडियन इंपीरियल बैंक किया करती थी। वर्ष 1934 तक यहां नोटों को जलाया गया। इसके बाद इंडियन इंपीरियल बैंक ने नोटों को जलाने का काम जयपुर शिफ्ट कर दिया। इसका कोई अभिलेख उपलब्ध नहीं कि बैंक ने आगरा से जयपुर नोट जलाने का काम क्यों शिफ्ट किया? माना जाता है कि मारवाड़ी सेठों द्वारा रजवाड़ों के साथ मिलकर बैंकिंग व्यवस्था की शुरुआत करने से ऐसा हुआ। उप्र पर्यटन विभाग ने वर्ष 2014 में चिमनी के संरक्षण अौर उसे पहचान देने की दिशा में प्रयास किए थे। यहां पर आगरा के विशेष लोगो (ताज के गुंबद व अंग्रेजी एल्फाबेट 'ए' को मिलाकर बनाए गए) को चिमनी पर लगवाया गया था। इस पर चिमनी का इतिहास लिखा हुआ है।
इंपीरियल बैंक ही बना स्टेट बैंक आफ इंडिया
इंडियन इंपीरियल बैंक की स्थापना 27 जनवरी, 1921 को जेएम कीन्स ने मुंबई में की थी। दो जून, 1806 को बने बैंक आफ बंगाल, 15 अप्रैल, 1840 को बने बैंक आफ बांबे और 1843 में बने बैंक आफ मद्रास का विलय कर इसे बनाया गया था। 30 अप्रैल, 1955 तक इंडियन इंपीरियल बैंक ने काम किया। बाद में इसका नाम बदलकर स्टेट बैंक आफ इंडिया हो गया।
बंदरों का डेरा
चिमनी के चारों ओर प्लेटफार्म बना हुआ है। पूर्व में इसके चारों ओर जंजीर बंधी थी, लेकिन अब उसका कोई अता-पता नहीं है। चिमनी पर दिनभर बंदरों का डेरा लगा रहता है।

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