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कुंडलियों का मिलान अगर नहीं हो रहा तो अपनाएं धर्म विज्ञान का ये समाधान

धर्म वैज्ञानिक डॉ. जेजे ने खोले ज्योतिष भ्रांति के राज। लड़की के रजस्वला होने के बाद कम हो जाता है ग्रहों का प्रभाव।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Fri, 15 Mar 2019 05:47 PM (IST)Updated: Fri, 15 Mar 2019 05:47 PM (IST)
कुंडलियों का मिलान अगर नहीं हो रहा तो अपनाएं धर्म विज्ञान का ये समाधान
कुंडलियों का मिलान अगर नहीं हो रहा तो अपनाएं धर्म विज्ञान का ये समाधान

आगरा, तनु गुप्‍ता। आपको अभिषेक बच्चन और ऐश्वर्या राय का विवाह आयोजन याद तो होगा ही। सेलिब्रेटी शादी की वजह से तो ये विवाह समारोह चर्चा में रहा ही था लेकिन इसके साथ ही एक चर्चा काफी गरम और रही थी। ऐश्वर्या राय के मांगलिक होने के कारण पीपल के पेड़ से शादी, मंदिरों में विशेष पूजन आदि की जो खबरें आईं थी, उन्होंने कुंडली के प्रभाव की मान्यता को लेकर आम लोगों के मन में गहरी पैठ बना ली थी। यूं तो वैवाहिक जीवन के लिए सनातन परंपरा में जन्‍म कुंडली मिलान अति आवश्यक कार्य माना जाता है लेकिन बहुत बार सिर्फ कुंडली की वजह से अच्छे रिश्ते हाथ से निकल जाते हैं। इस बाबत जागरण डॉम कॉम ने धर्म वैज्ञानिक डॉ. जेजे से बात की।
डॉ. जेजे उज्जैन स्थित धर्म विज्ञान शोध संस्थान के निदेशक हैं। वृंदावन धार्मिक यात्रा पर आने के दौरान उन्होंने कई अहम विषयों पर अपनी शोधपरक राय भी रखी।
डॉ. जेजे के अनुसार जन्म कुंडली मनुष्य के जीवन के पूर्व निर्धारित प्लान की तरह है। यानि पूर्वाद्ध के अनुसार ही उसका जन्म और उसके जीवन की भावी अवधारणाओं को प्रकट करने वाला यंत्र ही जन्‍म कुंडली कहलाता है।
डॉ. जेजे कहते हैं कि जन्म कुंडली संसार की ज्याेतिषीय गणना के आधार पर की जाने वाली ऐसी वृहद और वैज्ञानिक अवधारणा है जिसको अधिकांश लोग समझ नहीं पाते, सिर्फ सनातन वैज्ञानिक ही समझ पाते हैं।

कन्या की निष्ठा और समर्पण बदल देता है ग्रह दोष
धर्म वैज्ञानिक डॉ. जेजे के अनुसार वैवाहिक जीवन में जन्म कुंडली का बहुत अधिक महत्व नहीं होता। विवाह सोलह संस्कारों में से एक है लेकिन ध्यान रखना चाहिए कि इस संस्कार में भी कई और संस्कार होते हैं। सनातन परंपरा में विवाह भी कई प्रकार के होते हैं। मुख्य धारा के विवाह में कुंडली मिलान जो किया जाता है वो अपने आप में रोचक वैज्ञानिक प्रसंग है। डॉ. जेजे कहते हैं कि एक आयु के उपरांत यानि लड़की के रजस्वला होने के बाद जब वो स्वयं अपने नेत्रों से या मन से किसी पुरुष का वरण वर के रूप में करती है तब धीरे धीरे कुंडली का प्रभाव मुक्त होता जाता है। ऐसी स्थिति में विवाह होने पर किसी भी प्रकार के ग्रह का अवरोध नहीं होता है।
कई बार अच्छे रिश्ते सिर्फ कुंडली न मिलने के कारण हो नहीं पाते। ऐसे में ज्योतिष विज्ञान में कुंडली के प्रभाव को समाप्त करने के प्रयोग हैं जिन्हें प्रयोग कर कुंडली ग्रहों के दुष्प्रभाव से मुक्त हो जाती है।

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मंगल का प्रभाव नहीं चंद्र का प्रभाव होता है कन्या पर
अधिकांश विवाह कन्या के मांगलिक होने के कारण टूट जाते हैं। यह महज एक भ्रांति है। इस बारे में अपने शोध के आधार पर डॉ. जेजे कहते हैं कि सिर्फ चंद्र ग्रह का ही प्रभाव कन्याओं पर पाया जाता है। हालाकि पुरुष पर सभी ग्रहों का प्रभाव होता है। लड़की के रजस्वला होने के बाद चंद्र भी अपने प्रभाव से मुक्त होने लगता है। विवाह का जो भाव होता है वो लड़की के द्वारा ही तय किया जाता है। लड़की ही यह निर्णय लेती है कि लड़का उसके योग्य है या नहीं। ग्रह अपना प्रभाव डालते हैं, लग्न अपना प्रभाव डालता है लेकिन कुंडली में रिक्त स्थान उसका प्रारब्ध होता है। इसका ज्ञान केवल त्वरिक विज्ञान में ही पाया जाता है, जोकि धर्म विज्ञान द्वारा शोध किया गया है। जब प्रारब्ध और ऋण की गति से संबंध बनते हैं तब सावित्री की भांति स्त्री अपनी साधना से पति के आयु की रक्षा करती है।

नहीं मिल रही कुंडली तो करें गंधर्व विवाह
यदि कुंडली का मिलान नहीं होता और रिश्ता अच्छा है तो ऐसे में नाम बदलकर गंधर्व विवाह कर देना चाहिए। डॉ. जेजे सुझाव देते हैं कि व्यक्ति के पूर्वाध और कर्मों से उसका जीवन बनता और बिगड़ता है। जरूरी नहीं है कि कुंडली के प्रभाव से दंपति में से किसी एक ही मृत्यु हो या जीवन बिगड़े। यदि रिश्ता अच्छा मिल रहा है वर वधू का नाम बदल दें और मंदिर में जाकर विवाह कर दें।
ध्यान रखना चाहिए कि प्रारब्ध और भाग्यकर्म के कारण भी व्यक्ति कुंडली के प्रभाव से मुक्त होकर अपना सनातन जन्म आराम से जी सकता है। इसलिये जीवन में अधिक प्रभाव पुण्य और मुस्कुराहट का होता है।

 


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