Meditation: ध्यान करने बैठते हैं तो मन भागता है इधर− उधर, पढ़ें मन को एकाग्र करने के 7 टिप्स
Meditation दिन पर दिन जीवन में बढ़ रहा है तनाव का स्तर। तनाव से मुक्ति पाने का सबसे सरल और कारगर उपाय है ध्यान। जितना ध्यान गहरा होगा उतना मन चिंता तनाव से दूर होगा। मन को एकाग्र करने में कारगर डॉ जे जोशी की पुस्तक सिद्धि रहस्य का विज्ञान।
आगरा, जागरण संवाददाता। आपाधापी की दौड़ में तरक्की के साथ टेंशन या तनाव हमें सौगात के रूप में मिलने लगा है। विशेषकर लॉकडाउन के दौर ने बहुत से लोगों को डिप्रेशन के मुहाने पर लाकर खड़ा भी कर दिया था। आज भले ही सबकुछ खुल चुका है। जीवन वापस उसी ढर्रे पर आ गया है लेकिन तनाव है कि दूर ही नहीं हो रहा। बढ़ते तनाव से बचने क लिए जानकारों ने, आध्यात्मिक गुरुओं ने ध्यान साधना को सबसे बेहतर उपाय बताया है। हां बेशक हममें से बहुत से लोग प्रतिदिन ध्यान का अभ्यास भी करते होंगे लेकिन बहुत से लोगों की एक समस्या होगी कि ध्यान में मन एकाग्र नहीं हो पाता। इस बाबत धर्म वैज्ञानिक डॉ जे जोशी “चैतन्य” की शाेध परक पुस्तक है सिद्धि रहस्य का विज्ञान। पुस्तक में ध्यान के दौरान मन की एकाग्रता को कैसे साधना है इसके 7 सरल स्टेप बताए गए हैं।
ये हैं वो सात स्टेप
डॉ जे जोशी के अनुसार मस्तिष्क विचारों के अविरल प्रभावों से ग्रसित रहता है। साधक के सामने एक ही प्रश्न रहता है कि साधना काल में मंत्रों की जगह विचारों की श्रृंखला स्थापित होती रहती है। समस्याओं के प्रवाह तेज होते हैं। एेसे समय साधना करना कठिन हो जाता है, एक पल में विचार बदल जाते हैं एवं धारणाएं रूप बदल− बदल कर सामने खड़ी हो जाती हैं।
विचार श्रृंखला का प्रवाह स्थिर क्यों नहीं है। इसके लिए विज्ञान ने कई प्रकार से प्रायोगिक ज्ञान वितरित किया है, जो केवल भाैतिक माध्यम से ही संपादित किया गया है। आध्यात्मिक विज्ञान की वैज्ञानिक दृष्टि कुछ और ही है।
आध्यात्मिक विज्ञान में विचार प्रवाह का सम्बंध ब्रह्मांड की 7 धाराओं से जुड़ा हुआ होता है। मस्तिष्क रचना मानव में एक सी होती है तथा चेतना प्रवाह के रसायन एक से होते हैं, फिर विचारों के अंतर प्रवाह का कारण क्यों? आप इसे सहज ही समझ जाएंगे।
1- विचार प्रवाह का पहला चरण भाेजन से है। शुद्ध सात्विक, स्वपाक, ईमानदारी पूर्वक प्राप्त किया, अच्छे मन से बनाया भोजन अच्छे प्रसन्न मन से किया गया भोज्य पदार्थ सार्थक विचारों का प्रणेता होता है।
2- नैतिक आचरण और सदव्यवहार श्रेष्ठ विचारों का प्रणेता है।
3- मोह, लाेभ, क्रोध, घृणा, ईर्ष्या से मुक्त मन श्रेष्ठ प्रवाह का उत्तरदायी है।
4- पवित्र स्थल, स्वच्छता, संतोष और शुद्ध संकल्प के प्रवाह उत्तम होते हैं।
5− आस्था, श्रद्धा, स्नेह, अपनत्व, भेदरहित जीवन प्रवाह के उत्तम मार्ग हैं।
6- श्रेष्ठ संस्कार, श्रेष्ठ गुरु, श्रेष्ठ सम्बंध से अच्छे प्रवाह को गति प्राप्त होती है।
7- इष्ट मित्र, उद्देश्य के आकार से प्रवाह की धारा सबल होती है।
यह सब आपके पास है, इसके उपरांत शंका रहित होकर साधक को इष्ट की लय की ओर जाना चाहिए।
धर्म वैज्ञानिक डॉ जे जोशी “चैतन्य”
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