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दान न देने पर माखन चोर ने फोड़ी साखियों की मटकी, जानिए क्या है ब्रज की अनूठी परंपरा

सांकरी खोर में फिर जीवंत हो उठी प्राचीन लीला। दही का दान न देने पर बालकृष्ण गोपियों संग रची थी ये लीला।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Mon, 31 Aug 2020 02:19 PM (IST)Updated: Mon, 31 Aug 2020 02:19 PM (IST)
दान न देने पर माखन चोर ने फोड़ी साखियों की मटकी, जानिए क्या है ब्रज की अनूठी परंपरा
दान न देने पर माखन चोर ने फोड़ी साखियों की मटकी, जानिए क्या है ब्रज की अनूठी परंपरा

आगरा, जेएनएन। तीन लोक के स्वामी योगीराज श्रीकृष्ण चाहे दुनिया के लिए भगवान हो, लेकिन ब्रजवासियों के लिए सिर्फ नंद के लाला व माखन चोर के नाम से ही प्रसिद्ध है। द्वापरयुग में जब गोपियों ने माखन चोर कन्हैया को दही का दान नहीं दिया। तो उन्होंने उनकी मटकी फोड़ दी। प्राचीन लीलाओं का बरसाना में मंचन किया जा रहा है। बूढ़ी लीला महोत्सव के दौरान सोमवार को सांकरी खोर में मटकी फोड़ लीला हुई। हंसी- ठिठोली के बीच छीना झपटी में यशोदा नंदन ने दही का दान ने देने पर सखियों की दही से भरी मटकी फोड़ दी। अद्भुत लीला को देखकर श्रद्धालु आनंद से भाव- विभोर हो उठे। 

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कस्बे में स्थित सांकरी खोर में प्राचीन द्वापरकालीन मटकी फोड़ लीला का आयोजन किया गया। मान्यता है कि आज से करीब साढ़े पांच हजार वर्ष पहले माखन चोर श्रीकृष्ण ने इसी स्थान पर खड़े होकर सखियों से दही का दान मांगा था। सखियों ने दही का दान नहीं दिया तो नंदलाल ने उनकी मटकी फोड़ दी। सोमवार को सांकरी खोर में कृष्णकालीन लीलाएं एक बार फिर जीवंत हो उठीं। राधारानी की सबसे प्रिय चित्रासखी के गांव चिकसोली के घर-घर में माखन चोरी करने के बाद श्रीकृष्ण अपने ग्वालों के साथ सांकरी खोर की सांकरी गली में पहुंच जाते हैं। जहां दूध, दही बेचने मथुरा जा रही सखियों का मार्ग अवरुद्ध कर उनसे मार्ग का दान मांगते हैं। बरसाना व नंदगांव के गोस्वामीजन के बीच पद गायन भी होता है। बरसाने की चली गुजरिया कर सोलह-श्रृंगार, उदविल कान्हा धेनु चरावै लूट लियौ नौ-लक्खा हार। एक चंचल गूजरी लेके दूध बेचने को निकली, सांकरी गली में मिल गए नंदलाल, दूध खायौ मटकी फोड़ी और दूध की कर दई कीच...आदि पदों का गुणगान किया गया। जब चिकसौली की चित्रासखी अपनी सखियों के संग दूध, दही बेचने के लिए निकलती हैं, तो रास्ते में खड़े श्रीकृष्ण गोपियों से कहते हैं ठाड़ी रहै ग्वालिनी दै जा हमारौ दान, यही दान के खातिर छोड़ आयौ बैकुंठ सौ धाम। इसके जवाब में सखियों ने कहा लाला दूध, दही नाए तेरे बाप कौ, और यह गली भी नाए तेरे बाप की, छाछ हमारी जो पीवै जो टहल करैं सब दिन की। मटकी फोड़ लीला के दौरान इन पदों को सुनकर श्रद्धालु आनंद से भाव विभोर हो गए। जब भगवान श्रीेकृष्ण के बार-बार कहने पर गोपियां नहीं मानीं तो माखन चोर ने अपने ग्वाल-वालों के साथ मिलकर मटकी छिनने का प्रयास किया। इसी छिना झपटी में चित्रा और उनकी सखियों की मटकी फूट जाती है। दही की मटकी फूटते ही श्रद्धालु दही प्रसाद के लिए टूट पड़े। यशोदा नंदन की इस अद्भुत लीला की एक झलक पाने के लिए श्रद्धालु लालायित नजर आ रहे थे। ब्रजाचार्य पीठ के प्रवक्ता घनश्याम राज भट्ट ने बताया कि कृष्ण द्वारा की गई यह लीला दूध, दही बेचने की कुप्रथा को रोकने के लिए की गई थी। द्वापरयुग में ब्रज की गोपिकाएं कंस को दूध दही बेचने के लिए मथुरा जाती थीं। जिसका विरोध भगवान श्रीकृष्ण ने करते हुए यह लीला की। 


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