Leopards को भा गया अरावली की पहाड़ियों का माहौल, आगरा के पास तेजी से बढ़ रहा है इनका कुनबा
अरावली की पहाड़ियों में तेंदुओं का कुनबा बढ़ रहा है। चार साल पहले आए दो-तीन तेंदुए अब 17 से अधिक हो गए हैं। प्रचुर भोजन और पानी की उपलब्धता के कारण तेंदुओं को यह जगह पसंद आई है। वन विभाग के अनुसार, यह शुभ संकेत है, लेकिन पर्यावरणविदों का कहना है कि तेंदुओं का संरक्षण ज़रूरी है ताकि यह क्षेत्र पर्यटन का केंद्र बन सके।

अरावली की पहाड़ियों में तेंदुओं की गतिविधियां देखी जा रही हैं। सांकेतिक तस्वीर का प्रयोग किया गया है।
अमित दीक्षित, आगरा। यूं तो अरावली की पहाड़ियों में जैव विविधता की कोई कमी नहीं है। पहाड़ियों में एक बार जो आ जाता है। उसकी वापसी होना, आसान नहीं होता है। अगर यकीन नहीं आता है तो तेंदुओं के परिवार को ले लीजिए।
चार साल पहले पहाड़ियों में दो से तीन तेंदुए आए थे। इसमें दो मादा तेंदुआ थीं। पहाड़ियों में प्रचुर मात्रा में खाना और पानी उपलब्ध होने के चलते तेंदुओं का परिवार तेजी से बढ़ने लगा। एक साल पूर्व एक मादा तेंदुआ दो से तीन शावकों के साथ भी दिखी थी।
तेंदुओं का परिवार अब बढ़कर 17 से अधिक हो गया है। वन विभाग के अधिकारियों के नजरिए से यह शुभ संकेत हैं। फतेहपुर सीकरी, खेरागढ़ से होकर अरावली की पहाड़ियां राजस्थान की सीमा को निर्धारित करती हैं।
इन पहाड़ियों में सियार, लोमड़ी सहित अन्य जीव जंतु हैं। खेरागढ़ और उसके आसपास के क्षेत्र में तेंदुए का परिवार नहीं पाया गया है।
हालांकि इसके विपरीत सूर सरोवर पक्षी विहार कीठम, बल्केश्वर और यमुना किनारा पर तेंदुए न सिर्फ दिखे हैं बल्कि वन विभाग की टीम ने इन्हें रेस्क्यू भी किया है। वन विभाग के अधिकारियों को भी इस बात का अंदाजा नहीं था।
सेवानिवृत्त मुख्य वन संरक्षक एसपी गुप्ता का कहना है कि तेंदुआ शांत क्षेत्र में सबसे अधिक रहना पसंद करता है। खासकर अगर खाना और पानी प्रचुर मात्रा में मिलता है तो यह जानवर वहीं पर बस जाता है। अरावली की पहाड़ियों में भी कुछ ऐसा ही हुआ।
चार साल पूर्व दो से तीन तेंदुए आए थे। जांच में पता चला कि दो नर और एक मादा थी। इसमें एक नर तेंदुए की मौत हो गई। एक तेंदुआ भटकता हुआ गांव में पहुंच गया था, जिसे ग्रामीणों ने खदेड़ दिया था।
मादा तेंदुआ ने तीन से चार शावकों को जन्म दिया। धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़ने लगी। खेरागढ़ के आसपास के गांवों में कई बार मादा तेंदुआ शावकों के साथ भी देखी गई है। इससे तेंदुओं का परिवार बढ़ने लगा।
इस परिवार में नए सदस्य जुड़ने लगे। वर्तमान में तेंदुओं की संख्या 17 से अधिक पहुंच गई है। पर्यावरण प्रेमी डा. देवाशीष भट्टाचार्य का कहना है कि तेंदुओं का परिवार बढ़ना अच्छी बात है। इनका ठीक तरीके से संरक्षण होना चाहिए।
अगर ठीक तरीके से संरक्षण होता है तो यह क्षेत्र पर्यटन का नया ठिकाना बन सकता है।
यह है तेंदुआ की खासियत
सेवानिवृत्त वन अधिकारी एमपी गौतम का कहना है कि शेर, बाघ की तुलना में तेंदुआ छोटा होता है। तेंदुए शक्तिशाली होने के साथ ही चतुर भी होते हैं। इनकी दौड़ने की गति 55 से 60 किमी प्रति घंटा के आसपास होती है।
शिकार पकड़ने की तकनीक और हमला करना की शैली अन्य जीवों से भिन्न होती है।

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