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    पहले हर चांदी के सिक्‍के पर होती थी लक्ष्‍मी जी, बड़ा रोचक है सिक्‍कों का यहां इतिहास

    By Prateek GuptaEdited By:
    Updated: Tue, 02 Nov 2021 01:57 PM (IST)

    मुगल काल से पूर्व सिक्कों पर मुद्रित होती थीं लक्ष्मी जी। गुप्त काल में हुई थी ये शुरुआत। मुगल बादशाह अकबर ने बंद कराया था सिक्कों पर लक्ष्मी जी का मुद्रण। सहिष्णु होने के बाद वर्ष 1604 में भगवान श्रीराम और सीताजी पर चांदी का सिक्का जारी किया था।

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    धनतेरस पर बाजार में बिक्री के लिए तैयार चांदी के सिक्‍के।

    आगरा, निर्लोष कुमार। दीपावली पर बाजार गुलजार है। धनतेरस व दीपावली पूजन की तैयारियों में लोग जुटे हुए हैं। पूजन के लिए लक्ष्मी-गणेश के चांदी के सिक्के खरीदने की परंपरा है। कभी धन की देवी लक्ष्मी जी भारतीय मुद्रा पर अंकित होती थीं। अकबर ने सिक्कों पर लक्ष्मी जी के मुद्रण को बंद करा दिया था। ऐसा मुगल काल से पूर्व गुलाम, खिलजी, तुगलक, सैयद और लोदी वंश के शासकों ने भी नहीं किया था।

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    भारतीय मुद्रा के इतिहास पर नजर डालें तो ईसा से करीब 600 से 200 वर्ष पूर्व तक मिलने वाले पंचमार्क सिक्के सबसे प्राचीन माने जाते हैं। चांदी, तांबे व कांसे के सिक्कों की कोई शेप नहीं होती थी, इन पर मछली, पेड़, मोर, यज्ञ वेदी, शंख, हाथी, बैल आदि चित्रित हैं। इन्हें राजाओं के बजाय व्यापारियों द्वारा जारी माना जाता है। पूर्वी उप्र व बिहार से यह सिक्के मिले हैं। गुप्त काल से सिक्कों पर लक्ष्मी जी के मुद्रण की शुरुआत मानी जाती है। इतिहासविद् राजकिशोर राजे बताते हैं अकबर ने सिक्कों से लक्ष्मी जी को हटवाकर कलमा का मुद्रण शुरू कराया था। ''हकीकत-ए-अकबर'' में राजे लिखते हैं कि प्राचीन काल में भारत में सिक्कों पर लक्ष्मी जी का चित्र उत्कीर्ण रहता था। वर्ष 1192 में मुहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को पराजित कर अपने गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक को सत्ता सौंपी, तब भी ऐसे सिक्के जारी रहे। अलाउद्दीन खिलजी, फिरोज तुगलक, सिकंदर लोदी ने भी इसमें कोई परिवर्तन नहीं किया। रांगेय राघव की किताब ''रांगेय राघव ग्रंथावली (भाग-10)'' में भी अकबर द्वारा सिक्कों पर से भारतीय नक्शा व लक्ष्मी जी को हटाने का जिक्र है।

    श्रीराम पर जारी किया था सिक्का

    दीपावली का पर्व भगवान श्रीराम के 14 वर्ष का वनवास काटकर अयोध्या वापस लौटने की खुशी में मनाया जाता है। अकबर ने सहिष्णु होने के बाद वर्ष 1604 में भगवान श्रीराम और सीताजी पर चांदी का सिक्का जारी किया था। पांच अधेला के सिक्के पर देवनागरी में राम सिया अंकित था। हिंदू धर्म के प्रतीक चिह्नों स्वास्तिक, त्रिशूल वाले चार ग्राम वजन के सिक्के भी उसने जारी किए थे। यह सिक्के अकबर की आगरा व फतेहपुर सीकरी स्थित टकसाल में ढाले गए थे।

    पहली शताब्दी में शुरू हुआ सिक्कों पर चेहरे का अंकन

    भारत में कुषाण शासकों के समय पहली शताब्दी में सिक्कों पर चेहरे का अंकन शुरू किया गया था। कनिष्क के समय के एक सिक्के पर मिली आकृति को लक्ष्मी जी का माना गया है। यह कुषाण देवी अर्डोक्शो का सिक्का है, जाे धन व समृद्धि की देवी थीं। सिक्के पर उनके हाथ में अनाज की फलियां दिखाई गई हैं। गुप्त काल में समुद्रगुप्त के समय सिक्कों पर देवी दुर्गा, चंद्रगुप्त द्वितीय के समय पद्मासन मुद्रा में लक्ष्मी जी और स्कंदगुप्त के समय धनलक्ष्मी का अंकन किया गया। हालांकि गुप्त काल के सिक्कों पर अंकित देवी के मुद्रण को इतिहासकार लक्ष्मी जी मानने पर एकमत नहीं हैं। राजपूत काल में सिक्कों पर देवी का मुद्रण लक्ष्मी जी मानकर किया गया। गहड़वाल शासक गोविंदचंद्र गहड़वाल के समय 12वीं शताब्दी में सर्वाधिक लक्ष्मी जी के मुद्रण वाले सिक्के जारी किए गए थे। कल्याणी के कलचुरी वंश के शासकों ने भी लक्ष्मी जी के सिक्के जारी किए। इसके बाद लंबे समय तक सिक्कों पर एक तरफ लक्ष्मी जी और दूसरी ओर राजाओं के नाम का मुद्रण होता रहा।