तब्लीगी जमात के बारे क्या जानते हैं ? जिसकी चर्चा निजामुददीन से शुरू हुई पूरे देश में फैली
तब्लीगी जमात की स्थापना 1927 में एक सुधारवादी धार्मिक आंदोलन के तौर पर मोहम्मद इलियास कांधलवी ने की थी। यह धार्मिक आंदोलन इस्लाम की देवबंदी विचार धारा से प्रभावित और प्रेरित है।
आगरा, तनु गुप्ता। पिछले 24 घंटे में बड़ी तेजी से चर्चा में आए तब्लीगी जमात के बारे में जानने के लिए हर कोई उत्सुक है। जिस कोरोना वायरस के संक्रमण पर भारत सरकार ने लॉकडाउन के जरीये काफी हद तक काबू पाने की कोशिश की। एक तबलीगी जमात के आयोजन के चलते वो कोशिश ढेर होती दिख रही है। राजधानी दिल्ली के निजामुददीन इलाके में तबलीगी जमात में शामिल लोगों की मौत और बड़े पैमाने पर संदिग्ध पाए जाने के उप्र शासन सक्रिय हुआ। डीजीपी के आदेश के बाद आगरा एलआइयू ने आगरा से तीन, एटा से दो, मथुरा से दो और एक फीरोजाबाद के व्यक्ति के शामिल होने की रिपोर्ट दी थी। रिपोर्ट का यह आंकड़ा काफी कम निकला। शासन से मिले निर्देशों के बाद आगरा में भी पुलिस प्रशासन ने जांच शुरू की। मुस्लिम बस्तियों में ऑपरेशन क्लीन शुरू किया और शाम होते होते कोरोना के बम सरीखे सा विस्फोट हो गया। एक बार में कोरोना वायरस के 89 संदिग्ध पाए गए। इनमें से 28 लोग वे हैं, जो निजामुद्दीन से लौटे हैं। तब्लीगी जमात क्या है। ये कैसे शुरु हुआ और क्या काम करता है। इसके बारेे में जागरण डॉट कॉम ने भारतीय मुस्लिम विकास परिषद के अध्यक्ष शमी अगाई से बात की।
शमी अगाई के अनुसार तब्लीगी जमात यानी मुस्लिमों में ऐसे लोगों का समूह जो धर्म के प्रचार-प्रसार को समर्पित हो। तब्लीगी जमात की स्थापना 1927 में एक सुधारवादी धार्मिक आंदोलन के तौर पर मोहम्मद इलियास कांधलवी ने की थी। यह धार्मिक आंदोलन इस्लाम की देवबंदी विचार धारा से प्रभावित और प्रेरित है। मोहम्मद इलियास का जन्म मुजफ्फरनगर जिले के कांधला गांव में हुआ था। कांधला गांव में जन्म होने की वजह से ही उनके नाम में कांधलवी लगता है। उनके पिता मोहम्मद इस्माईल थे और माता का नाम सफिया था। एक स्थानीय मदरसे में उन्होंने एक चौथाई कुरान को मौखिक तौर पर याद किया। अपने पिता के मार्गदर्शन में दिल्ली के निजामुद्दीन में कुरान को पूरा याद किया। उसके बाद अरबी और फारसी की शुरुआती किताबों को पढ़ा। बाद में वह रशीद अहमद गंगोही के साथ रहने लगे। 1905 में रशीद गंगोही का निधन हो गया। 1908 में मोहम्मद इलियास ने दारुल उलूम में दाखिला लिया।
मेवात से शुरू हुआ यह आंदोलन?
हरियाणा के मेवात इलाके में बड़ी संख्या में मुस्लिम रहते थे। इनमें से ज्यादातर काफी बाद में इस्लाम धर्म को स्वीकार किया था। 20वीं सदी में उस इलाके में मिशनरी ने काम शुरू किया। बहुत से मेव मुसलमान ने मिशनरी के प्रभाव में आकर इस्लाम धर्म का त्याग कर दिया। यहीं से इलियास कांधलवी को मेवाती मुसलमानों के बीच जाकर इस्लाम को मजबूत करने का ख्याल आया। उस समय तक वह सहारनपुर के मदरसा मजाहिरुल उलूम में पढ़ा रहे थे। वहां से पढ़ाना छोड़ दिया और मेव मुस्लिमों के बीच काम शुरू कर दिया। 1927 में तबलीगी जमात की स्थापना की ताकि गांव-गांव जाकर लोगों के बीच इस्लाम की शिक्षा का प्रचार प्रसार किया जाए।
क्या होता है मरकज
तब्लीगी जमात के लोग पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। बड़े-बड़े शहरों में उनका एक सेंटर होता है जहां जमात के लोग जमा होते हैं। उसी को मरकज कहा जाता है। वैसे भी उर्दू में मरकज जो है वह इंग्लिश के सेंटर और हिंदी के केंद्र के लिए इस्तेमाल होता है।
जमात क्या होती है?
शमी आगाई ने अनुसार उर्दू में इस्तेमाल होने वाले जमात शब्द का मतलब किसी एक खास मकसद से इकट्ठा होने वाले लोगों का समूह है। तब्लीगी जमात के संबंध में बात करें तो यहां जमात ऐसे लोगों के समूह को कहा जाता है जो कुछ दिनों के लिए खुद को पूरी तरह तबलीगी जमात को समर्पित कर देते हैं। वे गांव-गांव, शहर-शहर, घर-घर जाकर लोगों के बीच कुरान शरीफ की सही जानकारी देते हैं। इस तरह उनके घूमने को गश्त कहा जाता है। जमात का एक मुखिया होता है जिसको अमीर-ए-जमात कहा जाता है। गश्त के बाद का जो समय होता है, उसका इस्तेमाल वे लोग नमाज, कुरान की तिलावत और जिक्र (प्रवचन) में करते हैं। जमात से लोग एक निश्चित समय के लिए जुड़ते हैं। कोई लोग तीन दिन के लिए, कोई 40 दिन के लिए, कोई चार महीने के लिए तो कोई साल भर के लिए शामिल होते हैं। इस अवधि के समाप्त होने के बाद ही वे अपने घरों को लौटते हैं और रोजाना के कामों में लगते हैं।
तब्लीगी जमात के सिद्धांत
- ईमान यानी पूरी तरह भगवान पर भरोसा करना।
- नमाज पढ़ना
- इल्म ओ जिक्र यानी धर्म से संबंधित बातें करना
- इकराम-ए-मुस्लिम यानी मुसलमानों का आपस में एक-दूसरे का सम्मान करना और मदद करना।
- इख्लास-ए-नीयत यानी नीयत का साफ होना
- रोजाना के कामों से दूर होना
तालीम और फजाइल-ए-आमाल
फजाइल-ए-आमाल जिसका मतलब हुआ अच्छे कामों के फायदे या खासियतें। फजाइल-ए-आमाल तब्लीगी जमात के बीच पवित्र किताब है। उस किताब में उनके छह सिद्धांत से संबंधित बातें है। दोपहर की नमाज के बाद तब्लीगी जमात से जुड़े लोग एक कोने में जमा हो जाते हैं। वहां कोई एक व्यक्ति फजाइल-ए-आमाल पढ़ता है और बाकी लोग ध्यान से सुनते हैं।
सालाना इज्तिमा या जलसा
रायवंड का इज्तिमा
आमतौर पर अक्टूबर के महीने में इस इज्तिमा का आयोजन होता है। यह जलसा तीन दिनों के लिए पाकिस्तान में लाहौर के करीब रायवंड में होता है। इसमें दुनिया भर के तब्लीगी जमात से जुड़े लोग शिरकत करते हैं। पाकिस्तान में भी तब्लीगी जमात से कोरोना फैलने का अंदेशा है।
बांग्लादेश का इज्तिमा
यह भी आमतौर पर साल के आखिर में आयोजित होता है। यह बांग्लादेश के कई अलग-अलग शहरों में कई दिनों तक जारी रहता है। इस इज्तिमा में पूरा बांग्लादेश उमड़ पड़ता है।
भोपाल इज्तिमा
साल के आखिरी में यानी दिसंबर में मध्य प्रदेश के भोपाल में यह इज्तिमा होता है। इसमें लाखों लोग शिरकत करते हैं। पहले यह भोपाल की मस्जिद ताजुल मसाजिद में होता था। वहां जगह कम पड़ने लगी तो शहर के करीब में ईट खेड़ी नाम की जगह पर होने लगा।
तब्लीगी जमात के मरकज
भारत में दिल्ली के निजामुद्दीन में बंगले वाली मस्जिद में तब्लीगी जमात का मरकज है। दुनिया भर में तब्लीगी जमात के बीच इस मरकज की हैसियत तीर्थस्थल जैसी है।
रायवंड
पाकिस्तान के रायवंड में मदनी मस्जिद में तब्लीगी जमात का मरकज है। ये दोनों अहम मरकज हैं। बाकि दुनिया भर में इसके कई मरकज हैं।