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माथे पर तिलक लगाने से खुलता है भाग्य का द्वार, जानिए क्या है धर्म के साथ वैज्ञानिक आधार

तिलक हमेशा दोनों भौहों के बीच आज्ञाचक्र पर भ्रुकुटी पर किया जाता है। इसे चेतना केंद्र भी कहते हैं। पुरुष को चंदन व स्त्री को कुंकुंम भाल में लगाना मंगल कारक होता है। तिलक स्थान पर धन्नजय प्राण का रहता है।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Sun, 04 Apr 2021 04:50 PM (IST)Updated: Sun, 04 Apr 2021 04:50 PM (IST)
माथे पर तिलक लगाने से खुलता है भाग्य का द्वार, जानिए क्या है धर्म के साथ वैज्ञानिक आधार
सनातन धर्म में तिलक लगाने की परंपरा का है वैज्ञानिक आधार।

आगरा, तनु गुप्ता। सनातन धर्म में तिलक लगाने की विशिष्ट मान्यता है। हिन्दू परिवारों में किसी भी शुभ कार्य के आरंभ से पहले तिलक या टीका लगाने का विधान है। ऐसा करने से कार्य सुचारू रूप से सम्पन्न होने के अवसर बढ़ जाने की मान्यता है। यह भी माना जाता है कि तिलक लगाने से समाज में मस्तिष्क हमेशा गर्व से ऊंचा रहता। तिलक लगाने की परंपरा के बारे में धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जय जोशी ने इसके पीछे छुपे वैज्ञानिक आधार को साझा किया। उन्होंने बताया कि शास्त्रानुसार यदि द्विज (ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य) तिलक नहीं लगाते हैं तो उन्हें "चाण्डाल" कहते हैं। तिलक हमेशा दोनों भौहों के बीच "आज्ञाचक्र" पर भ्रुकुटी पर किया जाता है। इसे चेतना केंद्र भी कहते हैं। पुरुष को चंदन व स्त्री को कुंकुंम भाल में लगाना मंगल कारक होता है। तिलक स्थान पर धन्नजय प्राण का रहता है। उसको जागृत करने तिलक लगाना ही चाहिए। जो हमें आध्यात्मिक मार्ग की ओर बढ़ाता है।

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पर्वताग्रे नदीतीरे रामक्षेत्रे विशेषतः। सिन्धुतिरे च वल्मिके तुलसीमूलमाश्रीताः।।

मृदएतास्तु संपाद्या वर्जयेदन्यमृत्तिका। द्वारवत्युद्भवाद्गोपी चंदनादुर्धपुण्ड्रकम्।।

चंदन हमेशा पर्वत के नोक का, नदी तट की मिट्टी का, पुण्य तीर्थ का, सिंधु नदी के तट का, चिंटी की बाँबी व तुलसी के मूल की मिट्टी का या चंदन वही उत्तम चंदन है। तिलक हमेंशा चंदन या कुमकुम का ही करना चाहिए। कुमकुम हल्दी से बना हो तो उत्तम होता हैं।

मूल

स्नाने दाने जपे होमो देवता पितृकर्म च।

तत्सर्वं निष्फलं यान्ति ललाटे तिलकं विना।।

तिलक के बिना ही यदि तिर्थ स्नान, जप कर्म, दानकर्म, यग्य होमादि, पितर हेतु श्राध्धादि कर्म तथा देवो का पुजनार्चन कर्म ये सभी कर्म तिलक न करने से कर्म निष्फल होता है।

तिलक के प्रकार

हिंदू धर्म में जितने संतों के मत हैं, जितने पंथ है, संप्रदाय हैं उन सबके अपने अलग-अलग तिलक होते हैं। 

− शैव परंपरा में ललाट पर चंदन की आड़ी रेखा या त्रिपुंड लगाया जाता है।

- शाक्त सिंदूर का तिलक लगाते हैं। सिंदूर उग्रता का प्रतीक है। यह साधक की शक्ति या तेज बढ़ाने में सहायक माना जाता है।

- वैष्णव परंपरा में चौंसठ प्रकार के तिलक बताए गए हैं। इनमें प्रमुख हैं-

लालश्री तिलक- इसमें आसपास चंदन की व बीच में कुंकुम या हल्दी की खड़ी रेखा बनी होती है।

विष्णुस्वामी तिलक- यह तिलक माथे पर दो चौड़ी खड़ी रेखाओं से बनता है। यह तिलक संकरा होते हुए भोहों के बीच तक आता है।

रामानंद तिलक- विष्णुस्वामी तिलक के बीच में कुंकुम से खड़ी रेखा देने से रामानंदी तिलक बनता है।

श्यामश्री तिलक- इसे कृष्ण उपासक वैष्णव लगाते हैं। इसमें आसपास गोपीचंदन की तथा बीच में काले रंग की मोटी खड़ी रेखा होती है।

अन्य तिलक- गाणपत्य, तांत्रिक, कापालिक आदि के भिन्न तिलक होते हैं। साधु व संन्यासी भस्म का तिलक लगाते हैं।

चंदन का तिलक- चंदन का तिलक लगाने से पापों का नाश होता है, व्यक्ति संकटों से बचता है, उस पर लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है, ज्ञानतंतु संयमित व सक्रिय रहते हैं। चंदन का तिलक ताजगी लाता है और ज्ञान तंतुओं की क्रियाशीलता बढ़ाता है। चन्दन के प्रकार : हरि चंदन, गोपी चंदन, सफेद चंदन, लाल चंदन, गोमती और गोकुल चंदन।

कुमकुम का तिलक- कुमकुम का तिलक तेजस्विता प्रदान करता है।

मिट्टी का तिलक- विशुद्ध मिट्टी के तिलक से बुद्धि-वृद्धि और पुण्य फल की प्राप्ति होती है।

केसर का तिलक- केसर का तिलक लगाने से सात्विक गुणों और सदाचार की भावना बढ़ती है। इससे बृहस्पति ग्रह का बल भी बढ़ जाता है और भाग्यवृद्धि होती है।

हल्दी का तिलक- हल्दी से युक्त तिलक लगाने से त्वचा शुद्ध होती है।

दही का तिलक- दही का तिलक लगाने से चंद्र बल बढ़ता है और मन-मस्तिष्क में शीतलता प्रदान होती है।

इत्र का तिलक- इत्र कई प्रकार के होते हैं। अलग अलग इत्र के अलग अलग फायदे होते हैं। इत्र का तिलक लगाने से शुक्र बल बढ़ता हैं और व्यक्ति के मन-मस्तिष्क में शांति और प्रसन्नता रहती है।

तिलकों का मिश्रण- अष्टगन्ध में आठ पदार्थ होते हैं- कुंकुम, अगर, कस्तुरी, चन्द्रभाग, त्रिपुरा, गोरोचन, तमाल, जल आदि। पंचगंध में गोरोचन, चंदन, केसर, कस्तूरी और देशी कपूर मिलाया जाता है। गंधत्रय में सिंदूर, हल्दी और कुमकुम मिलाया जाता है। यक्षकर्दम में अगर, केसर, कपूर, कस्तूरी, चंदन, गोरोचन, हिंगुल, रतांजनी, अम्बर, स्वर्णपत्र, मिर्च और कंकोल सम्मिलित होते हैं।

गोरोचन गोरोचन आज के जमाने में एक दुर्लभ वस्तु हो गई है। गोरोचन गाय के शरीर से प्राप्त होता है। कुछ विद्वान का मत है कि यह गाय के मस्तक में पाया जाता है, किंतु वस्तुतः इसका नाम 'गोपित्त' है, यानी कि गाय का पित्त। हल्की लालिमायुक्त पीले रंग का यह एक अति सुगंधित पदार्थ है, जो मोम की तरह जमा हुआ सा होता है। अनेक औषधियों में इसका प्रयोग होता है। यंत्र लेखन, तंत्र साधना तथा सामान्य पूजा में भी अष्टगंध-चंदन निर्माण में गोरोचन की अहम भूमिका है। गोरोचन का नियमित तिलक लगाने से समस्त ग्रहदोष नष्ट होते हैं। आध्यात्मिक साधनाओं के लिए गारोचन बहुत लाभदायी है। 


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