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    कुंडली का यह योग बनाता है राजा और रंक भी, जानिए कितनी तरह का होता है ये

    By Tanu GuptaEdited By:
    Updated: Sun, 02 Jun 2019 06:37 PM (IST)

    कालसर्प एक ऐसा योग है जो कुंडली के जिस भी हिस्से में बनता है उस हिस्से के ग्रहों को कार्य करने से रोक देता है। 12 प्रकार का होता है ये योग।

    कुंडली का यह योग बनाता है राजा और रंक भी, जानिए कितनी तरह का होता है ये

    आगरा, जेएनएन। जन्‍म से पूर्व ग्रह नक्षत्र जीवन काे प्रभावित करना शुरु कर देते हैं। ज्‍योतिषशास्‍त्र के अनुसार जीवन का हर कर्म ग्रह निर्धारित करते हैं और ग्रहों की चाल को हमारे पूर्वाध बनाते हैं। जन्‍म गणना पर  आधारित जन्‍म कुंडली वर्तमान और भविष्‍य को दशा और दिशा देती है। ज्‍योतिषाचार्य डॉ शोनू मेहरोत्रा  के अनुसार हमारी कुंडली में कई योग बनते हैं, जिनमें से कुछ शुभ तो कुछ अशुभ, वहीं कुछ योग ऐसे भी होते हैं जो हमें राजा बना सकते हैं तो कुछ रंक भी बना सकते हैं। इन्हीं योगों में से एक कालसर्प योग होता है।

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    कालसर्प योग जिसे सामान्य भाषा में कालसर्प दोष भी कहा जाता है। यह एक ऐसा योग है जो कुंडली के जिस भी हिस्से में बनता है उस हिस्से के ग्रहों को कार्य करने से रोक देता है। डॉ शोनू कहती हैं कि जब कुंडली के सभी ग्रह राहु और केतु के बीच में आ जाते हैं तो यह कालसर्प योग या कालसर्प दोष बनाता है। ऐसी कुंडली वाले जातक को जीवन में कई परेशानियों का सामना तो करना ही पड़ता है लेकिन उसके द्वारा किए गए प्रयास भी विशेष फल नहीं दे पाते।

    12 प्रकार के होते हैं कालसर्प योग 

    डॉ शोनू बताती हैं कि सामान्यतौर पर बस कालसर्प योग को ही जाना जाता है, ये बहुत ही कम लोग जानते हैं कि ये योग भी 12 प्रकार का होता है और श्रेणी के अनुसार ही इसका प्रभाव कम, ज्यादा या भयावह होता है।

    अनंत कालसर्प योग

    जब किसी जातक के कुंडली के पहले भाव में राहु और सातवें भाव में केतु हो, इसके अलावा सभी अन्य ग्रह इन्हीं के बीच में आ जाएं तो यह अनंत कालसर्प योग बनाता है, ऐसे व्यक्ति को प्रेम और विवाह से जुड़ी कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यह योग बीमारियों का भी संकेत होता है, ऐसे व्यक्ति को जीवनकाल में कई बीमारियों को भी झेलना पड़ता है। ऐसे इंसान मानसिक रोग का भी शिकार हो सकते है।

    कुलिक कालसर्प योग

    अगर किसी जातक की कुंडली के दूसरे घर में राहु और आठवें घर में केतु मौजूद हो तो यहां कुलिक कालसर्प योग बनता है। यह योग जातक के जीवन में कई प्रकार की कठिनाइयां लेकर आता है। ऐसे इंसान का स्वास्थ्य तो खराब रहता ही है, साथ ही शरीर के किसी भाग पर इतना गहरा आघात पहुंच सकता है कि वह अंग भंग भी हो सकता है। साथ ही इस व्यक्ति का वैवाहिक जीवन भी सुखद नहीं हो पाता। कभी-कभी दंपत्ति के बीच उत्पन्न विवाद तलाक में भी तब्दील हो जाता है।

    वासुकि कालसर्प योग

    जब किसी जातक की कुंडली के तीसरे भाव में राहु और नौवें भाव में केतु स्थित हो, इसके अलावा अन्य सभी ग्रह इन दो पापी ग्रहों के बीच में आ जाएं तो यहां वासुकि कालसर्प योग का निर्माण होता है। यह योग जातक के जीवन में विभिन्न प्रकार की समस्याएं लेकर आता है।

    कुंडली में वासुकि कालसर्प योग की उपस्थिति पितृदोष की तरफ भी इशारा करती है। जिस भी व्यक्ति की कुंडली में कालसर्प दोष और पितृदोष एक साथ हों तो यह उस जातक की कुंडली पर ही ग्रहण साबित होता है। ऐसे व्यक्ति को स्वयं तो परेशानियां झेलनी ही पड़ती हैं लेकिन साथ में उसका परिवार भी कई समस्याओं से घिर जाता है।

    शंखपाल कालसर्प योग

    कुंडली के चौथे भाव में राहु, दसवें भाव में केतु की मौजूदगी के साथ सभी ग्रहों का इन दोनों के बीच में आ जाना शंखपाल कालसर्प योग का निर्माण करता है। इस कालसर्प दोष से पीड़ित व्यक्ति बुरी संगत में पड़कर बुरे कार्यों में लिप्त हो जाता है। ऐसे लोग बाहर ही नहीं बल्कि घर में भी चोरियां करते हैं। ऐसे व्यक्ति को व्यवसायिक क्षेत्र में भी हर बार असफलता का ही सामना करना पड़ता है। पति-पत्नी के साथ झगड़ा, वैवाहिक जीवन में मतभेद आदि सभी इसी योग का ही परिणाम है। 

    पदम कालसर्प योग

    राहु का पांचवें घर में और केतु का ग्यारहवें घर में बैठना, अन्य ग्रहों का का इनके बीच में आजाना पदम कालसर्प योग बनाता है। ऐसी कुंडली वाले जातक को संतानहीनता का सामना करना पड़ता है। अगर संतान होती भी है तो वह शारीरिक या मानसिक रूप से विकलांगता का शिकार होती है। अगर यह योग ज्यादा बलवान हो तो व्यक्ति ऐसी संतान का पिता या माता बनते हैं जिन्हें समाज मान्यता नहीं देता।

    महापदम कालसर्प योग

    कुंडली के छठे घर में राहु और बारहवें घर में केतु के बैठने, साथ ही सभी ग्रहों का इनके बीच में आजाने के कारण इस योग का निर्माण निर्माण होता है। यह दोष आपके लिए कितना गंभीर होगा यह बात कुंडली में इस योग की प्रबलता देखकर ही पता चल पाती है।

    पति-पत्नी के साथ जितनी नजदीकी बढ़ती है उतनी ही ज्यादा खटपट होने लगती है। इस दोष के कारण जातक को अपने जीवनसाथी से दूरी का सामना भी करना पड़ता है। इस कुंडली वाले जातक को एक लंबा समय विदेश में भी रहना पड़ता है परंतु फिर भी कोई विशेष फायदा नहीं होता।

    तक्षक कालसर्प योग

    कुंडली के सातवें घर में राहु और पहले घर में केतु बैठा हो, साथ ही अन्य सभी ग्रहों का इनके बीच आजाने की वजह से तक्षक कालसर्प योग बनता है। इस कुंडली वाले जातक सामान्य से अधिक मोटे हो जाते हैं, उनके शरीर और स्वास्थ्य ओअर विपरीत प्रभाव पड़ता है।

    इस योग के जातक सामान्य से भी छोटे कद के होते हैं और मानसिक विकार से ग्रस्त भी देखे जाते हैं। ऐसे लोगों का मानसिक विकास भी ठीक तरीके से नहीं हो पाता। ऐसे लोग मानसिक विकलांगता का भी शिकार हो जाते हैं।

    कारकोटक कालसर्प योग

    जातक की कुंडली में राहु का आठवें, केतु का दूसरे घर में बैठना और अन्य ग्रहों का इनके बीच में आजाना कारकोटक कालसर्प योग का निर्माण करता है। इस योग के प्रभाव में आकर जातक को बचपन से ही विभिन्न समस्याओं और बीमारियों का सामना करना पड़ता है। ये रोग बाल्यकाल तक बहुत परेशान करते हैं और किशोरावस्था में आते-आते इनका प्रभाव बहुत कम हो जाता है। लेकिन कई बार जातक को बचपन से ही माता-पिता का दुलार नहीं मिल पाता यहां तक कि परिवारवाले उसकी एक खराब छवि अपने दिमाग में बैठा लेते हैं।

    शंखचूड़ कालसर्प योग

    जातक की कुंडली के नौवें भाव में राहु, तीसरे घर में केतु के बैठने के साथ-साथ अन्य ग्रहों का उनके बीच में आ जाने की वजह से शंखचूड़ कालसर्प योग का निर्माण होता है। इस कालसर्प योग के होने की वजह से व्यक्ति पितृदोष से भी पीड़ित हो जाता है। ऐसा होने से जातक की किसमत को ग्रहण लग जाता है। उसके द्वारा की गई लाख कोशिशें भी फल नहीं दे पाती हैं। उसे अपने हर प्रयास में विघ्नों का सामना करना पड़ता है। ऐसे व्यक्ति को जीवन के हर क्षेत्र में असफलता का ही सामना करना पड़ता है।

    घातक कालसर्प योग

    राहु का कुंडली के दसवें घर में, केतु का चौथे घर में बैठना और अन्य सभी ग्रहों का इनके बीच में आजाना घातक कालसर्प योग बनाता है। यह योग संबंधित व्यक्ति के लिए भयंकर मुसीबतें लेकर आता है। ऐसे जातक के अपनी माता के साथ अच्छे संबंध नहीं होते इसलिए वे हमेशा उनके स्नेह से वंचित रहता है। अगर यह योग प्रबल होता है तो जन्म लेते ही जातक की मां की मृत्यु हो जाती है, इसलिए जातक को सौतेली माता के साथ जीवन व्यतीत करना पड़ता है। ऐसे कुंडली वाले जातक को अपना संपूर्ण जीवन माता-पिता से दूर रहकर ही गुजारना पड़ता है। 

    विषधर कालसर्प योग

    कुंडली के ग्यारहवें भाव में राहु का बैठना और पांचवें भाव में केतु का होना, साथ ही सभी ग्रहों का इनके बीच आजाना विषधर कालसर्प योग का निर्माण करता है। ऐसे व्यक्ति को एक ही स्थान पर टिककर रहने का अवसर नहीं मिलता। विषधर कालसर्प योग की वजह से व्यक्ति गैरकानूनी कार्यों में लिप्त होकर असम्मानजनक जीवन व्यतीत करने लगता है। इस योग की प्रबलता व्यक्ति को अंतरराष्ट्रीय स्तर का तस्कर या अपराधी भी बना देती है

    शेषनाग कालसर्प योग

    कुंडली में राहु अगर बारहवें भाव में हो और केतु छठे में आकर बैठ जाए, बाकी के ग्रह इनके बीच में आजाएं तो यह शेषनाग कालसर्प योग का निर्माण करता है। यह योग अन्य सभी कालसर्प योगों की तुलना में ज्यादा भयावह है क्योंकि यह व्यक्ति को आत्महत्या के लिए प्रेरित तो करता है, लेकिन व्यक्ति आत्महत्या कर नहीं पाता और तिल-तिल कर मरता है। यह व्यक्ति के जीवन में सिवाय परेशानियों के और कुछ नहीं लाता।

     

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