Move to Jagran APP

राधा के नाम में छुपे सैंकड़ों रहस्‍य, जानिए कैसे पड़ा लाडि़ली जी मंदिर नाम Agra News

राधा जी की बेटी के रूप में भट्ट जी ने की उपासना। प्राकट्य कर ब्रह्मांचल पर्वत पर की मंदिर की स्थापना। गोवर्धन परिक्रमा में है राधाकुंड में जल स्‍वरूप विराजमान।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Fri, 06 Sep 2019 04:58 PM (IST)Updated: Fri, 06 Sep 2019 04:58 PM (IST)
राधा के नाम में छुपे सैंकड़ों रहस्‍य, जानिए कैसे पड़ा लाडि़ली जी मंदिर नाम Agra News
राधा के नाम में छुपे सैंकड़ों रहस्‍य, जानिए कैसे पड़ा लाडि़ली जी मंदिर नाम Agra News

आगरा, विवेक दत्‍त। श्रीकृष्ण की प्राणल्हादनी शक्ति श्रीराधा को लाडो का संबोधन राधा उपासक अनन्य भक्त, मानस पिता और बरसाना में ब्रह्मांचल पर्वत से उनका प्राकट्य करने वाले श्रील नारायण भट्ट ने दिया था। दक्षिण भारत से आए नारायण भट्ट ने राधा रानी की उपासना अपनी बेटी के रूप में की और अपनी अनन्यता को प्रतिपादित करते हुए राधा को लाडो, लड़ैती, लाडली कहकर पुकारा। इसीलिए ब्रजवासी द्वारा बरसाना मंदिर को लाडली जी मंदिर के नाम से पुकारा जाता है।

loksabha election banner

नारायण चरितामृत के अनुसार भट्ट जी ने 1602 में बरसाना में ब्रह्मांचल पर्वत पर राधा जी का प्राकट्य कर तत्कालीन राजाओं से मंदिर की स्थापना की और माध्य संप्रदाय के अनुसार पूजा-अर्चना की संहिता बनाई। अपनी भक्ति उपासना में राधा जी को बेटी स्वरूप में लाड लड़ाते हुए लाडो कहकर पुकारा। कहा जाता है कि दक्षिण से प्रस्थान करने के बाद नारायण भट्ट जी को गोदावरी के परिक्रमा के दौरान स्वयं ठाकुर जी ने प्रकट होकर विलुप्त ब्रज की स्थापना करने को आदेश दिया, तो भट्ट जी ने कहा कि मैं कैसे जान पाऊंगा कि ब्रज का यह कौन सा स्थल है। ठाकुर जी ने कहा कि मैं तुम्हारे साथ रहूंगा और इतना कहकर ठाकुर लाडलेय के विग्रह के रूप में भट्ट जी के साथ ब्रज आए। ब्रज आने पर सबसे पहले भट्ट जी सात साल राधाकुंड साधाना की और उसके बाद बरसाना के निकट ऊंचागांव को अपना स्थाई स्थान बनाया, जहां दाऊजी का प्रकाट्य कर मंदिर की स्थापना की। भट्ट जी के वंशज आज भी ऊंचागांव ब्रजाचार्य पीठ पर निवास करते हैं।

काशी के विद्वानों द्वारा ब्रजाचार्य की उपाधि से विभूषित श्रील़ नारायण भट्ट को राधारानी का प्राकट्य करने के अलावा ब्रज के विलुप्त कृष्णकालीन लीला स्थलों की खोजकर उनकी स्थापना, ब्रज के ग्वाल-बालों के माध्यम से रासलीलानुकरण और ब्रज यात्रा की शुरुआत कने का श्रेय भी जाता है, जिसकी पुष्टि मथुरा के कलेक्टर रहे और संग्रहालय के संस्थापक एफएस ग्राउस ने ब्रज पर अपने शोधपरक ग्रंथ डिस्ट्रिक्ट मेमोयर ऑफ मथुरा में की है। अफसोस की बात यह की ब्रज की राधाकृष्ण की संस्कृति का महत्वपूर्ण केंद्र उ. प्र. ब्रज तीर्थ विकास परिषद की नजर से दूर बना हुआ है।

संतान का वरदान देती हैं जल स्वरूपा राधारानी

विश्वास ही आस्था और धर्म का आधार है । ब्रजभूमि की महारानी राधारानी गोवर्धन परिक्रमा के राधाकुंड में जल स्वरूप में विराजमान हैं। दुनिया भर की चिकित्सा से निराश दंपति आंखों में सूनी गोद का दर्द और दिल में कुलदीपक की चाहत समेटे इस दरबार में अपना आंचल फैलाने को राधाकुंड में विश्वास के गोते लगाते हैं।

मथुरा से 26 किलोमीटर दूर गिरिराज तलहटी के राधाकुंड का बड़ा धार्मिक महत्व बड़ा ही अछ्वुत है। धार्मिक मान्यता के अनुसार अहोई अष्टमी पर राधाकुंड में आधी रात को स्नान करने वाले दंपती को संतान की प्राप्ति होती है। स्नान के उपरांत एक पसंदीदा फल छोडऩे का विधान भी बताया जाता है। पेठा फल का दान भी परंपरा में शामिल है। संतान प्राप्ति का विश्वास निसंतान दंपति को सात समंदर पार से खींच लाता है। चिकित्सा से निराश तमाम देशी और विदेशी दंपती यहां आकर अपना आंचल फैलाते हैं। तथा जिनको संतान प्राप्ति हो गई वह राधारानी का आभार जताने को स्नान करते हैं। पंडित रामेश्वर वशिष्ठ ने बताया कि मान्यता है कि अगर कोई निसंतान दंपती अहोई अष्टमी यानि कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी की मध्य रात्रि राधा कुंड में स्नान करता है तो जल्द ही उनकी सूनी गोद में बच्चे की किलकारियां गूंजने लगती हैं। यहां स्नान करने वाली महिलाओं की राधारानी उनकी गोद भरती हैं।

इतिहास के पन्नों में यूं है दर्ज

राधा कुंड नगरी कृष्ण से पूर्व राक्षस अरिष्टासुर की नगरी अरीठ वन थी। बताया जाता है कि अरिष्टासुर अति बलवान व तेज दहाड़ वाला था। उसकी दहाड़ से आसपास के नगरों में गर्भवती महिलाओं के गर्भ गिर जाते थे। इससे ब्रजवासी खासे परेशान थे। एक बार गोवर्धन पर्वत के पास में गाय चराने के दौरान अरिष्टासुर नामक राक्षस ने बछड़े का रूप रखकर भगवान कृष्ण को मारने की कोशिश की। कान्हा के हाथों उस बछड़े का वध करने की वजह से कान्हा पर गोहत्या का पाप लग गया। इस पाप के प्रायश्चित के तौर पर श्रीकृष्ण ने अपनी बांसुरी से कुंड बनवाया और तीर्थ स्थानों के जल को वहां एकत्रित किया। इसी तरह राधारानी ने भी अपने कंगन की सहायता से कुंड खोदा और वहां भी तीर्थ स्थान के जल एकत्र किया। जब दोनों कुंड तीर्थ स्थानों के जल से भर गए तब कृष्ण और राधा ने रास किया। राधा से प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने उन्हें वरदान दिया कि जो भी निसंतान दंपती अहोई अष्टमी की रात यहां स्नान करेगा, उसे सालभर के भीतर ही संतान की प्राप्ति अवश्य होगी। इसका उल्लेख ब्रह्म पुराण व गर्ग संहिता के गिर्राज खंड में मिलता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.