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    Sharad Purnima: दमा रोगियों के लिए वरदान शरद की एक रात, जानिए क्‍या है रहस्‍य Agra News

    By Tanu GuptaEdited By:
    Updated: Sat, 12 Oct 2019 11:30 PM (IST)

    चन्द्रमा का ओज सबसे तेजवान एवं ऊर्जावान होता है इसके साथ ही शीत ऋतु का प्रारंभ होता है।

    Sharad Purnima: दमा रोगियों के लिए वरदान शरद की एक रात, जानिए क्‍या है रहस्‍य Agra News

    आगरा, तनु गुप्‍ता। शीतल चांदनी की आभा लिये शरद पूर्णिमा की रात रविवार 13 अक्‍टूबर को है। शरद के चांद की चांदनी सिर्फ अपनी शीतलता के लिए महत्‍व नहीं रखती बल्कि दिव्‍य औषधिए गुणों से भी पूरिपूर्ण होती है। धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी के अनुसार शरद पूर्णिमा की रात में चन्द्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है। वह अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण रहता है। इस रात्रि चन्द्रमा का ओज सबसे तेजवान एवं ऊर्जावान होता है, इसके साथ ही शीत ऋतु का प्रारंभ होता है। शीत ऋतु में जठराग्नि तेज हो जाती है और मानव शरीर स्वास्थ्य से परिपूर्ण होता है। कहा जाता है कि लंकाधिपति रावण शरद पूर्णिमा की रात किरणों को दर्पण के माध्यम से अपनी नाभि पर ग्रहण करता था। इस प्रक्रिया से उसे पुनर्योवन शक्ति प्राप्त होती थी।

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    धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी

    वैज्ञानिक महत्व, क्या कहते हैं शोध

    पंडित वैभव जोशी बताते हैं कि अध्ययन के अनुसार शरद पूर्णिमा पर औषधियों की स्पंदन क्षमता अधिक होती है। रसाकर्षण के कारण जब अंदर का पदार्थ सांद्र होने लगता है, तब रिक्तिकाओं से विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है। कहा जाता है कि लंकाधिपति रावण शरद पूर्णिमा की रात किरणों को दर्पण के माध्यम से अपनी नाभि पर ग्रहण करता था। इस प्रक्रिया से उसे पुनर्योवन शक्ति प्राप्त होती थी। चांदनी रात में 10 से मध्यरात्रि 12 बजे के बीच कम वस्त्रों में घूमने वाले व्यक्ति को ऊर्जा प्राप्त होती है। सोमचक्र, नक्षत्रीय चक्र और आश्विन के त्रिकोण के कारण शरद ऋतु से ऊर्जा का संग्रह होता है और बसंत में निग्रह होता है। अध्ययन के अनुसार दुग्ध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है। यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है। इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है। यह परंपरा विज्ञान पर आधारित है। शोध के अनुसार खीर को चांदी के पात्र में सेवन करना चाहिए। चांदी में प्रतिरोधकता अधिक होती है। इससे विषाणु दूर रहते हैं।

    यह हैं खास बातें

    आयुर्वेद की परंपरा में शीत ऋतु में गर्म दूध का सेवन अच्छा माना जाता है। ऐसा कह सकते हैं कि इसी दिन से रात में गर्म दूध पीने की शुरुआत की जानी चाहिए। वर्षा ऋतु में दूध का सेवन वर्जित माना जाता है। आध्यात्मिक पक्ष इस प्रकार होता है कि जब मानव अपनी इन्द्रियों को वश में कर लेता है तो उसकी विषय-वासना शांत हो जाती है, मन इन्द्रियों का निग्रह कर अपनी शुद्ध अवस्था में आ जाता है। मन निर्मल एवं शांत हो जाता है, तब आत्मसूर्य का प्रकाश मनरूपी चन्द्रमा पर प्रकाशित होने लगता है।

    जब खीर बन जाती है औषधि

    जानकारों के अनुसार शरद पूर्णिमा की रात दमा रोगियों के लिए वरदान बनकर आती है। इस रात्रि में खीर को चांदनी रात में रखकर प्रात: चार बजे सेवन किया जाता है। रोगी को रात्रि जागरण करना पड़ता है और खीर के सेवन के बाद 2-3 किमी पैदल चलना लाभदायक रहता है।

    शरद पूर्णिमा पर ऐसे करें पूजा

    पंडित वैभव जोशी कहते हैं कि आश्विन मास की पूर्णिमा वर्षभर में आनेवाली सभी पूर्णिमा से श्रेष्ठ मानी गई है। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा का पूजन करना लाभदायी रहता है।

    - शरद पूर्णिमा को प्रात: काल ब्रह्ममुहूर्त में सोकर उठें।

    - इसके बाद नित्यकर्म से निवृत्त होकर स्नान करें।

    - स्वयं स्वच्छ वस्त्र धारण कर अपने आराध्य देव को स्नान कराकर उन्हें सुंदर वस्त्राभूषणों से सुशोभित करें।

    - इसके बाद उन्हें आसन दें।

    - अंब, आचमन, वस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, ताम्बूल, सुपारी, दक्षिणा आदि से अपने आराध्य देव का पूजन करें।

    - इसके साथ गोदुग्ध से बनी खीर में घी तथा शकर मिलाकर पूरियों की रसोई सहित अर्द्धरात्रि के समय भगवान का भोग लगाएं।

    - इसके बाद व्रत कथा सुनें। इसके लिए एक लोटे में जल तथा गिलास में गेहूं, पत्ते के दोने में रोली तथा चावल रखकर कलश की वंदना करके दक्षिणा चढ़ाएं।

    - फिर तिलक करने के बाद गेहूं के 13 दाने हाथ में लेकर कथा सुनें।

    - जिसके पश्चात गेहूं के गिलास पर हाथ फेरकर मिश्राणी के पांव का स्पर्श करके गेहूं का गिलास उन्हें दे दें।

    - अंत में लोटे के जल से रात में चंद्रमा को अघ्र्य दें।

    - सभी श्रद्धालुओं को प्रसाद दें और रात्रि जागरण कर भगवद् भजन करें।

    - चांद की रोशनी में सुई में धागा अवश्य पिरोएं।

    - निरोग रहने के लिए पूर्ण चंद्रमा जब आकाश के मध्य में स्थित हो, तब उसका पूजन करें।

    - रात को ही खीर से भरा बर्तन खुली चांदनी में रख दें।

    - दूसरे दिन सबको उसका प्रसाद दें व स्वयं भी ग्रहण करें।

    यह है पौराणिक व प्रचलित कथा

    शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा व भगवान विष्णु का पूजन कर, व्रत कथा पढ़ी जाती है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इसी दिन चन्द्र अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होते हैं। इस मौके पर आइए जानते हैं पौराणिक व प्रचलित कथा...

    एक कथा के अनुसार एक साहुकार को दो पुत्रियां थीं। दोनो पुत्रियां पूर्णिमा का व्रत रखती थीं। लेकिन बड़ी पुत्री पूरा व्रत करती थी और छोटी पुत्री अधूरा व्रत करती थी। इसका परिणाम यह हुआ कि छोटी पुत्री की संतान पैदा होते ही मर जाती थी। उसने पंडितों से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया की तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थी, जिसके कारण तुम्हारी संतान पैदा होते ही मर जाती है। पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक करने से तुम्हारी संतान जीवित रह सकती है।

    उसने पंडितों की सलाह पर पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक किया। बाद में उसे एक लड़का पैदा हुआ। जो कुछ दिनों बाद ही फिर से मर गया। उसने लड़के को एक पाटे (पीढ़ा) पर लेटा कर ऊपर से कपड़ा ढंक दिया। फिर बड़ी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पाटा दे दिया। बड़ी बहन जब उस पर बैठने लगी जो उसका घाघरा बच्चे का छू गया। बच्चा घाघरा छूते ही रोने लगा। तब बड़ी बहन ने कहा कि तुम मुझे कलंक लगाना चाहती थी। मेरे बैठने से यह मर जाता। तब छोटी बहन बोली कि यह तो पहले से मरा हुआ था। तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है। तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है। उसके बाद नगर में उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया।

    अन्‍य मान्‍यताएं

    पौराणिक मान्यताओ के अनुसार धवल चांदनी में मां लक्ष्मी पृथ्वी भ्रमण के लिए आती हैं। शास्त्रों के अनुसार शरद पूर्णिमा की मध्य रात्रि के बाद मां लक्ष्मी अपने वाहन उल्लू पर बैठकर धरती के मनोहर दृश्य का आनंद लेती हैं। साथ ही माता यह भी देखती हैं कि कौन भक्त रात में जागकर उनकी भक्ति कर रहा है। इसलिए शरद पूर्णिमा की रात को कोजागरा भी कहा जाता है। कोजागरा का शाब्दिक अर्थ है कौन जाग रहा है। मान्यता है कि जो इस रात में जगकर मां लक्ष्मी की उपासना करते हैं मां लक्ष्मी की उन पर कृपा होती है। शरद पूर्णिमा के विषय में ज्योतिषीय मत है कि जो इस रात जगकर लक्ष्मी की उपासना करता है उनकी कुण्डली में धन योग नहीं भी होने पर माता उन्हें धन-धान्य से संपन्न कर देती हैं।

    कार्तिक मास का व्रत भी शरद पूर्णिमा से ही प्रारंभ होता है। पूरे माह पूजा-पाठ और स्नान-परिक्रमा का दौर चलता है।

    पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों संग महारास रचाया था। इसलिए इसे 'रास पूर्णिमा' भी कहा जाता है। शरद पूर्णिमा को दिन में 10 बजे पीपल के सात परिक्रमा करनी चाहिए इससे मां लक्ष्मी प्रसन्न होती है। शरद पूर्णिमा को ध्वल चांदनी में जप-तप करने से कई रोगों से छुटकारा मिलता है।