Jhun Jhun ka Katora: एक दिन का बादशाह, उनकी याद में भी आगरा में बन गया मकबरा
Jhun Jhun ka Katora मुगलकाल में देश की राजधानी रहा आगरा इतिहास की तमाम विरासतों को सहेजे हुए हैं। हर दिशा में मुगलकालीन स्थापत्य कला के नमूने यहां नजर आते हैं। इनमें से ही एक मकबरा है झुनझुन का कटोरा। इसे निजाम नामक भिश्ती की याद में बनाया गया था।
आगरा, आदर्श नंदन गुप्त। ताजमहल, किला, सिकंदरा, एत्माद्दौला के अलावा भी आगरा में देखने को बहुत कुछ है। मुगलकालीन स्थापत्य कला के बेजोड़ नमूने हैं। कई ऐसे स्मारक हैं, जिन्हें यदि सजाया-संवारा जाए तो वे क्षेत्र की रौनक को और अधिक बढ़ा सकते हैं। इस प्रकार का एक स्मारक जिला न्यायालय परिसर में है, जो अब चारों ओर से घिरता जा रहा है। सिर्फ एक दिन के लिए बादशाह बनाए गए व्यक्ति की याद में इस मकबरे को बनवाया गया था।
सूर्य नगर जाते समय जिला न्यायालय परिसर में एक प्राचीन इमारत हर व्यक्ति का ध्यान आकर्षित करती है। हालांकि अब वह कहीं-कहीं से छिपती भी जा रही है, फिर भी उसका आकार एसा है कि लोग उसे देख कर चौंकते ही हैं। ये पुरातत्व स्मारक ‘झुन झुन का कटोरा’ के नाम से चर्चित है। इसे भिश्ती का मकबरा भी बताया जाता है। जानकारों का कहना है कि यह उस निजाम नाम के भिश्ती का मकबरा है, जिसे मुग़ल बादशाह हुमायूं ने एक दिन के लिए बादशाह बना दिया था।
इतिहासकारों का कहना है कि हुमायूं जब शेरशाह सूरी से जंग हार गया और अपनी जान बचाने के लिए घोड़े पर सवार होकर भाग रहा था। कुछ ही दूरी पर एक नदी आई, उसमें उसका घोड़ा डूब कर मर गया। तब निहत्थे हुमायूं को निजाम भिश्ती ने अपने मशक के सहारे नदी पार कराई थी।
हुमायूं जब दोबारा शासन में आया तो उसने निजाम की खोज खबर करवाई और वह मिल भी गया। उसकी इच्छा पर उसे ढाई दिन के लिए बादशाह बनाया गया। निजाम भिश्ती ने अपने मशक के टुकड़े कटवा कर सिक्कों के रूप में जारी किया। मुग़ल कालीन इतिहास में इस मजेदार घटना को अहसानमंदी के रूप में लिखा गया है। इसका चर्चा अकबरनामा में भी की गई है।
निजाम के इंतकाल के उसको सम्मान देने के लिए गोल गुंबद वाला एक छोटा सा मकबरा बनवाया गया। तब वहां राहगीरों के लिए पानी भर कर एक मशक रखी रहती थी। पानी पीने के लिए एक चांदी का कटोरा रखा रहता था। लोग भेंटस्वरूप कटोरी में कौड़ियां डाल जाते थे, जो कि कटोरा हिलाने पर झुनझुने की तरह बजते थे। इसीलिए लोगों की जुबान पर झुन झुन कटोरा नाम चढ गया।
वहीं दूसरी ओर पुरातत्व विभाग का कहना है कि यह मकबरा पर्शिया में जन्मे महान इस्लामिक संत मौलाना हसन का है, जो सिकंदर लोदी और सलीम शाह सूरी के समय में आगरा में निवास करते थे। इस गुबंद पर पर्शियन भाषा में अभी भी कुछ अस्पष्ट इबारत लिखी दिखती हैं।
ईंट और चूने से बना और प्लास्टर हुआ यह षष्टकोणीय मकबरा उस इस्लामिक विद्वान की स्मृति में बना था, जिनका सन् 1546 में देहावसान हुआ था। यह तथ्य वहां अभी भी अंकित है।