इप्टा: बॉलीवुड को स्टार दिए तो शहर को आंदोलन
आगरा: राष्ट्रीय संस्था 'इप्टा' ने देश के सिनेमा को स्टार दिए तो इप्टा आगरा ने शहर को आंदोलन दिए थे।
नेहा सिंह, आगरा: 'इप्टा' इस संस्था को शायद आप जानते ही होंगे। वह संस्था जिसने कई कलाकार दिए। ऐसे कलाकार, जिनकी बॉलीवुड में धमक है, अलग पहचान है। नाट्य मंचन से करियर शुरू कर जो कला के महारथी हो गए। इन्होंने कला के गुर आगरा की सड़कों पर लगी इप्टा की क्लास में सीखे पर, इस क्लास में शहर के एक आदोलन की ऐसी रूपरेखा भी बनी, जिसे शहर कभी नहीं भुला सकता। करीब 25 साल पहले 'हादसों का शहर' सीरीज शुरू कर इन्हीं कलाकारों ने प्रशासन ही नहीं शासन को भी कठघरे में खड़ा कर दिया। दरअसल जहरीला पानी पीने से हुई 25 मौतों से जब शहर की गली -मोहल्लों से चीखें उठीं तो कलाकार सड़क पर आ गए। उन्होंने नाट्य मंचन से ही अलख जगा अनोखा आदोलन शुरू कर दिया। अपनी तरह के एक अलग आंदोलन से शहर का हर आदमी जुड़ गया। 'जल संस्थान-जहर संस्थान' के नारे गूंजने लगे। हालातों के जिम्मेदारों के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाली इप्टा को 25 मई को 75 साल पूरे हो चुके हैं। उर्दू के मशहूर शायर कैफी आजमी के कथन 'इप्टा वह प्लेटफार्म है, जहां पूरा ¨हदुस्तान आपको एक साथ मिल सकता है। दूसरा ऐसा कोई तीर्थ भी नहीं, जहां सब एक साथ मिल सके।' को ताजनगरी ने मूर्तरूप देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। सिर्फ नाटक ही नहीं इप्टा ने नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से सरकारी अव्यवस्थाओं पर भी जमकर चोट की। शहर में नाट्य से जुड़ी गतिविधियों को कराने और प्रतिभाएं निखारने का इप्टा का सराहनीय योगदान रहा है। आगरा इप्टा का सफर
बंगाल के कलाकार विनय राय के नेतृत्व में समर्पित कलाकारों का दल अकाल पीड़ितों की सहायतार्थ धन संग्रह के लिए उत्तर भारत की यात्रा को निकला। यात्रा के आगरा आगमन पर मशहूर रंगकर्मी राजेंद्र रघुवंशी ने आगरा कॉलेज के हॉल में कार्यक्रम कराया। आगरा होटल के मोहित दत्ता से उनकी क्लब का बड़ा काला पर्दा लेकर मंच पर लगा दिया। मंच पर कोई तामझाम नहीं साधारण प्रकाश व्यवस्था और केवल हार्मोनियम और ढोलक की संगत। लेकिन जब 'भूखा है बंगाल रे साथी' का मंचन हुआ तो दर्शक भाव विभोर हो गए। विनय राय के इस सादे किंतु प्रभावी प्रदर्शन के बाद रंगकर्मी राजेंद्र रघुवंशी ने 'आज का सवाल' नाम से स्क्रिप्ट तैयार की। सुभाष पार्क जो पहले बेकर बाग के नाम से प्रसिद्ध था, वहां एक सिरे पर चार तख्त लगाकर लगभग सात हजार दर्शकों के उपस्थिति में एक मई, 1942 को आगरा कल्चरल स्क्वाड की पहली प्रस्तुति दी। 1985 में आगरा में इप्टा का राष्ट्रीय कन्वेंशन आयोजित किया गया। जिसमें 15 राज्यों के लगभग 300 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। यह राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय जन नाट्य संघ के पुनर्गठित करने की पहल थी। राजपूत प्रेस में चलता रिहर्सल
रंगकर्मी दिलीप रघुवंशी का कहना है कि आगरा का मदन मोहन दरवाजा स्थित राजपूत प्रेस 1942-1943 में आगरा कल्चरल स्क्वैड और जुलाई 1943 के बाद भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) के कार्यालय, केंद्र और कलाकारों के आश्रम में रूप में बना रहा। यहीं इप्टा का शिक्षण केंद्र भी था और रिहर्सलों का स्थान भी था। शहर में कलाकारों का जमावाड़ा
दिलीप रघुवंशी ने बताया कि 1942 में आगरा में आधुनिक रंगमंच की शुरुआत हुई थी। उन दिनों सामाजिक मुद्दों को नाटकों में दर्शाया जाता था। जिन्हें अलिखित नाटक कहते थे। लेकिन 80 के दशक तक आते-आते यह परंपरा खत्म सी हो गयी। राजेंद्र रघुवंशी और विशन खन्ना ने आगरा में सांस्कृतिक परंपरा की नींव डाली। आगरा इप्टा ने सन् 1943 में होल टाइम यायावर दल बनाया, जिसने उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में और बाहर के राज्यों में दूर दूर तक भ्रमण किया।
सूरसदन में हुआ पहला टिकट शो
इप्टा के बैनर तले एक फिल्म 'दो बीघा जमीन' भी बनी, जिसका निर्देशन विमय रॉय ने किया। एमएस सैथ्यू के निर्देशन में बनी फिल्म 'गर्म हवा' में राजेंद्र रघुवंशी ने काम किया। उनके अलावा आगरा इप्टा से जुडे़ बलराज साहनी, फारुख शेख सहित तमाम कलाकारों को काम करने का मौका मिला। शैलेंद्र रघुवंशी ने ताजनगरी में टिकिट शो की परंपरा शुरू की। सूरसदन में शेक्सपियर का हेमले पहला शो शैलेंद्र के निर्देशन में हुआ।
जब बनारस में डटे रहे दर्शक
रंगकर्मी अनिल जैन बताते हैं कि बात 1981 की है, बनारस में आल इंडिया कम्यूनिस्ट पार्टी के सम्मेलन में यहां से जितेंद्र रघुवंशी लिखित नाटक 'आजादी के बाद' लेकर गए थे। जब गीत-संगीत से नाटक अधिक हुआ करते थे। रात आठ बजे से दो बजे तक हम पूरा अभिनय कर चुके थे,लेकिन दर्शक वहां से उठने को तैयार नहीं था, वह नाटक खत्म होने के बाद भी वापस नहीं लौटे और रात्रि में वहीं स्टे किया। इप्टा में सीखा अभिनय
अभिनेता बच्चन साहनी बताते हैं कि सन् 1977 में आगरा इप्टा से जुड़ने के बाद इप्टा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राजेंद्र रघुवंशी से नाट्य कला की बारीकियां सीखने को मिली। 1980 में आगरा से हैदराबाद आने पर नाटकों के अलावा तेलगु फिल्मों में एक्टिंग की। आज मेरा बड़ा बेटा रोहित साहनी और पुत्रवधु मेरीना तेलगु टीवी सीरियल में सक्रिय हैं। रघुवंशी की ट्रेनिंग से मिली मजबूती
रंगकर्मी विनय शर्मा का कहना है कि 1981 में थियेटर में रोजी-रोटी चलना मुश्किल था। राजेंद्र रघुवंशी की ट्रेनिंग ने मजबूती प्रदान की। पटना में रेडियो से जुड़ा। 1994 को दिल्ली पहुंचने के बाद काम मिलना शुरू हो गया। आग हश्र कश्मीरी द्वारा लिखित नाटक 'नेक परवीन' में मुख्य किरदार करने का मौका मिला। सांग एंड ड्रामा डिवीजन से हाल में ही रिटायर हुआ हूं।
अभिनय का शौक ले आया इप्टा में
लेखक प्रमील कुमार के मुताबिक 20-22 साल की उम्र में अभिनय का शौक इप्टा में खींच लाया था। राजेंद्र रघुवंशी की प्रेरणा से मेरे भीतर लेखन और कवित्व के अंकुर फूटे। 1989 में आगरा आकाशवाणी में वार्ताओं, परिचर्चाओं में भाग लेने लगा। आगरा में ही रहकर दिल्ली के एक एडीटोरियल ब्यूरो के लिए छुट-पुट लेखन और अनुवाद का काम किया। 2001 में दिल्ली पहुंचने के बाद । अब तक 500 से अधिक पुस्तकें लिखी। नेशनल साइंस फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ फिल्मों के चयन के लिए बनाई गई ज्यूरी का मेंबर रहा। फिर एनसीईआरटी के आडियो-विजुअल फेस्टिवल में भी ज्यूरी मेंबर मिला। ये हैं कुछ चर्चित चेहरे
आगरा के बिशन खन्ना जूनियर आर्टिस्ट एसोसिएशन के ट्रेजरार रहे। श्रीदेवी की प्रसिद्ध फिल्म 'नगीना' के डायरेक्टर हरमेश मल्होत्रा भी आगरा इप्टा के सदस्य रहे हैं, अभिनेत्री रवीना टंडन के पिता रवि टंडन में आगरा इप्टा के सदस्य थे। लेखक व कलाकार मदन सूदन भी आगरा इप्टा के सदस्य थे। सांग एंड ड्रामा डिविजन में विनय शर्मा और राम स्वरूप पाठक ने पद संभाला। शोभा कौशल चंडीगढ़ में डांस एकेडमी चला रही हैं। मधु अथईया 500 से अधिक किताबें लिख चुके हैं। नेमीचंद जैन दिल्ली में नटरंज पत्रिका निकाल रहे हैं। आस्कर विजेता सत्यजीत रे के साथ आगरा के मदन सूदन को काम करने का मौका मिला।
कडे़ परिश्रम से सक्रिय है इप्टा
लेखनी और वाणी पर समान अधिकार बहुत कम लोग रख पाते हैं, लेकिन जितेंद्र रघुवंशी इसके अपवाद थे। पिता राजेंद्र रघुवंशी और भाई शैलेंद्र के बाद 'इप्टा' की स्थिति कुछ कमजोर हो गई थी। लेकिन जितेंद्र ने अपनी बहन ज्योत्सना, भाई दिलीप व अन्य साथियों के साथ मिलकर इप्टा को विपरीत हालातों से बाहर निकाला और उसी स्तर तक ले आने के लिए कड़ा परिश्रम किया।
प्रणवीर सिंह चौहान, वरिष्ठ साहित्यकार