छावनी एरिया में रह रहे हैं तो दें ध्यान, आगरा और मथुरा के लिए आया आदेश
ताजनगरी व मथुरा में लीज खत्म होने पर नए सिरे से होगा नवीनीकरण। आगरा में छह ऐसे बंगले है जिनकी लीज 2026 में समाप्त हो रही है। हालांकि इसमें एसटीआर (स्टैंडर्ड टेबल आफ रेंट्स) को आधार बनाया गया है। जिससे बंगले का वार्षिक किराया बढ़ सकता है।

आगरा, संजीव जैन। आगरा व मथुरा समेत देश की सभी 62 छावनियों में छावनी की भूमि प्रशासन नियम 2021 लागू हो गया है। नई नियमावली में भूमि की प्रशासनिक व्यवस्था का असर छावनी में रहने वाले लोगों पर भी पड़ेगा। जिन बंगलों का लीज खत्म हो गया है, उसका नए सिरे से नवीनीकरण किया जाएगा। आगरा में छह ऐसे बंगले है, जिनकी लीज 2026 में समाप्त हो रही है। हालांकि इसमें एसटीआर (स्टैंडर्ड टेबल आफ रेंट्स) को आधार बनाया गया है। जिससे बंगले का वार्षिक किराया बढ़ सकता है।
रक्षा सम्पदा महानिदेशालय की ओर से छावनी भूमि प्रशासन के नियमों को लेकर 23 जून 2021 को सार्वजनिक सूचना जारी की गई थी। जिस पर लोगों की आपत्तियों के बाद तीन दिसंबर 2021 को गजट नोटिफिकेशन जारी कर नए नियम को लागू कर दिया गया है। जिसमें छावनी में सभी तरह की भूमि को लेकर स्थिति स्पष्ट की गई है। फ्री होल्ड की भूमि की परिभाषा और नियमों में बदलाव का वर्गीकरण किया गया है। नए नियम में सबसे महत्वपूर्ण प्रावधान लीज को लेकर है। जिस बंगले की 90 साल की लीज पूरी हो चुकी है, अभी तक उसके लीज बढ़ाने का लिखित प्रावधान नहीं था। लीज खत्म होने के बाद उसे छावनी बोर्ड या रक्षा संपदा विभाग को वापस करना होता था। नए नियम में जिसकी लीज खत्म हो गई है, उसे फिर से नवीनीकरण किया जाएगा। संबंधित व्यक्ति को एसटीआर की दर पर वार्षिक किराया देना होगा। अगर वह लीज की प्रापर्टी नहीं लेना चाहता है तो ई नीलामी कराई जाएगी।
डिजिटल रिकार्ड की मान्यता
अभी तक हाथ से लिखे जीएलआर यानी जनरल लैंड रिकार्ड की मान्यता थी। फ्री होल्ड भूमि का प्रबंधन रक्षा संपदा के पास छावनी में अब फ्री होल्ड भूमि का प्रबंधन छावनी बोर्ड से हटाकर रक्षा संपदा अधिकारी को दिया गया है। जो जमीन फ्री होल्ड होगी उसे बी-3 ए श्रेणी में कर दिया गया है। जीएलआर में फ्री होल्ड जमीन को अब प्राइवेट की जगह रक्षा संपदा के प्रबंधन में लिखा जाएगा। इस बदलाव से आगे चलकर फ्री होल्ड में अनावश्यक हस्तक्षेप बढ़ने की भी आशंका जताई जा रही है। नए नियम में हर साल एसटीआर की दर तय होगी। एसटीआर की परिभाषा बना दी गई है। जिसमें जिला प्रशासन, नगर निगम, रक्षा संपदा कार्यालय और सब एरिया की कमेटी मानक एसटीआर बनाएगी। जिसका निर्धारण हर साल करना होगा। एसटीआर पर ही छावनी के सभी किराए तय होंगे।
नए नियम में ये बड़ी समस्या
नई नियमावली कुछ प्रावधान छावनी के लोगों को खासकर लीज के मामले में दोबारा से लीज लेने के लिए एसटीआर के अनुसार वार्षिक किराया देना होगा। जो लाखों में आएगा। जो लोग 50 से 100 रुपये के लीज पर हैं, उन्हें लाखों रुपये हर साल देना होगा। वहीं फ्री होल्ड जमीन का प्रबंधन रक्षा संपदा कार्यालय से होने से अनावश्यक हस्तक्षेप बढ़ेगा।
सेना की खाली भूमि पर हो सकेगी खेती
ए-2 लैंड सेना की भूमि होती है। जिसे सेना जरूरत पड़ने पर इस्तेमाल करती है। फिर यह भूमि खाली पड़ी रहती है। अब नए नियम में खाली पड़े जमीन को स्टेशन कमांडर की अनुमति से रक्षा संपदा अधिकारी पांच साल के लिए खेती कार्य के लिए किसी को भी ठेके पर दे सकेंगे।
यहां अभी किसी का नवीनीकरण नहीं
छावनी बोर्ड के उपाध्यक्ष डा पंकज महेंद्रू का कहना है कि हाल-फिलहाल मे आगरा में किसी की लीज अवधि पूरी नही हो रही है। करीब आधा दर्जन बंगलों की लीज 2026 मेें पूरी होगी।
1974 से लगी है नवीनीकरण पर रोक
1974 में पहली बार कैंट की जमीनाें के नवीनीकरण पर राेक लगी थी। करीब छह माह पहले आल इंडिया कैंट बाेर्ड संघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वीरेंद्र पटेल के साथ राष्ट्रपति रामनाथ काेविंद से मिले प्रतिनिधि मंडल ने इस संबंध में उनसे विस्तार से चर्चा की थी। हालांकि जमीनाें के लीज नवीनीकरण के लिए काफी पहले से मांग चली आ रही थी। यह कैंट का एक बड़ा मुद्दा रहा है।
1805 में हुई थी आगरा छावनी की स्थापना
आगरा श्रेणी प्रथम की छावनी है। इसकी स्थापना 1805 में हुई। बोर्ड में 8 निर्वाचित सदस्यों सहित 16 सदस्य हैं। मथुरा श्रेणी दितीय की छावनी है। इसकी स्थापना 1833 में हुई। बोर्ड में 7 निर्वाचित सदस्यों सहित 14 सदस्य हैं।
62 छावनियों के पास है ज्यादा जमीन
रक्षा सम्पदा विभाग के अनुसार रक्षा मंत्रालय के पास लगभग 17.54 लाख एकड़ के भू-भाग का स्वामित्व है जिसमें से लगभग 1.57 लाख एकड़ भूमि 62 अधिसूचित छावनियों में तथा लगभग 15.96 लाख एकड़ भूमि इन छावनियों के बाहर है। इस भूमि के दैनिक प्रबंधन की जिम्मेदारी प्रयोक्ता सेनाओं की है। सबसे पहले अग्रेंजों ने बैरकपुर में छावनी स्थापित की थी। धीरे-धीरे मांग बढ़ने पर इनकी संख्या भी 62 हो गई।
ये होती है छावनी
छावनियां भारतीय सेना की उस जगह को कहते हैं जहां सेना की एक टुकड़ी लंबे समय तक रहती है। इन्हें स्थायी मिलिट्री स्टेशन भी कहा जा सकता है। छावनियों की चार श्रेणियां हैं जो किसी छावनी के अंदर रहने वाली आबादी के आकार पर निर्भर करती हैं। छावनियों में वित्तीय तथा भूमि संबंधी प्रतिबंध, विशेषकर आवासीय तथा वाणिज्यिक गतिविधियों के लिए उनके अनुज्ञेय प्रयोग के बावजूद भी आज इनमें हरा-भरा क्षेत्र है जो वातावरण के संतुलन को बनाए रखने में मददगार हैं। छावनी बोर्ड का गठन छावनी अधिनियम 2006 के तहत किया गया है।
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