Ganga Dussehra 2022: पतीत पावनी गंगा का वो कुंड जहां 72 घंटे में विसर्जित अस्थियां घुल जाती हैं, विज्ञान भी माना है यहां हार
Ganga Dussehra 2022 दरिया हो या सागर शरीर की हड्डियों को पानी में विलीन होने में लंबा वक्त लग जाता है। लेकिन सोरों में हरी की पौड़ी गंगा कुंड में अस्थियां विसर्जन के 72 घंटे में ही घुल जाती हैं।

आगरा, संजय धूपड़। 9 जून को गंगा दशहरा है। यूं तो आगरा बसा है यमुना नदी के किनारे लेकिन यहां पतीत पावनी गंगा के लिए आस्था लेशमात्र भी कम नहीं है। उत्तर भारत में मृत्यु के बाद अस्थियों के विसर्जन के लिए सोरों, कासगंज को सबसे पहले महत्व दिया जाता है। यहां का कुंड जिसे हरिपदी गंगा के नाम से जाना जाता है वो सनातन धर्म में खास महत्व रखता है। गंगा दशहरा पर यहां हर वर्ष हजारों− लाखाें श्रद्धालु पवित्र नदी में आस्था की डुबकी लगाने आते हैं। गंगा दशहरा के अवसर पर जानिए हरिपदी कुंड के विशेष महत्व को।
कासगंज जिले के सोरों सूकर क्षेत्र के अन्तर्गत जो कुंड (हरिपदी गंगा) है, यह वही स्थान है, जहां भगवान श्री वाराह ने स्वर्गारोहरण किया था और तभी से इस कुंड में मृत्यु के पश्चात अस्थियों का विसर्जन किया जाता है। सोरों सूकर क्षेत्र को मोक्ष प्रदान करने वाले तीर्थ के रूप में माना जाता है। तीर्थ की ऐतिहासिक धरोहरों का संरक्षण।
दरिया हो या सागर शरीर की हड्डियों को पानी में विलीन होने में लंबा वक्त लग जाता है। यकीन न हो तो किसी भी नदी में तर्पण के बाद इंसान की राख से बीनी गई हड्डियों को पानी में बहाने के बाद देख सकते हैं। मगर, ब्रज में एक जल स्त्रोत ऐसा भी है, जिसमें तीन दिन में अस्थियां पानी में विलीन हो जाती हैं। यह है सोरों स्थित हरि की पौड़ी जहां पर पितृ पक्ष में मोक्ष की गंगा बहती है।
ब्रज धरा से गंगा और यमुना भी गुजरती हैं, मगर इसके बाद भी गंगा से जल लेने वाली सोरों की हरि की पौड़ी की प्रासंगिकता पितृ पक्ष में और ज्यादा बढ़ जाती है। हरिपदी गंगा में अविरल-अविराम, मोक्ष की धारा बहती है, जिसमें 72 घंटे में अस्थियां जल में घुल जाती हैं। ऐसा क्यों होता है यह पता लगाने के लिए कई शोध हुए, मगर इसका राज कोई न जान सका। कोठीबाल आड़तिया महाविधालय के हिन्दी प्रवक्ता एवं हरि की पौड़ी पर शोध करने वाले राधाकृष्ण दीक्षित कहते हैं कि हरिपदी गंगा के जल को लेकर कई शोध हो चुके हैं परंतु इसका राज पता नहीं चला है। यदि यह इतनी जल्दी न गलतीं तो यहां बहुत ज्यादा अस्थियां आने की वजह से उनका पहाड़ लग जाता। वराह पुराण में हरि की पौड़ी के जल में अस्थियां विलीन होने की बात कही है।
सोरों का धार्मिक महत्व
हिरण्याक्ष दैत्य बड़ा ही बलवान था। देवताओं पर चढ़ाई करके देवताओं को जीत लिया। लोकों का अधिपति बनकर बैठ गया। देवता छिप गये। भगवान विष्णु की आराधना करने लगे। तब भगवान वाराह का रूप धारण इसी शूकर क्षेत्र में ब्रह्माजी की नासिका से प्रकट हुए। भगवान वारह ने पाताल में जाकर दैत्य से युद्ध कर उसका वध किया। पृथ्वी का भार हरण किया। भगवान अपने अवतार का उद्देश्य पूरा करने के बाद निज देह का परित्याग इसी सोरों शूकर पुण्य क्षेत्र में किया। यहीं पर विष्णु के अवतार भगवान वाराह का मंदिर है। सीता की रसोई है, जिसके बारे में मान्यता है कि सीता जी ने यहां भोजन पकाया था। सूर्य कुंड है, जिसके पानी से खीर बनाने की परंपरा है। तुलसीदास की ससुराल है, जहां सांप को रस्सी समझकर छत पर चढ़ गए थे। धर्म क्षेत्र के जानकारों के अनुसार सृष्टि का उद्गम स्थल सोरों तीर्थनगरी को ही माना जाता है।
कैसे पहुंचें
कासगंज जिले से 16 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश का विख्यात तीर्थ स्थल सोरों सूकर क्षेत्र है। यहां पहुंचने के लिए बस और रेल मार्ग दोनों ही साधन हैं। तीर्थनगरी सोरों के दर्शन करने के लिए श्रद्धालु राजस्थान, मध्य प्रदेश के अलावा उत्तर प्रदेश के विभिन्न जनपदों से आते हैं।
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