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    'सार्वजनिक स्थल पर जुआ संज्ञेय अपराध', हाई कोर्ट ने कहा- बिना वारंट गिरफ्तारी गलत नहीं

    Updated: Tue, 16 Dec 2025 05:05 PM (IST)

    इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि सार्वजनिक स्थल पर जुआ खेलना संज्ञेय अपराध है। कोर्ट ने आगरा निवासी कामरान की याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। अभिय ...और पढ़ें

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    विधि संवाददाता, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक निर्णय में कहा है कि सार्वजनिक स्थल पर जुआ खेलना संज्ञेय अपराध है और इसमें दर्ज केस में पुलिस बिना वारंट किसी को गिरफ्तार करने के साथ ही विवेचना कर सकती है।

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    न्यायमूर्ति विवेक कुमार सिंह की एकलपीठ ने विचारण कोर्ट को तीन महीने में ट्रायल पूरा करने का निर्देश देने के साथ ही आगरा निवासी कामरान की याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की है।

    याची ने विशेष मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, आगरा के समक्ष लंबित आपराधिक केस कार्यवाही रद करने के लिए धारा 528 भारतीय न्याय सुरक्षा संहिता के अंतर्गत याचिका दायर की थी।

    मुकदमे से जुड़े तथ्य यह हैं कि दिसंबर 2019 में अभियुक्त को सह-अभियुक्त के साथ सिकंदरा स्थित पार्क में ताश खेलने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। पुलिस ने 750 रुपये बरामद किए थे। बाद में सार्वजनिक जुआ अधिनियम 1867 की धारा 13 के तहत आरोप पत्र दायर किया।

    याची के अधिवक्ता का कहना था कि प्रदेश में धारा 13 के तहत पहली बार अपराध के लिए अधिकतम सजा एक महीने कारावास है। सीआरपीसी का हवाला देते हुए तर्क दिया कि तीन साल से कम की कारावास की सजा वाले अपराध आम तौर पर ‘गैर-संज्ञेय’ होते हैं। इसलिए पुलिस मजिस्ट्रेट के आदेश बिना अभियुक्त को गिरफ्तार अथवा अपराध की विवेचना नहीं कर सकती थी।

    सीआरपीसी की धारा 155(2) का हवाला दिया, जिसमें यह प्रविधान है कि कोई भी पुलिस अधिकारी मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना गैर-संज्ञेय मामले की विवेचना नहीं करेगा। कहा गया कि पुलिस ने विवेचना शुरू करने के लिए मजिस्ट्रेट से अनुमति नहीं ली, इसलिए एफआइआर दर्ज होने के तुरंत बाद शुरू की गई पूरी कार्रवाई शून्य है।

    कोर्ट ने कहा, ‘उपरोक्त परिभाषा से यह बहुत स्पष्ट है कि संज्ञेय अपराधों में पुलिस अधिकारी बिना वारंट किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है। जुआ अधिनियम की धारा 13 पुलिस को बिना वारंट किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने का अधिकार देती है, इसलिए, यह नहीं कहा जा सकता है कि जुआ अधिनियम की धारा 13 गैर-संज्ञेय अपराध है।’

    अदालत ने अधिनियम की धारा 3/4 (सामान्य जुआ घर में रखने या पाए जाने से संबंधित) को गैर-संज्ञेय मानने वाले कुछ निर्णयों पर निर्भर रहने के तर्क को भी खारिज कर दिया।

    कहा कि धारा 3 और 4 के लिए अलग-अलग प्रक्रियाओं की आवश्यकता है। सार्वजनिक स्थानों पर जुआ खेलने वाले व्यक्तियों को गिरफ्तार करने के लिए धारा 13 के तहत पुलिस को मिला विशिष्ट अधिकार इसे संज्ञेय अपराध बनाता है। इसलिए एफआइआर दर्ज कर मजिस्ट्रेट के आदेश बिना आरोप पत्र जमा करना गलत नहीं था। मजिस्ट्रेट की कार्यवाही गलत नहीं है।