Samosa: चटोरे हर रोज खा जाते हैं आगरा में दो करोड़ के समोसे, क्या आप जानते हैं किस देश से समोसा आया यहां
एक दिन में आगरा में बिक जाते हैं लगभग साढ़े चार लाख समोसे। पांच रुपये से लेकर 50 रुपये तक की है कीमत। देसी घी रिफाइंड और सरसों के तेल मेंं बने समोसों का स्वाद है अलग। फिरोजाबाद में बनाया जाता है छोटा समोसा महीनों तक चला सकते हैं इसे।

आगरा, प्रभजोत कौर। आगरा में स्वाद की कमी नहीं है। हर गली, हर नुक्कड़ पर एक स्वाद मिलता है। इन्हीं में से एक है समोसे, जिसकी सुगंध आगरावासियों को इतनी पसंद है कि हर रोज लगभग दो करोड़ के समोसे खा जाते हैं। आगरा में आलू की भरावन से लेकर मेवों और प्याज की भरावन तक के समोसे मिलते हैं। आगरा के लगभग एक दर्जन हलवाई ऐसे हैं, जिनके यहां शाम को समोसों के लिए लंबी लाइन लगती है। आगरा ही नहीं बल्कि पूरे ब्रजमंडल में समोसेे सभी को पसंद हैं और अलग अलग जगह के समोसों की अपनी अलग पहचान है। सबसे मजेदार बात ये है कि भारतीयों के लिए शाम का नाश्ता बन चुका, समोसा नामक ये व्यंजन ईजाद किसी और देश में हुआ था। जितना समोसा स्वादिष्ट है, उतना ही इसका इतिहास रोचक है।
एक दर्जन से ज्यादा हैं वैरायटी
आगरा में एक हजार से ज्यादा छोटे-बड़े हलवाई हैं, जिनके यहां पांच रुपये से लेकर 50 रुपये तक का समोसा मिलता है। आगरा में मिलने वाले समोसे में अब आलू के साथ प्याज, मेवे, सूखी भरावन, पनीर, मटर आदि की भरावन भी होने लगी है। जिसे लोग खासा पसंद कर रहे हैं।
हर रोज बिकते हैं लाखों समोसे
आगरा में एक दिन में लगभग साढ़े चार लाख समोसे बिक जाते हैं। समोसे की कीमत भी बढ़ गई है। आगरा में आलू का समोसा जहां पांच से 17 रुपये में मिलता है, वहीं मेवे वाले समोसे की कीमत 45 से 50 रुपये तक है। पनीर का समोसा 30 का, मटर का 20 रुपये का मिलता है। इसके अलावा घी, रिफाइंड और सरसों के तेल में बने समोसे खाने वाले शौकीन भी अलग-अलग हैं। राजामंडी बाजार में सरसों के तेल का समोसा खाने लोग दूर-दूर से आते हैं। इसी तरह भगत, दाऊजी, बांके बिहारी, लवली और देवीराम के समोसे खरीदने के लिए लोग दोपहर तीन बजे से ही लाइन लगा लेते हैं। आगरा के कुछ इलाकों में कीमा भरे समोसे भी मिलते हैं, पर यह ज्यादातर रमजान के दिनों में ही मिलते हैं।
समोसे का इतिहास
यह माना जाता है कि समोसा भारतीय पकवान है, लेकिन जानकारों के मुताबिक समोसा ईरान से आया है। इसका नाम समोसा फारसी भाषा के संबुश्क: से निकला है। समोसे का पहली बार ज़िक्र 11वीं सदी में फारसी इतिहासकार अबुल-फज़ल बेहाक़ी की लेखनी में मिला था।
उन्होंने ग़ज़नवी साम्राज्य के शाही दरबार में पेश की जाने वाली नमकीन चीज़ का ज़िक्र किया है जिसमें कीमा और सूखे मेवे भरे होते थे। इसे तब तक पकाया जाता था, जब तक कि ये खस्ता न हो जाए। 16वीं सदी में पुर्तगालियों के आलू लाने के बाद समोसे में इसका इस्तेमाल शुरू हुआ।
फिरोजाबाद का समोसा भी खास
सुहागनगरी के नाम से मशहूर फिरोजाबाद का समोसा भी खास है। यहां लोग सुबह से ही समोसे पसंद करते हैं। हितैषी नाम के हल्वाई के यहां सुबह से समोसे बनने शुरू हो जाते हैं और लोग इसे नाश्ते में सब्जी या चटनी के साथ खाते हैं। वहीं फिरोजाबाद में ही एक हल्वाई द्वारा छोटे आकार के ऐसे समोसे बनाए जा रहे हैं, जिन्हें महीनों तक चलाया जा सकता है। इसमें भरे जाने वाले आलू को इतना ज्यादा सेका जाता है कि उसके खराब होने की गुंजाइश की खत्म हो जाए। जिस तरह से इलाहाबाद मसालेदार समोसे होते हैं, उतने ही छोटे आकार ये आलू भरा समोसा होता है।
समोसे खाने वालों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है। हमारी शहर में तीन-चार दुकानें हैं। सभी दुकानों पर लगभग 800 समोसे बिक जाते होंगे।बरसात और सर्दियों में बिक्री अधिक होती है। - जय अग्रवाल, दाऊजी स्वीट्स
हमारे यहां मेवे वाले समोसे 600 रुपये किलो के हिसाब से बिकते हैं। इन दिनों सरसों के तेल में बने समोसे की मांग काफी बढ़ी है। - शिशिर भगत, भगत हलवाई
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