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Sikri Live: वाले मियां न होते तो सीकरी न होता, पढ़ें अकबर के शहर से जुड़ी रोचक जानकारी '

शेख सलीम चिश्‍ती के बेटे थे वाले मियां। वाले मियां के कहने पर ही चिश्‍ती साहब ने पूरी की थी बादशाह अकबर की मन्‍नत।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Sat, 04 May 2019 01:10 PM (IST)Updated: Sat, 04 May 2019 01:10 PM (IST)
Sikri Live: वाले मियां न होते तो सीकरी न होता, पढ़ें अकबर के शहर से जुड़ी रोचक जानकारी '
Sikri Live: वाले मियां न होते तो सीकरी न होता, पढ़ें अकबर के शहर से जुड़ी रोचक जानकारी '

आगरा, अजय शुक्‍ला। मुझे यही पता था कि फतेहपुर सीकरी दो वजहों से मशहूर और मकबूल है। पहली, प्रसिद्ध सूफी संत शेख सलीम चिश्ती के संगमरमरी आस्ताने और दूसरे, ग्रेट मुगल अकबर के बनवाये किले और बसाये शहर की वजह से। लेकिन, चिश्ती की दरगाह पहुंचने पर एक दूसरी पाक रूह से तआर्रुफ कराया मुतवल्ली हाजी मुकीम चिश्ती ने। ये हैं, वाले मियां।

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गाइड ने वाले मियां के आस्ताने पर छोड़कर यहां मन्नत मांगने की सलाह दी। हाजी मुकीम ने परिचय कुछ यूं कराया - वाले मियां छह महीने में बोल पड़े थे। बोले, अब्बू अकबर बादशाह को औलाद दे दो और फिर कभी नहीं बोले। वाले मियां शेख सलीम चिश्ती की औलाद थे। इन्हीं के कहने पर सलीम चिश्ती ने अकबर बादशाह को बेटे का आशीर्वाद दिया। ये न होते तो बेटा न होता, बेटा न होता तो सलीम चिश्ती की दरगाह न होती। किला होता, न यह शहर होता। आगरा, फतेहपुर सीकरी न होता। यहां हर साल शाबान की तीसरी तारीख (इस बार 10 अप्रैल) को उर्स होता है। हर शुक्रवार तोतों - चिडिय़ों का भंडारा होता है। जो मन्नत मांगो पूरी होती है, बिजनेस की हो, औलाद की हो, परीक्षा में पास होने की हो ... या ऐसी ही कोई और मन्नत। शायद, इसी को आस्था कहते हैं।

वाले मियां के बारे में सुनकर दिलचस्पी बढ़ी तो तफ्सील जानने की इच्छा हुई। यहीं एक अन्य सज्जन ने बताया कि दरअसल, अकबर को बेटा नहीं हो रहा था। वह वैष्णो देवी गया, ज्वाला देवी गया और फिर अजमेर शरीफ। अजमेर शरीफ में शेख सलीम चिश्ती के दादा ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती साहब की दरगाह है, जहां दुनियाभर से लोग जियारत (तीर्थ यात्रा) को आते हैं। अकबर अजमेर गया तो जरूर लेकिन हर बार वहां से खाली हाथ लौटा दिया गया। कहा गया कि औलाद की चाहत शेख सलीम चिश्ती के दर से पूरी होगी। अकबर चिश्ती के हुजूर में पहुंचा तो वहां से भी लौटा दिया गया। फिर अजमेर गया तो वहां से, उसी संदेश के साथ वापस। ऐसा करते छह बार हो गए। जब वह सातवीं बार लौटाया जा रहा था तो करीब ही अपने तोते के साथ खेल रहे छह माह के वाले मियां भी नजारा देख रहे थे। अचानक वह अकबर से मुखातिब हो बोल पड़े- 'आप रुक जाइए।' इसके बाद अब्बा हुजूर शेख सलीम चिश्ती से दरख्वास्त की - बाबा, इस तरह खाली हाथ लौटा देंगे तो बदनामी होगी।' इस पर चिश्ती साहब बोले कि अकबर बादशाह को बेटा नहीं हो सकता। होगा तो किसी की जान के बदले होगा। वाले मियां बोले कि मैं कुर्बानी दूंगा। यह कहकर वाले मियां हमेशा के लिए खामोश हो गए।

इसके बाद अकबर की महारानी जोधाबाई गर्भवती हो गईं और जब बेटा पैदा हुआ तो उसका नाम अकबर ने सूफी संत शेख सलीम चिश्ती के नाम पर सलीम रखा। उधर, वाले मियां की दरगाह बनवाई गई तो बगल में ही मिठू मियां का आस्ताना भी तैयार हुआ। कहते हैं कि वाले मियां और तोते में गहरी दोस्ती थी और दोनों साथ खेलते थे। जब वाले मियां नहीं रहे तो तोता भी नहीं रहा। हर शुक्रवार को नमाज के बाद वाले मियां के बगल में मौजूद तोते की दरगाह पर भंडारा होता है और चिडिय़ों को तबर्रुक (प्रसाद) तक्सीम होता है।

तभी कहते हैं कि वाले मियां न होते तो कुछ भी न होता। 

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