Famous Temples In Mathura: श्रीकृष्ण जन्मस्थान एक ऐसा स्थान, जहां होती है साक्षात भगवान की अनुभूति, पढ़िए इतिहास
Famous Temples In Mathura श्रीकृष्ण जन्म भूमि ब्रज शैली का खूबसूरत चित्ताकर्षक मंदिर है। यहां दर्शन करते ही भक्तों को अपने आराध्य श्रीकृष्ण की साक्षात अनुभूति होती है। भागवत भवन के ऊपरी हिस्से पर भगवान श्रीकृष्ण की मनोहर लीलाओं की चित्रकारी मन को मोह लेती है।

आगरा, जागरण टीम। भगवान श्रीकृष्ण का नाम आते ही मन में उनके विभिन्न स्वरूपों का ध्यान आता है। कृष्ण ने मथुरा में जन्म लेकर कंस का वध किया। ब्रज में कई लीलाएं कीं। आज भी ब्रज में कृष्ण की लीलाएं जीवंत होती हैं। मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मस्थान एक ऐसा स्थान हैं जहां देश के कोने-कोने से कृष्ण भक्त आते हैं। आपकों इस लेख के माध्यम से बताते हैं इस मंदिर की विशेषता और यहां का इतिहास
तीन बार तोड़ा गया मंदिर
गुजरात के प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर की तरह मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर भी आक्रमणकारी महमूद गजनवी ने हमला किया था। लूटकर इस धर्मस्थल को भी तोड़ डाला था। यह मंदिर तीन बार तोड़ा और चार बार बनाया जा चुका है। हालांकि अभी इस जगह पर मालिकाना हक के लिए दो पक्षों में कोर्ट में विवाद चल रहा है।
पौराणिक मान्यता
जिस जगह पर आज कृष्ण जन्मस्थान है, वह पांच हजार साल पहले मल्लपुरा क्षेत्र के कटरा केशव देव में राजा कंस का कारागार हुआ करता था। इसी कारागार में रोहिणी नक्षत्र में आधी रात को भगवान कृष्ण ने जन्म लिया था। इतिहासकारों ने कटरा केशवदेव को ही कृष्ण जन्मभूमि माना है। विभिन्न अध्ययनों और साक्ष्यों के आधार पर मथुरा के राजनीतिक संग्रहालय के दूसरे कृष्णदत्त वाजपेयी ने भी स्वीकारा कि कटरा केशवदेव ही कृष्ण की असली जन्मभूमि है।
भगवान के प्रपौत्र ने बनवाया था पहली बार मंदिर
ऐसी मान्यता है कि पहली बार इस स्थान पर मंदिर बनवाने का कार्य भगवान श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ ने किया था। इस बारे में पौराणिक कथाओं में कहा जाता है कि युधिष्ठर ने परीक्षित को हस्तिनापुर का राज्य सौंपकर श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ को मथुरा मंडल के राज्य सिंहासन पर प्रतिष्ठित किया था। इसके पश्चात वे अपने चारों भाइयों भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव सहित महाप्रस्थान कर गये। तब वज्रनाभ ने महाराज परीक्षित और महर्षि शांडिल्य के सहयोग से मथुरा राज्य को पुन: स्थापित किया।
वज्रनाभ ने अनेक मंदिरों का कराया था निर्माण
उस काल में वज्रनाभ ने अनेक मन्दिरों का निर्माण करवाया था। उसी क्रम में उसने भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली की भी स्थापना की आैर कंस के कारागार में जहां पता वासुदेव आैर उनका माता देवकी कैद थे, वहां मंदिर बनवाया। इसी स्थान पर भाद्रपद की कृष्ण अष्टमी की आधी रात को रोहिणी नक्षत्र में भगवान श्रीकृष्ण के अवतार लेने की बात कही जाती है। आज यह स्थान कटरा केशवदेव नाम से प्रसिद्व है। हालांकि समय के थपेड़ों आैर उचित संरक्षण के आभाव में ये मंदिर नष्ट हो गया। इसके बाद कई बार इस मंदिर का पुननिर्माण किया गया। पहले इस मंदिर के कुछ अंश ऐसे थे
प्रथम मंदिर
ईसवी सन से पहले 80-57 के महाक्षत्रप सौदास के समय के ब्राह्मी लिपि में लिखे एक शिलालेख के आधार पर कहा जाता है कि किसी वसु नामक व्यक्ति ने श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर एक मंदिर तोरण द्वार और वेदिका का निर्माण कराया था।
द्वितीय मंदिर
इसी प्रकार मान्यता है कि दूसरा मंदिर विक्रमादित्य के काल में सन् 800 ईसवी के आसपास बनवाया गया था। बाद में ये सन 1017-18 में विदेशी आक्रमणों में मंदिर नष्ट हो गया।
तृतीय मंदिर
संस्कृत के एक अन्य शिला लेख से ज्ञात होता है कि 1150 इसवी में जब महाराजा विजयपाल देव मथुरा के शासक थे उस दौरान जज्ज नामक किसी व्यक्ति ने श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर एक नया मंदिर बनवाया था। यह विशाल एवं भव्य बताया जाता है। यह भी 16 वी शताब्दी के आरम्भ में आक्रमणों के दौरान नष्ट हो गया था।
चतुर्थ मंदिर
माना जाता है कि मुगल बादशाह जहांगीर के शासन काल में श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर पुन: एक नए व विशाल मंदिर निर्माण कराया गया। ओरछा के शासक राजा वीरसिंह जू देव बुन्देला ने इसकी ऊंचाई 250 फीट रखवाई थी। इस मंदिर के चारों ओर एक ऊंची दीवार का परकोटा बनवाया गया था, जिसके अवशेष अब तक विद्यमान हैं।
दक्षिण पश्चिम के एक कोने में कुआं भी बनवाया गया था इस का पानी 60 फीट ऊंचे मंदिर के प्रांगण में फव्वारे चलाने के काम आता था। यह कुआं और उसका बुर्ज भी आज तक विद्यमान है। सन 1669 ई. में पुन: यह मंदिर नष्ट हो गया। इसके बाद वर्तमान मंदिर निर्मित हुआ।
ये हैं जन्मस्थान में मंदिर और प्रमुख त्योहार
-गर्भ गृह, शिखर मंडप, योगमाया मंदिर, भागवत भवन, केशवदेव मंदिर आदि।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी
इस दिन बैकुंठ से भी ज्यादा मथुरा का महत्व है। यह आयोजन मुख्य है। जन्माष्टमी पर देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां आते हैं। दिव्य और भव्य आयोजन को देखते हैं। इस दिन पूरी श्रीकृष्ण जन्मभूमि को बिजली की झालरों से सजाया जाता है।
नंदोत्सव
-श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दूसरे दिन नंदोत्सव की धूम रहती है।
शरद पूर्णिमा
-श्रीकृष्ण चबूतरे पर पवित्र चांदनी रात में महारास का आयोजन होता है।
दीपावली
- केशवदेव मंदिर में दीपदान का आयोजन होता है।
अन्नकूट
अन्नकूट ब्रज का सबसे प्राचीन पर्व माना जाता है। इसदिन भगवान को विभिन्न प्रकार के भोजन का भोग लगता है। श्रीगिरिराज मंदिर, श्रीराधाकृष्ण मंदिर एवं अन्य मंदिरों में छप्पन भोग और अन्नकूट अर्पित किया जाता है।
श्रीगोपाष्टमी
- गोशाला में गायों का श्रृंगार कर पूजन किया जाता है। भरनी एकादशी पर होली महोत्सव का आयेाजन।
ग्रीष्मकाल में श्रीकृष्ण जन्मभूमि परिसर स्थित सभी मंदिरों के दर्शन का समय बदलता है। श्रीभागवत भवन और अन्य मंदिरों में सुबह 6:30 बजे से दोपहर 12:30 बजे दर्शन के लिए खुलते हैं। जबकि शाम को दर्शन का समय चार बजे से रात नौ बजे तक का है। श्रीगर्भ-गृह जी मंदिर में प्रात: 6:30 बजे से रात नौ बजे तक दर्शन होंगे।
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