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    Famous Temples In Mathura : सप्त देवालय , ठाकुर राधाश्याम मंदिर जहां अंग चंदन श्रृंगार मोहता है सभी का मन

    By Abhishek SaxenaEdited By:
    Updated: Fri, 08 Jul 2022 04:16 PM (IST)

    Famous Temples In Mathura प्रभु दर्शन और ब्रज महिमा को लेकर ग्रंथों में वर्णन है। ब्रज भाषा के माधुर्य में इसके लिपटने पर रस बरसता है। 500 साल पहले ब्रज प्रदेश दुर्गम वनों से आच्छादित था। वृंदावन सहित श्रीकृष्ण के समस्त लीलास्थलों में निर्जन वन थे।

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    सप्त देवालय , ठाकुर राधाश्याम मंदिर वृंदावन के कण-कण में भगवान श्रीकृष्ण का वास है।

    आगरा, जागरण टीम। मंदिरों की नगरी के नाम से प्रसिद्ध धार्मिक नगरी वृंदावन के अनेक मंदिरों में धूमधाम के साथ सभी पर्व मनाए जाते हैं। चैतन्य महाप्रभु के शिष्यों द्वारा वृंदावन में स्थापित किए गए सप्त देवालय गोविंद देव, गोपीनाथ, मदनमोहन मंदिर, राधादामोदर मंदिर, राधाश्याम सुंदर मंदिर, गोकुलानंद मंदिर, राधारमण मंदिर शामिल हैं।

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    चैतन्य महाप्रभु ने किया तीर्थ कुंडों में स्नान

    चैतन्य महाप्रभु ने सन् 1515 की कार्तिक पूर्णिमा के दिन मधुवन, तालवन, कुमुदवन आदि वनों से होते हुए राह में तीर्थकुंडों में स्नान किया। श्रीकृष्ण की प्रधान लीलास्थली श्रीवृंदावन धाम पहुंचे, तब कदंब वृक्षों की पंक्तिया खड़ी हुई थीं। गाय वनों में विचरण कर रहीं थीं। ग्वाल-बाल किलोलें कर रहे थे।

    मयूर, सारस, हंस, चकवा, कालिंदी तट पर कलरव कर रहे थे। वृक्षों से झड़ते पुष्प मानो महाप्रभु को पुष्पांजलि दे रहे थे, गायें रंभाती हुई पास आकर आलिंगन हो रहीं थीं। पक्षी आसपास मंडराकर महाप्रभु के प्रति भक्तिभाव प्रदर्शित कर रहे थे।

    वृंदावन जहां पग-पग पर मंदिर बने हैं

    तीर्थ नगरी वृंदावन, कृष्ण की नगरी, क्रीड़ा स्थली वृंदावन। वृंदावन जहां केशव और राधा के चरण पड़े तो मां वृंदा जैसे यहां की माटी में रच बस गइ। वृंदावन जहां का कण-कण राधा और कृष्ण की अलौकिक प्रेम लीला का बखान करता है।

    वृंदावन जहां पग-पग पर मंदिर बने हैं। इन्हीं मंदिरों में विशेष स्थान है सप्त देवालयों का। वृंदावन के सप्त देवालयों में शामिल ठा राधा श्यासुंदर मंदिर, जो कि अनूठा है। जहां की प्रतिमा चमत्कारी हैं। आइये आज की श्रंखला में जानते हैं मंदिर का इतिहास।

    सप्त देवालयों में शामिल हैं ठा राधाश्याम सुंदर मंदिर

    वृंदावन के सप्तदेवालयों में शामिल ठा. राधादामोदर मंदिर से करीब 100 मीटर की दूरी पर लोई बाजार क्षेत्र में ठा. राधाश्यामसुंदर का मंदिर स्थापित है। मंदिर में गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय के आचार्य बलदेव विद्याभूषण के सेव्य ठा. राधाश्यामसुंदर मुख्य सिंहासन पर विराजमान हैं।

    मुख्य सिंहासन की बाईं ओर श्रीराधारानी के हृदयकमल से प्रकटित तथा राधारानी द्वारा श्यामानंद प्रभु को प्रदत्त श्यामसुंदर और भरतपुर के महाराजा के कोष भंडार से स्वयं प्रकटित राधारानी प्रतिष्ठित हैं। जिन्हें सन् 1850 में भरतपुर के महाराजा ने मंदिर बनाकर श्यामसुंदर के संग वसंत पंचमी पर पाणिग्रहण कर दान कर दिया था। मुख्य सिंहासन के दायीं ओर ब्रजानंद देव गोस्वामी को नंदगांव से प्राप्त राधा कुंजबिहारी की मनमोहनी विग्रह सेवित है।

    ये हैं मुख्य आकर्षण

    गर्मी के दो महीने निरंतर ठाकुरजी का फूलबंगला कार्तिक नियम सेवा, प्रतिदिन होने वाला चंदन से श्रीविग्रह का पत्रावली श्रृंगार तथा अक्षय तृतीया को होने वाले अंग चंदन श्रृंगार दर्शन यहां के प्रमुख आकर्षण है।

    मंदिर का है पौराणिक महत्व

    मंदिर के महंत कृष्णगोपालानंद देव गोस्वामी के अनुसार श्यामसुंदर का श्रीविग्रह स्वयं राधारनी ने अद्वैत महाप्रभु के भावेशावतार श्यामानंद प्रभु को प्रदान किया था।

    वसंत पंचमी सन् 1578 काे श्यामसुंदर का प्राकट्य हुआ। मंदिर के समीप राधादामोदर व राधाश्यामसुंदर मंदिर के बीच में ही राधारानी का नुपूर प्राप्ति स्थल भी है। जहां राधारानी के निर्देश पर श्यामानंद प्रभु को उनका नुपूर मिला। मंदिर में श्यामानंद प्रभु, नरोत्तम ठाकुर की पदावलियां सायंकाल गाई जाती हैं।