टीबी से ब्लॉक फैलोपियन ट्यूब बांझपन का मुख्य कारण, एसएन मेडिकल कॉलेज में 70 महिलाओं पर की गई स्टडी
एसएन मेडिकल कॉलेज में बांझपन से जूझ रही महिलाओं पर हुए एक अध्ययन में पाया गया कि फैलोपियन ट्यूब में टीबी का संक्रमण बांझपन का एक प्रमुख कारण है। किशोरावस्था में टीबी की पहचान न होने से ट्यूब ब्लॉक हो जाती है जिससे गर्भधारण मुश्किल हो जाता है। समय पर जांच और इलाज से बचाव संभव है।

जागरण संवाददाता, आगरा। किशोरावस्था में जननांगों की टीबी का पता न चलने से युवतियों में बांझपन की समस्या बढ़ रही है। वे मां नहीं बन पा रही हैं। एसएन मेडिकल कॉलेज के स्त्री रोग विभाग में बांझपन से पीड़ित महिलाओं पर की गई स्टडी में सामने आया है कि जिन महिलाओं की फैलोपियन ट्यूब ब्लाक मिली उनमें से 90 प्रतिशत को किशोरावस्था में टीबी हुई थी। मगर, उसका पता नहीं चला और न जांच और इलाज कराया गया।
एसएन मेडिकल कॉलेज में बांझपन से पीड़ित 70 महिलाओं पर की गई स्टडी
एसएन मेडिकल कॉलेज के स्त्री रोग विभाग में बांझपन के कारण का पता लगाने के लिए वर्ष 2023 से जून 2025 तक स्टडी की गई। स्टडी में बांझपन से पीड़ित 70 महिलाओं को शामिल किया गया। स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर रुचिका गर्ग ने बताया कि महिलाओं की दूरबीन विधि से गर्भाशय के अंदर की जांच करने के साथ ही टीबी की जांच कराई गई। 30 प्रतिशत महिलाओं में फैलोपियन ट्यूब ब्लाक मिली, फैलोपियन ट्यूब अंडाशय को गर्भाशय में पहुंचाती है, जिससे गर्भधारण संभव हो पाता है।
90 प्रतिशत में टीबी का संक्रमण मिला
डॉक्टर ने बताया, कि फैलोपियन ट्यूब होने से गर्भाशय में अंडे नहीं पहुंचते हैं। जिन महिलाओं की फैलोपियन ट्यूब ब्लॉक थी और उसके कारण गर्भधारण नहीं हो पा रहा था उनमें से 90 प्रतिशत में टीबी का संक्रमण मिला। कई महिलाओं की फैलोपियन ट्यूब की बनावट में भी बदलाव मिला। इस तरह के मामलों में टीबी के इलाज के बाद भी गर्भधारण संभव नहीं होता है, इन विट्रो फर्टिलाइजेशन ही विकल्प बचता है।
ये हैं लक्षण
- वजन कम होना, भूख ना लगना
- मासिक धर्म अनियमित होना
- जननांगों से बदबू आना, सफेद पानी की शिकायत
टीबी के संक्रमण से ब्लॉक को रही फैलोपियन ट्यूब, इलाज से गर्भधारण संभव
वहीं, किशोरावस्था में टीबी का इलाज लेने से फेलोपियन ट्यूब ठीक रहती है और गर्भधारण में समस्या भी नहीं होती है। इसलिए किशोरावस्था में वजन कम होने के साथ ही अन्य लक्षण होने पर टीबी की जांच करानी चाहिए। स्कूलों में भी जागरूकता अभियान की जरूरत है, जिससे समय से टीबी के संक्रमण का पता चल सके और इलाज मिल सके।
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