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    Dussehra 2022: दशहरा पूजन का है वैज्ञानिक महत्व भी, पढ़िए वास्तु शास्त्र में क्या है इस त्योहार की महत्ता

    By Prateek GuptaEdited By:
    Updated: Tue, 04 Oct 2022 01:49 PM (IST)

    Dussehra 2022 विजयादशमी का पर्व बुधवार को है। इस त्योहार की हिंदू धर्म में विशेष मान्यता है। पूजा और पूजन सामग्री के पीछे वैज्ञानिक आधार भी हैं। सावन व भाद्रपद के पश्चात नमी के कारण वातावरण में असंख्य जीवों की उत्पत्ति होती है। हवन सामग्री से ये नष्ट होते हैं।

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    Dussehra 2022: दशहरे पर पूजन के पीछे भी एक वैज्ञानिक महत्व है।

    आगरा, जागरण संवाददाता। दशहरा, बुराई पर अच्छाई की विजय का पर्व। जब भगवान श्रीराम ने लंकापति रावण का वध किया और मां दुर्गा ने महिषासुर का अंत किया। हिंदू धर्म में इस दिन की विशेष मान्यता है। दशहरा पर होने वाले पूजन के पीछे भी वैज्ञानिक रहस्य हैं। खास तौर पर वास्तु शास्त्र में भी इसका अलग महत्व है। आइए वास्तु शास्त्री से जानते हैं, पूजन से संबंधित बातें...

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    दशहरे और वैज्ञानिक रहस्य

    दशहरा या विजयदशमी का त्योहार हिंदुओं का एक बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहार है। यह त्योहार आश्विन मास के शुक्ल पक्ष के दसवें दिन पूरे देश में मनाया जाता है।

    दशहरे का शाब्दिक अर्थ है, 10 सिर वाले रावण का दहन। विष्णु अवतार, श्रीराम द्वारा रावण के वध वाले दिन को दशहरे के रूप में मनाते हैं। साथ ही मां दुर्गा द्वारा महिषासुर का वध भी विजयदशमी के दिन ही हुआ था। इस दिन घरों में पूजा अर्चना की जाती है।

    पूजन सामग्री का वैज्ञानिक महत्व

    भारत में मनाए जाने वाले हर त्योहार के पीछे कुछ ना कुछ वैज्ञानिक उद्देश्य रहता है। दशहरे के दिन प्रयोग में लाई गई पूजा की सामग्री भी पूर्ण रूप से वैज्ञानिक है। सर्वप्रथम हम पूजा विधि में गाय के गोबर का प्रयोग करते हैं। गाय के गोबर मे कीटाणु नाशक गुण पाए गए हैं। सावन व भाद्रपद के पश्चात नमी के कारण वातावरण में असंख्य जीवों की उत्पत्ति होती है। गाय के गोबर से बना कंडा, जब भी पूजा अर्चना में जलाया जाता है तो वह जीवाणुरोधी के रूप में अनेकों बीमारियों से हमारा बचाव करता है। कंडे के जलाने से प्रदूषण रोधी शुद्ध हवा हमारे घर के वातावरण को स्वच्छ करती है।

      

    − पूजा में प्रयोग होने वाले चावल हमारे चंद्र ग्रह को शुद्ध करते हैं। चावल अर्पण करने से हमारी मानसिक पीड़ा कम होती है।

    − दशहरे की पूजा में पीले गेंदे का फूल श्रीराम को चढ़ाने से हमारे गुरु ग्रह शुद्ध होते हैं। साथ ही गेंदे की सुगंध में औषधिक गुण होते हैं, जो कि मच्छर व अन्य जीवों से रक्षा करते हैं।

    − मां दुर्गा की पूजा अर्चना में लाल गुलाब का फूल हमें शक्ति व यश प्रदान करता है। गुलाब की गंध वातावरण में संतुलन व समन्वय बनाती है। गुलाब की सुगंध व्यक्ति की कार्य क्षमता बढ़ाती है और उसे तनावमुक्त रखती है।

    − दशहरे की पूजा अर्चना के समय खीर का प्रसाद बनाया जाता है। खीर का प्रसाद वितरण करने से व्यक्ति के नवग्रह शुद्ध होते हैं और जीवन में आ रही बाधाएं कम हो जाती हैं।

    − पूजा के समय धूप व दीप प्रज्वलन करने से वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। अगरबत्ती नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करती है।

    − बहन अपने भाई को रोली से विजय तिलक लगाती हैं। रोली़े भाई के आज्ञा चक्र को संतुलित कर उसे शक्ति व आगे बढ़ने की प्रेरणा प्रदान करती है।

    दीप्ति जैन

    आधुनिक वास्तु विशेषज्ञ, आगरा

    (डिस्क्लेमरः लेख में दिए गए विचार वास्तु विशेषज्ञ के हैं। )