Agra News: आरटीई में एडमिशन नहीं दे रहे दर्जन भर नामी मिशनरी स्कूल, खुद को बता रहे धार्मिक संस्थान
आगरा के कई मिशनरी स्कूल आरटीई के तहत गरीब बच्चों को एडमिशन नहीं दे रहे हैं, वे खुद को धार्मिक शिक्षा संस्थान बता रहे हैं। शिक्षा विभाग की सूची से भी इन स्कूलों के नाम गायब हैं, और अधिकारी अनजान हैं। स्कूलों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश से माइनारिटी स्कूलों में आरटीई लागू नहीं होता, जबकि इन स्कूलों में सामान्य वर्ग के छात्र भी पढ़ रहे हैं। शिक्षा विभाग इस मामले की जांच करेगा।

स्कूलों में अल्पसंख्यक के साथ सामान्य वर्ग के छात्र भी कर रहे पढ़ाई। प्रतीकात्मक
सुमित द्विवेदी, आगरा। भारत का कानून कहता है कि शिक्षा सबका अधिकार है। गरीब बच्चों को बेहतर शिक्षा मिल सके इसके लिए आरटीई(राइट टू एजूकेशन) यानी की शिक्षा का अधिकार कानून बनाया गया। इस कानून के तहत हर स्कूल को एक निर्धारित संख्या में निर्धन बच्चों को प्रवेश देना होता है। मगर, शहर के एक दर्जन नामचीन मिशनरी स्कूलों ने इस कानून के तहत प्रवेश देना बंद कर दिया है। शिक्षा विभाग से जारी आरटीई की सूची से भी इन स्कूलों का नाम गायब है। शिक्षा विभाग के अधिकारी खुद अनजान है कि ऐसा कैसे हुआ है।
मिशनरी स्कूल इस कदम के खुद के माइनारिटी(अल्पसंख्यक) संस्थान होने की आड़ ले रहे है।
आरटीई एक्ट-2009 के अनुसार धार्मिक शिक्षा देने वाले संस्थानों, वैदिक पाठशालाओं, मदरसों को ही आरटीई एक्ट में छूट का प्रविधान है। शहर में गरीब परिवारों के बच्चों को शहर के नामचीन मिशनरी स्कूलों में पढ़ने के लिए सर्व शिक्षा अभियान के तहत शिक्षा का अधिकार (आरटीई) कानून बड़ा सहारा है। इस कानून के तहत सीबीएसई, सीआइएससीई और यूपी बोर्ड वाले स्कूलों में 25 प्रतिशत सीटें आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों के लिए आरक्षित होती हैं। अब शिक्षा विभाग की लापरवाही और मिशनरी स्कूलों की चालाकी से यह व्यवस्था संकट में है।
बेसिक शिक्षा विभाग की ओर से वर्ष 2024 में जारी आरटीई स्कूलों की सूची से सेंट पीटर्स, सेंट पैट्रिक्स, सेंट जार्जेज, सेंट पाल्स और सेंट एंथनी समेत करीब एक दर्जन स्कूलों ने के नाम बाहर कर दिए गए हैं। वर्ष 2023 तक इन स्कूलों ने आरटीई के तहत प्रवेश लिए थे। अचानक 2024-25 से प्रवेश लेना बंद कर दिया गया है। शिक्षा विभाग ने इन स्कूलों को धार्मिक शिक्षा देने वाला संस्थान बताकर सूची से बाहर किया। कमाल यह है कि बेसिक शिक्षाधिकारी जितेंद्र गोंड इस बदलाव से अनजान है। उनका कहना है कि उन्हें इसके बारे में कुछ नहीं पता है। वे इसका पता करेंगे।
सच्चाई यह है कि कोई भी स्कूल बिना सीबीएसई, आइसीएससीई या यूपी बोर्ड की मान्यता के नहीं चल सकता। मान्यता लेने पर आरटीई के नियम मानना जरूरी है। यानी गरीब बच्चों को 25 प्रतशित सीटें देनी पड़ती हैं। ये मिशनरी स्कूल खुद को माइनारिटी संस्थान बता रहे हैं। स्कूल संचालकों का कहना है सुप्रीम कोर्ट के आदेश से माइनारिटी स्कूलों में आरटीई लागू नहीं होता। हकीकत उनके दावों से अलग है। इन स्कूलों में हर धर्म और वर्ग के बच्चे पढ़ रहे हैं। माइनारिटी स्कूलों में सिर्फ अल्पसंख्यक बच्चे ही दाखिला ले सकते हैं, लेकिन यहां सामान्य बच्चे भी हैं।
पापा संस्था के संचालक दीपक सरीन कहते हैं कि उन्होंने कई बार लिखित शिकायतें कीं और आरटीआइ भी दाखिल की, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। आइसीएसई आगरा जोन के कन्वीनर अक्षय जरमाया ने स्वीकार किया उनके सेंट जार्जेज स्कूल में वर्ष 2023 तक आरटीई बच्चे लिए थे। कोर्ट आदेश के बाद नहीं हुआ, अब सुधार हो रहा है और उम्मीद है कि जल्द दाखिले फिर शुरू हो सकते हैं। उनके स्कूल में अभी पांच-छह बच्चे आरटीई में पढ़ रहे हैं।
नहीं हो रही स्कूलों पर कार्रवाई
बगैर अनुमति सेक्शन बनाने वाले स्कूलों पर शिक्षा विभाग कार्रवाई भी नहीं कर रहा है। स्कूलों को नोटिस देकर नजरें घुमा ली हैं। इधर नगर क्षेत्र के सभी स्कूल अपनी मनमानी कर रहे हैं। आखिरी नवंबर या दिसंबर से आरटीई में दाखिला शुरू होंगे। ऐसे में स्कूलों में बेहतर गुणवत्ता पर भी सवाल उठ रहे हैं।
आरटीई गरीब वर्ग के हर छात्र का हक है। इसकी सूची में मिशनरी स्कूलों का नाम होना चाहिए। सूची से नाम कैसे हटा इसकी जानकारी की जाएगी। स्कूल प्रिंसिपल जिस भी तथ्य का हवाला दे रहे हैं उसकी जानकारी कर आगे की कार्रवाई की जाएगी। - जितेंद्र गोंड, जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।