Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    श्रीनाथ जी को साहित्‍य और काव्‍य की इस विधा से रिझाते थे बल्‍लभाचार्य

    By Tanu GuptaEdited By:
    Updated: Tue, 30 Apr 2019 06:02 PM (IST)

    ब्रजभाषा की आत्मा है बल्लभाचार्य के अष्टछाप का काव्य।

    श्रीनाथ जी को साहित्‍य और काव्‍य की इस विधा से रिझाते थे बल्‍लभाचार्य

    आगरा, जेएनएन। महाप्रभु बल्लभाचार्य जी के सानिध्य में साहित्य और काव्य के प्रहरी बन श्रीनाथजी की अष्टयाम सेवा में अष्टछाप के कवि पद सुनाकर प्रभु को रिझाते थे। बल्लभाचार्य जी ने श्रीनाथजी को पद सुनाने के लिए कुम्भनदास जी, सूरदास जी, परमानंद दास जी और कृष्णदास जी की नियुक्ति कीर्तनिया के रूप में की। बल्लभाचार्य जी के सुपुत्र गुंसाई विठलनाथजी ने गोविंद स्वामी, छीत स्वामी, नंददास जी और चतुर्भुजदास जी की भी नियुक्ति कीर्तनिया के रूप में कर दी। इन आठ महान कवियों को गुंसाईजी ने अष्टछाप के कवि की उपाधि प्रदान की। कुम्भनदास जी की प्रथम कीर्तनिया के रूप में नियुक्ति हुई। वैष्णव वार्ता में इतिहास के इन साहित्यकारों के स्वर्णिम काल का उल्लेख अंकित है।
    गिरिराज प्रभु की प्रत्येक शिला कृष्णलीला की साक्षी है तो ब्रजभूमि की कण कण साहित्य और संगीत से ओत प्रोत है। पर्वत पर बने श्रीनाथजी मंदिर से अष्टछाप का काव्य सुनाई पड़ता है। श्रीबल्लभाचार्यजी एवं गोस्वामी श्रीबिठलनाथजी ने ब्रजभाषा के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए अष्टछाप के कवियों को श्रीनाथजी की कीर्तन सेवा में नियुक्त किया। ये महापुरुष इतिहास के पन्नों में अष्टछाप के नाम से अंकित हैं। अष्टछाप का प्रत्येक कवि अपने आप में एक काव्य का सागर है। विभिन्न स्थानों से उठती काव्य की घटाएं श्रीनाथजी के आंगन में काव्य रस की बारिश करती थी। 
    भारतीय जनमानस में काव्य भी सदैव अभिव्यक्ति का एक सशक्त साधन रहा है। जिसमें हिंदी के साथ साथ आंचलिक भाषाओं का काव्य भी समृद्ध है। आंचलिक भाषाओं में ब्रजभाषा का साहित्य खजाना बहुत समृद्ध है। ब्रजभाषा के कवि गोपाल प्रसाद उपाध्याय ने बताया कि तेरहवीं शताब्दी से ब्रजभाषा लेखन प्रारंभ हुआ। पंद्रहवीं शताब्दी में ब्रजभाषा काव्य का स्वर्ण युग आया और भारतवर्ष के विभिन्न प्रांतों में अनेकों साहित्यकारों ने ब्रजभाषा काव्य में रचनाएं लिखीं । पश्चिम बंगाल और उड़ीसा तक ब्रजभाषा काव्य लेखन के प्रमाण हैं। ब्रजभाषा काव्य को शरीर की उपमा दें तो अष्टछाप का काव्य आत्मा है। महाप्रभु बल्लभाचार्य जी के बिना इसका संरक्षण एक कल्पना ही रह जाता। ब्रजभाषा की आत्मा कहे जाने वाला अष्टछाप के कई काव्यकारों के समाधि स्थल विलुप्त होने के कगार पर हैं। खासकर राजस्थान में पडऩे वाली इन धरोहरों को सहेजने के मामले में राजस्थान प्रशासन नाकारा साबित हुआ है। पूंछरी में कृष्णदास जी और छीत स्वामी की समाधियों के सिर्फ अवशेष हैं जो कि जल्द विलुप्त होने के कगार पर हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    कलियों की बारिश में निकला बल्लभाचार्य जी का डोला

    गोवर्धन में बल्लभाचार्य जी का 542 वां प्राकट्य महोत्सव धूमधाम से मनाया गया। मंगलवार को महाप्रभु जी की बैठक चकलेश्वर से श्री महाप्रभु जी के स्वरूप को डोला में विराजमान कर भक्तों ने अपने कंधों पर डोला उठाकर मानसीगंगा की परिक्रमा लगाई। बैंडबाजों की धुनों से निकलती भक्ति धुनों ने भक्तों को थिरकने पर मजबूर कर दिया। रास्ते में डोला पर होती पुष्पवर्षा ने कार्यक्रम को भव्य स्वरूप प्रदान किया। चकलेश्वर से शुरू हुई डोला यात्रा दसविसा सौंख तिराहा दानघाटी डीगड्डा बड़ा बाजार होते हुए चकलेश्वर पहुंची।अंतर्राष्ट्रीय पुष्टिमार्गीय वैष्णव परिषद शाखा गोवर्धन द्वारा वैष्णव जन का दुपट्टा उढ़ाकर कर सम्मान किया । जतीपुरा में शरद गोस्वामी के सानिध्य में भव्य शोभायात्रा निकाली गई। जगह जगह आरती उतारते भक्त बल्लभाचार्य जी के जयकारे लगाते रहे। इस मौके पर अंतर्राष्ट्रीय पुष्टिमार्गीय वैष्णव परिषद के केंद्रीय संगठन मंत्री डॉ विनोद दीक्षित, लक्ष्मी नारायण अग्रवाल, रमेश चंद खण्डेलवाल, ओमप्रकाश, चन्द्रप्रकाश, पोसे मुखिया, सियाराम शर्मा, शंकर लाल आदि मौजूद थे।
     

     

    comedy show banner
    comedy show banner