जहांगीर के ख्वाजासरा बुलंद खान की निशानी है बत्तीस खंबा, उपेक्षित है स्मारक
वर्ष 1606-23 के बीच बुलंद खान ने बाग के साथ कराया था निर्माण बाग का अस्तित्व हो चुका है खत्म एएसआइ द्वारा संरक्षित होने के बावजूद उपेक्षित है स्मारक पर्यटकों को नहीं मिलती उचित जानकारी रामबाग की उत्तरी दिशा में बना हुआ है स्मारक

आगरा, जागरण संवाददाता। ताजमहल के शहर में अन्य स्मारकों को भुला दिया गया है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) उनका संरक्षण तो कर रहा है, लेकिन उचित प्रचार-प्रसार नहीं होने से एेसे अनगिनत स्मारक उपेक्षित हैं। इन्हीं में से एक स्मारक यमुना किनारे पर बना हुआ बत्तीस खंबा है। यहां पर्यटक नहीं आते हैं
जवाहर पुल के ऊपर से गुजरते समय रामबाग की उत्तरी दिशा में बनी हुई छतरी नजर आती है। अष्टकोणीय छतरी अपनी स्थापत्य कला के चलते राहगीरों को आकर्षित करती है, लेकिन उन्हें उसके बारे में जानकारी नहीं मिल पाती है। यह छतरी बुलंद खान ने बनवाई थी। यह छतरी ख्वाजासरा बुलंद खान के बाग का भाग थी। बुलंद खान जहांगीर के दरबार में वर्ष 1606-23 तक रहा था। पांच मंजिला छतरी को 32 खंबे होने की वजह से बत्तीस खंबा के नाम से अधिक जाना जाता है। रेड सैंड स्टोन व लाखौरी ईंटों से बनी स्मारक में आकर्षक कार्विंग का काम है और दीवारों पर फूल-पत्ती व ज्यामितीय डिजाइन बने हुए हैं। यहां पहुंचने को उचित मार्ग नहीं होने से पर्यटक नहीं आते हैं।
लाइट टावर था
बत्तीस खंबा के लाइट टावर के रूप में मुगल काल में प्रयोग होने की बात कही जाती है। उस समय दिल्ली से प्रयागराज तक यमुना व्यापार का प्रमुख माध्यम थी। व्यापारी और यात्री जल मार्ग से सफर किया करते थे। अत्यधिक ऊंचा होने के चलते बत्तीस खंबा का उपयोग लाइट टावर के रूप में किया जाता था। यहां पास में ही नूरजहां की सराय थी, जहां व्यापारी रुका करते थे।
एएसआइ ने कराया संरक्षण
करीब चार-पांच वर्ष पूर्व तक बत्तीस खंबा संरक्षण को मोहताज था। यहां असामाजिक तत्वों का डेरा लगा रहता था। एएसआइ ने यहां संरक्षण तो कराया ही, स्मारक की चहारदीवारी करते हुए ग्रिल लगवाईं, जिससे असामाजिक तत्व अंदर प्रवेश नहीं कर सकें।
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