आगरा का बटेश्वर मेला समापन की ओर, अब ऊंटों की बिक्री थमी, अंतिम दौर में घोड़ों की खरीद
आगरा के बटेश्वर में लगने वाला पशु मेला अब समापन की ओर है। इस बार ऊंट मेला पूरी तरह समाप्त हो गया है, और ऊंट व्यापारी वापस लौट गए हैं। जिला पंचायत को पशु पंजीकरण से 5.55 लाख रुपये की आय हुई है। व्यापारियों को खरीदारों की कमी और कम भाव के कारण निराशा हुई। अब व्यापारी राजस्थान के पुष्कर मेले की तैयारी कर रहे हैं, जहाँ वे अपने पशुओं को बेचने की उम्मीद कर रहे हैं।

जागरण संवाददाता, आगरा। उत्तर भारत की पहचान बन चुका एतिहासिक बटेश्वर पशु एवं लोक कला मेला अब समापन की ओर है।इस बार ऊंट मेला पूरी तरह समाप्त हो चुका है। ऊंट व्यापारी अपने पशुओं के साथ रवाना हो गए हैं, जबकि घोड़ों, गधों की खरीद-फरोख्त अंतिम चरण में पहुंच गई है।
जिला पंचायत को बिक्री किए गए पशुओं के पंजीकरण से 5.55 लाख रुपये की आय हुई है। मेले में अब तक करीब 800 घोड़ा-घोड़ी, 150 ऊंट, 70 खच्चर और 30 गधों की बिक्री दर्ज की गई। बिक्री किए गए घोड़ों के पंजीकरण की रसीद 600 रुपये, ऊंट, खच्चर व गधाें की बिक्री पर पंजीकरण रसीद 300 रुपये रही।
पंचायत को घोड़ा-घोड़ी से 4.80 लाख एवं अन्य पशुओं से 75 हजार रुपये की आय हुई। हालांकि इस बार मेला पशु व्यापारियों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा। खरीदारों की कमी और कम भाव से व्यापारी निराश दिखे।
पशु मेले में इस बार मारवाड़ी,काठीवाडी, पंजाबी व नकुला नस्ल के घोड़ा-घोड़ी बिक्री को आए थे।जबकि मेवाती, बीकानेरी, जैसलमेरी व बालस्तरी नस्ल के ऊंट पशु व्यापारी बेचने लाए थे।ऊंट मेला इस बार समय से पहले ही खत्म हो गया। राजस्थान और हरियाणा से आए ऊंट व्यापारी अपने पशुओं के साथ घर लौट गए। मेले में केवल कुछ घोड़ा व्यापारी ही बचे हैं, जो खरीदारों का इंतजार कर रहे हैं। यहां से अब राजस्थान के पुष्कर में 29 अक्टूबर से होने वाले पशु मेले में जाएंगे।
पशु व्यापारी बोले-
पहले बटेश्वर मेला व्यापार का सबसे बड़ा केंद्र होता था। अब खरीदार ही नहीं दिखते। कई घोड़े बिना बिके वापस ले जाने पड़ रहे हैं।
फकीरा चौधरी, बरेलीइस बार अच्छे नस्ल के घोड़े लाए थे। जिनकी कीमत एक लाख से पांच लाख तक थी, लेकिन मांग बेहद कम रही। अब इन्हीं घोड़ों को लेकर पुष्कर मेला जाएंगे।
अबरार हुसैन, मुरादाबादअब पशु व्यापार लगातार घट रहा है। सरकार की ओर से मवेशी व्यापार के लिए ढंग की व्यवस्था नहीं की जा रही। सड़क, पानी और आवास जैसी सुविधाओं की कमी से परंपरा पर असर पड़ रहा है।
सलीम चौधरी, मथुराकभी हजारों की संख्या में ऊंट, बैल और गायें आती थीं। दिन-रात व्यापार चलता था, अब दोपहर में ही सन्नाटा छा जाता है।
बबलू चौधरी, बरेली

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