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    Azadi ka Amrit Mahotsav: गोकुलपुरा में छुपे थे तात्या टोपे, अंग्रेजाें ने उड़ा दी थी तोपाें से मंदिर की दीवार

    By Prateek GuptaEdited By:
    Updated: Wed, 10 Aug 2022 08:29 AM (IST)

    Azadi ka Amrit Mahotsav आगरा के गोकुलपुरा में बना है सोमेश्वरनाथ मंदिर जहां तात्या टोपे ने ली थी शरण। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद एक वर्ष तक रहे थे। क्षुब्ध अंग्रेजों ने उड़ा दी थी गोकुलपुरा की चहारदीवारी।

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    Azadi ka Amrit Mahotsav: गोकुलपुरा की इस इमारत में तात्या टोपे ने शरण ली थी।

    आगरा, निर्लोष कुमार। देश के स्वाधीनता संग्राम में शहर ने बढ़-चढ़कर भाग लिया था। यहां ऐसे अनेक स्थल हैं जिनसे स्वतंत्रता सेनानियों व क्रांतिकारियों की स्मृतियां जुड़ी हुई हैं। यह दुर्भाग्य ही है कि गौरवशाली अतीत वाले ऐसे स्थलों से शहरवासी और आज की पीढ़ी अनभिज्ञ है। इन्हीं स्थलों में से एक गोकुलपुरा स्थित सोमेश्वरनाथ मंदिर है। यहां देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद तात्या टोपे ने शरण ली थी। अंग्रेजों ने क्षुब्ध होकर गोकुलपुरा की चहारदीवारी को तोपों से गोले बरसाकर उड़ा दिया था।

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    अंग्रेजों के खिलाफ वर्ष 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारियों ने देश की आजादी को स्वतंत्रता का बिगुल फूंका था। "आगरा जनपद का राजनीतिक इतिहास' पुस्तक में जिक्र मिलता है कि जब ब्रिटिश हुकूमत स्वतंत्रता सेनानियों पर भारी पड़ी तो तात्या टोपे आगरा में गोकुलपुरा में आकर रुके थे। मुगल काल में नागर ब्राह्मणों द्वारा गोकुलपुरा को बसाया गया था। यह सुरक्षा की दृष्टि से मजबूत था और इसकी चहारदीवारी थी।

    नाम बदलकर रखे यहां

    गुजराती भाषा जानने वाले तात्या टोपे ने अपना नाम नारायण स्वामी रख लिया था। तात्या टोपे के एक वर्ष तक गोकुलपुरा में रहने की जानकारी मिलने पर अंग्रेजों ने यहां धावा बोल दिया था। तात्या टोपे इससे पूर्व ही यहां से जा चुके थे। इससे खिसियाकर अंग्रेज कलक्टर डेविल ने सरकार को गोकुलपुरा के बागियों का मुहल्ला होने की रिपोर्ट भेज दी थी। गोकुलपुरा के परकोटे को तोपों से गोले बरसाकर उड़ा दिया गया था। सोमेश्वरनाथ मंदिर, आज लोगों की आस्था का केंद्र है।

    अंग्रेज कलक्टर ने दिए तहस नहस करने के आदेश

    इतिहासकार राजकिशोर राजे ने भी अपनी पुस्तक तवारीख-ए-आगरा में अंग्रेजों द्वारा गोकुलपुरा की चहारदीवारी अंग्रेजों द्वारा उड़ाने की जानकारी दी है। राजे बताते हैं कि वर्ष 1857 की क्रांति के समय गोकुलपुरा प्रतिष्ठित व संपन्न लोगों का केंद्र था। आगरा कालेज पर हमले व अंग्रेजों की हत्या से बौखलाए अंग्रेज कलक्टर ने गोकुलपुरा को तहस-नहस करने का आदेश दिया था।

    लोगों ने बड़ी मुश्किल से उसे ऐसा न करने को मनाया था। गोकुलपुरा बच गया, लेकिन उसकी चहारदीवारी ध्वस्त कर दी गई। कंस गेट और पुल छिंगा मोदी उसी के अवशेष हैं। इसकी एक वजह तात्या टोपे के यहां छिपकर रहने व बच निकलने की बौखलाहट भी थी।