Mathura News: रिश्तों से सजी लड़ैते ठाकुरजी की भोग सेवा, रसोई में हलवाइयों को नहीं मिलती एंट्री
thakur ji rasoi भगवान की भक्ति में भोग को अहम माना गया है। वृंदावन के मंदिर आश्रमों की रसोई में हलवाई का प्रवेश नहीं होता है। चाहे रोजाना का भोग हो या फिर भंडारा सिर्फ सेवायत या संत खुद बनाते आराध्य की रसोई।

विपिन पाराशर, वृंदावन। साधकों की भूमि वृंदावन में भावसेवा का बड़ा महत्व है। मान्यता है कि भगवान भक्त की भावना के वशीभूत हैं, वैराग्य की इस धरती पर हर साधक अपने आराध्य को अपने भाव के आधार पर रिझाता है।
इसी भाव सेवा का एक रूप मंदिर और आश्रमों में दिखता है। यहां ठाकुर जी के तैयार होने वाली भोग की रसोई में किसी हलवाई का प्रवेश नहीं होता। मंदिरों में सेवायत और आश्रमों में साधु ही ठाकुर जी की रसोई तैयार करते हैं। ठाकुरजी की भोग सेवा भाव के रिश्तों से सजी है।
हर सेवा को मंदिर में सेवायत और आश्रमों में साधु करते हैं
विरागी बाबा आश्रम के महंत हरिबोल बाबा कहते हैं, वृंदावन में ठाकुर जी की भाव सेवा है, इसलिए ठाकुरजी की जो भी सेवा होती है, वह चाहे अंगसेवा, श्रृंगार सेवा, पूजन-पद्धति, हो या फिर भोगराग सेवा हर सेवा को मंदिर में सेवायत और आश्रमों में साधु करते हैं।
वह कहते हैं कि प्राचीनकाल में भी जो बड़े साधक रहे हैं, वे खुद अपने हाथ से ही ठाकुरजी की रसोई तैयार करते थे। यही परंपरा पड़ गई। इसके अंदर भावना ये छिपी है कि जब साधु या सेवायत अपने लड़ैते ठाकुरजी की रसोई तैयार करता है, तो उसके मन में ठाकुरजी के प्रति जो समर्पित भावना रहती है, वह समर्पण किसी बाहरी व्यक्ति या पैसे लेकर काम करने वाले हलवाई में नहीं हो सकती।
हलवाई को नहीं बुलाया जाता
यही कारण है, मंदिरों में सेवायत खुद अपने हाथ से ठाकुरजी के भोग की रसोई तैयार करते हैं, तो आश्रमों में केवल साधु ही रसोई तैयार करते हैं। खास बात ये भी है कि आश्रम में जब भी भंडारे होते हैं, तब भी हलवाई को नहीं बुलाया जाता, बल्कि अधिक संख्या में साधु एकत्रित होकर रसोई तैयार करते हैं। यही भोग ठाकुरजी को अर्पित करने के बाद भक्तों को परोसा जाता है, तो उसका स्वाद किसी भी हलवाई द्वारा तैयार भोजन से अधिक स्वादिष्ट और दिव्य होता है।
मंदिर की रसोई के अंदर बाहर का कोई व्यक्ति प्रवेश नहीं कर सकता है। सिर्फ सेवायत ही अंदर प्रवेश कर सकते हैं। वह भी केवल धोती पहनकर। एक बार अंदर जाने के बाद पूरा प्रसाद बनाकर ही बाहर आ सकता है। अगर किसी कारणवश बाहर जाना भी पड़े तो दोबारा अंदर प्रवेश के लिए फिर से स्नान करना पड़ेगा।-पद्मनाभ गोस्वामी, सेवायत: ठा. राधारमण मंदिर
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