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    Akshay Tritiya 2022: ब्रदीनाथ दर्शन का पुण्य चाहिए तो अक्षय तृतीया पर जरूर आएं बिहारी जी, ये रहती है विशेष बात

    By Tanu GuptaEdited By:
    Updated: Wed, 20 Apr 2022 08:58 AM (IST)

    Akshay Tritiya 2022 तीन मई को है अक्षय तृतीया का पर्व। पूरे वर्ष में अक्षय तृतीया पर होते हैं बिहारी जी के चरणाें के दर्शन। सोने-चांदी हीरे-जवाहरात के श्रृंगार के साथ आराध्य चंदन लेपन कर देंगे सर्वांग दर्शन।

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    अक्षय तृतीया पर इसी तरह से दर्शन देते हैं बिहारी जी। फाइल फोटो

    आगरा, जागरण टीम। अक्षय तृतीया पर तीन मई को सुबह ठा. बांकेबिहारी मोर, मुकुट, कटि-काछनी में तो शाम को चंदन लेपन कर सर्वांग दर्शन देकर दर्शन भक्तों को आल्हादित करेंगे। तो इसी दिन उनके चरणों का दर्शन भी भक्तों को होते है। साल में अक्षय तृतीया पर्व ही ऐसा दिन है, जबकि आराध्य के चरणों के दर्शन भक्तों को होते हैं। आराध्य के चरणों में खजाना है, इसका प्रमाण खुद बांकेबिहारी ने प्राकट्य के समय दिया। जबकि प्रतिदिन उनके चरणों में एक स्वर्ण मुद्रा मिलती थी। यही कारण है कि ठाकुरजी के चरणों के दर्शन कभी नहीं करवाये जाते। भक्तिकाल में स्वामी हरिदास ने प्रभु की साधना में लीन संतों का अक्षय तृतीया के दिन बद्रीनाथ दर्शन का पुण्य प्रदान करवाने के लिए ठाकुरजी के चरणों के दर्शन करवाए और उनका ऐसा श्रृंगार किया कि संतों को बद्रीनाथ के दर्शनों का पुण्य ठाकुरजी के चरण दर्शन में मिला। इससे संतों का ब्रज, वृंदावन छोड़कर न जाने के प्रण भी कायम रहा। तभी से मान्यता है कि अक्षय तृतीया पर बद्रीनाथ के दर्शनों का पुण्य भी मिलता है।

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    मंदिर सेवायत श्रीनाथ गोस्वामी ने बताया जब स्वामी हरिदास ठा. बांकेबिहारी से लाढ़ लड़ाते, तो सुध-बुध खो बैठते। भक्तिकाल में स्वामीजी खुद भी अपना गुजारा जैसे तैसे करते ऐसे में ठाकुरजी की सेवा की जिम्मेदारी भी आ गई। ठा. बांकेबिहारीजी अंतरयामी हैं, भाव समझे और हर दिन सुबह ठाकुरजी के चरणों में एक स्वर्ण मुद्रा मिलना शुरू हुई। स्वामीजी भी समझ गये और स्वर्ण मुद्रा से लाढ़ले ठाकुर की सेवा करते इसीलिए ठा. बांकेबिहारजी के चरणों के दिव्य दर्शन किसी को नहीं करवाए जाते हैं। भक्तिकाल में जीवन के अंतिम पड़ाव में पहुंचे लोग बद्रीनाथ समेत चार धाम की यात्रा करने जाते थे। जो लौटकर न आने का भाव भी रखते। अक्षय तृतीया के दिन बद्रीनाथ के पट खुलते हैं। वृंदावन में तपस्यारत संतों की इच्छा बद्रीनाथ दर्शन की हुई। स्वामी जी ने सोचा अगर अधिक संत वृंदावन से चले गये और न लौटे तो यह भूमि वीरान नजर आयेगी। उन्होंने संतों से प्रस्ताव रखा और ठाकुरजी के दिव्य चरणों और आकर्षक श्रृंगार कर बद्रीनाथ के दर्शन का पुण्य वृंदावन में ही दिलाने का भरोसा दिया। संतों ने स्वामीजी का प्रस्ताव मान अक्षयतृतीया पर दिव्य दर्शन किए। संतों को ऐसे विलक्षण दर्शन में बद्रीनाथ के दर्शन भी सुलभ हुए। तभी से परंपरा पड़ी कि अक्षय तृतीया पर ठाकुरजी के चरण दर्शन से बद्रीनाथ दर्शनों मिलने लगा।

    ये होता है ठा. बांकेबिहारी का श्रृंगार

    अक्षय तृतीया पर ठाकुरजी के दिव्य चरण व सर्वांग चंदन लेपन दर्शन होते हैं। जो कि श्रद्धालुओं के लिए दुर्लभ दर्शन है। ठाकुरजी के पूरे शरीर पर चंदन लेपन, लांघ बंधी धोती, सिर से पैर तक स्वर्ण श्रृंगार, सोने, हीरे और जवाहरात से जड़े कटारे, टिपारे, चरणों में चंदन का लड्डू ठाकुरजी के दर्शन को दिव्य बनाते हैं।

    पाजेब दान करने की है परंपरा

    ठा. बांकेबिहारी मंदिर में अक्षयतृतीया पर पाजेब अर्पित करने की परंपरा है। सेवायत श्रीनाथ गोस्वमी बताते हैं कि विवाह योग्य युवतियां अगर इस दिन आराध्य के चरणों में पाजेब दान करती हैं, तो उन्हें उसी साल में मनचाहा वर मिलता है और सुखी दांपत्य जीवन गुजारती हैं। हर साल दर्जनों युवतियां आराध्य के चरणों में पाजेब दान करती हैं।