थिरकते कदम नाप रहे आसमां
आगरा: ताजनगरी की नृत्य विधा की झकार विश्वपटल पर भी धूम मचा रही है। यहा कलाकार सिर्फ कलाकार हैं और कला के प्रति समर्पण ने संपूर्ण जीवन को ही नृत्यमय बना दिया है।
तनु गुप्ता, आगरा: इनके कदम जब थिरकते हैं, तो दुनिया भी साथ में झूम उठती है। पैरों के साथ मन की तरंगें झकृत हो जाती हैं। ताजनगरी की नृत्य विधा की यही झकार अब विश्वपटल पर भी धूम मचा रही है। यहा कलाकार सिर्फ कलाकार हैं और कला के प्रति समर्पण ने संपूर्ण जीवन को ही नृत्यमय बना दिया है।
काजल शर्मा
चार दशक से नृत्य साधना में तल्लीन काजल शर्मा कई वर्षो से विदेशी धरती पर कथक के प्रचार-प्रसार में जुटी हैं। दो दशकों से अधिक समय से वे लंदन में रहकर डांस स्कूल, मंच प्रस्तुति के माध्यम से इस विधा को विश्व पटल पर सम्मान दिला रही हैं। आगरा के गांधी नगर की इस बेटी ने छह साल की उम्र में नृत्याचार्य बाबूलाल के सानिध्य में कथक की यात्रा शुरू की थी। काजल ने फिर लखनऊ घराने के प्रसिद्ध गुरु लच्छू महाराज और बिरजू महाराज से भी नृत्य की बारीकियां सीखीं। ग्वालियर घराने के पं. गोपाल लक्ष्मण गुणे से गायन भी सीखा। उप्र संगीत नाटक अकादमी से संगीत कला रत्न पुरस्कार प्राप्त काजल वर्तमान में श्रीलंका, पाकिस्तान, जापान, चीन, इंडोनेशिया आदि के छात्रों को कथक सिखा रही हैं। संगीत में उनके योगदान को लंदन में भी सम्मानित किया गया। शशायर स्टेट पुरस्कार उन्हें वहां की सरकार से मिल चुका है।
धीरेंद्र तिवारी
कहा जाता है कि नृत्य सीखने की शुरुआत छोटी उम्र से ही करनी चाहिए, तभी नृत्य में पारंगत हुआ जा सकता है, लेकिन इस सोच से इतर युवावस्था में कथक नृत्य की दुनिया में कदम रखने वाले धीरेंद्र तिवारी आज पूरी दुनिया में भारतीय नृत्य विधा का परचम लहरा रहे हैं। नामनेर निवासी धीरेंद्र मूलत: वेस्टर्न डासर थे। एक प्रतियोगिता में कथक गुरु रुचि शर्मा से मिले और कथक सीखने की इच्छा जाहिर की। 19 साल के उस युवा का कथक के प्रति रुझान देखकर रुचि ने उनके साथ मेहनत शुरू कर दी। धीरेंद्र के पिता रेलवे में कार्यरत थे और परिवार में कोई भी कलाकार नहीं था। बावजूद इसके धीरेंद्र ने अपनी मेहनत जारी रखी। आज देश के कई महोत्सवों में अपनी कला का रंग जमाने के साथ- साथ धीरेंद्र करीब 49 देशों में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर चुके हैं। इंटरनेशनल कलाकारों का परिचय यूरोप में कराने वाले एक प्रोडक्शन हाउस ने ताज नगरी के धीरेंद्र का परिचय भी कराया है। धीरेंद्र अपने शिष्यों को भी विश्वपटल पर पहचान दिलाने में सहायता कर रहे हैं। वे सीनियर आर्टिस्ट कुमुदनी लाखिया की संस्था कदंब के लिए भी कार्य कर चुके हैं। फ्री स्टाइल परफॉर्मर धीरेंद्र अब कथक केंद्र दिल्ली के वरिष्ठ गुरु पंडित राजेंद्र गंगानी के शिष्य हैं।
देवेंद्र शर्मा
कमला नगर निवासी देवेंद्र शर्मा की पारिवारिक पृष्ठभूमि सेना की होने के बावजूद उन्होंने नृत्य को अपने लिए चुना। 26 वर्ष की उम्र में सात देशों में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके हैं। कतर हो या केन्या, सभी देशों में अपने घुंघरुओं की झनकार से पहचान बनाने वाले देवेंद्र 19 वषरें से कथक सीख रहे हैं। वे लखनऊ घराने के कलाकार हैं। मा और दादी की प्रेरणा से देवेंद्र मुंबई में नूतन पटवर्धन, संगीत नाटक एकेडमी सम्मान प्राप्त डॉ.दिव्या शर्मा और पद्श्री पद्म भूषण डॉ.उमा शर्मा से नृत्य की शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं। शिक्षा ग्रहण का यह सफर आज भी जारी है।
टोनी फास्टर
शाहगंज निवासी ब्रेक डांसर टोनी फास्टर बीते तीन दशकों से नृत्य जगत को समर्पित हैं। गायक बाबा सहगल को अपनी उंगली पर नचाने वाले टोनी फिल्म फेयर अवार्ड में भी बतौर डासर परफोर्म कर चुके हैं। करीब आठ साल कलाकृति में अपनी सेवाएं दीं। दिल्ली निवासी गुरु मोहम्मद अली के शिष्य टोनी माया नगरी मुंबई में एक जाना पहचाना नाम हैं। टोनी के शिष्य मधुर मित्तल वर्तमान में हॉलीवुड की फिल्मों मे अपना नाम कमा रहे हैं।
दीक्षा त्रिपाठी
नामनेर निवासी दीक्षा त्रिपाठी अपने गुरु धीरेंद्र तिवारी और राजेंद्र गंगानी की ही तरह विश्व मंच पर पहचान बना रही हैं। 24 वर्षीय कथक नृत्यांगना दीक्षा देश के प्रमुख उत्सवों के अलावा विदेशी धरती पर भी अपना नाम रोशन कर चुकी हैं। दीक्षा जयपुर घराने की नृत्यागना हैं।
अंजना और दीप्ति
छोटे से कस्बे एत्मादपुर से निकल कर अंजना कुमारी सिंह और दीप्ति गुप्ता ने कई देशों में अपनी कला का प्रदर्शन किया है। 24 वर्षीय दोनों नृत्यागना वर्तमान में दिल्ली में रहकर कथक नृत्य की तालीम ले रही हैं।
व्हीलिंग एंजल्स
कमला नगर निवासी कोरियोग्राफर पूजा गुप्ता नृत्य विधा में नये प्रयोग कर अपना नाम तीन बार गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज करा चुकी हैं। शुरुआत उनकी बेटी पल गुप्ता ने स्केटिंग पर 1.25 घटा तक कथक करके की थी। इसके बाद 16 बालिकाओं के साथ डास क्वीन्स ऑन व्हील्स के नाम से स्केटिंग पर 1.55 घटा तक प्रस्तुति और स्केटिंग पर कथक के 2000 चक्कर लगाने के रिकॉर्ड दर्ज हैं।
नृत्य शोध से किया आंखों के भेंगेपन का इलाज
दयालबाग विश्वविद्यालय के संगीत विभाग में प्रोफेसर डॉ. नीलू शर्मा ने तीन बालिकाओं पर नृत्य में शोध के दौरान आंखों के भेंगेपन, हकलाना और टेढ़ी चाल को दूर किया है। दो वर्ष तक किए गए प्रयोग को सफलता मिली मार्च 2017 में। पहला प्रयोग एक बालिका के हकलानेपन पर किया। जिसे दूर करने के लिए पढंत के बोल समूह बनाए। बालिका में आत्मविश्वास इतना आया कि उसकी बोली साफ हो गई। दूसरा प्रयोग टेढ़ी मेढ़ी चाल पर किया था। कथक नृत्य में होने वाली पैरों की एक्सरसाइज को रचनात्मक प्रक्रिया के माध्यम से ठीक किया। इसके बाद तीसरा प्रयोग आंखों के भेंगेपन पर था। अलग- अलग प्रकार के दृष्टिभेद और हस्त संचालन की समनवित प्रक्रिया के माध्यम से एक्सरसाइज तैयार कीं। वर्तमान में डा. नीलू नृत्य के माध्यम से आंखों की रोशनी पर शोध कर रही हैं।
डांस कई मर्ज की दवा
वरिष्ठ फिजिशियन डॉ. अतुल कुलश्रेष्ठ कहते हैं कि जरूरी नहीं कि नृत्य में पारंगत होने वाले ही डांस करें। आम व्यक्ति भी यदि प्रतिदिन कुछ देर डांस करें, तो सेहतमंद रह सकते हैं। युवा मधुमेह रोगियों को तो चिकित्सक विशेष रूप से डांस करने के लिए कहते हैं। डांस स्वीमिंग जितनी ही बेहतरीन एक्सरसाइज है। इससे हड्डियों में लचीलापन आता है। स्पाइन कर्वेचर असमान्य से सामान्य होने लगते हैं और रीढ़ की हड्डी में स्ट्रेटनिंग होती है, इससे लड़कियों की वर्चुअल हाइट बढ़ जाती है। मोटापे से संबंधित अधिकांश बीमारियां, पीसीओडी बहुत हद तक ठीक हो जाती है। योगा की तरह ही डांस में एकाग्रता बढ़ती है और मानसिक तनाव को दूर रखता है। प्रतिदिन कोई बच्चा यदि दो घंटे पढ़ाई के बाद 15 मिनट डांस करे, तो क्लास में उसकी परफॉर्मेस बेहतर हो जाएगी।
अकादमी शिक्षा में शामिल हो नृत्य
लंबे समय से नृत्य को अकादमी शिक्षा में शामिल करने की मांग शहर के कलाकार करते रहे हैं। कथक गुरु रुचि शर्मा के अनुसार क्लासिकल डास को यदि उत्तर भारत में भी दक्षिण भारत की तरह शामिल कर लिया जाए, तो स्थिति बहुत हद तक सुधर सकती है। अभी तक लोग नृत्य को सिर्फ शौक की भांति ही लेते हैं। यदि शिक्षा में बतौर विषय नृत्य होगा, तो इसमें करियर ऑप्शन भी बढ़ जाएंगे। शहर में एक परर्फोमिंग इंस्टीट्यूट की बहुत जरूरत है।
व्यक्तित्व निखार लाता है नृत्य
कथक गुरु रमन सिंह धाकड़ के अनुसार नृत्य व्यक्तित्व में निखार लाता है। कथक नृत्य में होने वाली वंदना, ठुमरी कलाकार को ईश्वर से जोड़ती हैं। सभी ठुमरी कृष्ण और गोपी पर आधारित हैं। कलाकार नृत्य के दौरान खुद को कभी कृष्ण, तो कभी गोपी के रूप में प्रस्तुत करता है। अध्यात्म और नृत्य का बहुत गहरा रिश्ता है। जब हम भक्तिमय संगीत सुनते हैं तो कदम अपने आप थिरकने लगते हैं और मन को एक असीम आनंद का अनुभव होता है।
डास टिप्स
- छोटी उम्र में क्लासिकल डास में बच्चे को जबरदस्ती न ढकेलें। थोड़ी समझदारी आने दें।
- नृत्य क्षेत्र में धैर्य होना और सही मार्गदर्शन मिलना बहुत जरूरी है।
- खाने पीने पर शुरू से ध्यान दें। फिजिकल एक्सरसाइज के बाद अच्छी खुराक जितनी जरूरी होती है उसी तरह डास के बाद भी अच्छा खान पान जरूरी है।
- तुलना न करें सबकी काबिलियत अलग होती है।
- टीवी की चकाचौंध पर न जाएं, कला को अपनी आत्मा से जोड़ें।
यूं हुई थी विश्व नृत्य दिवस की शुरुआत
29 अप्रैल पूरी दुनिया में विश्व नृत्य दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसकी शुरुआत 29 अप्रैल 1982 से हुई थी। बैले के शेक्सपियर की उपाधि से सम्मानित एक महान लेखक जीन जॉर्ज नावेरे के जन्म दिवस की याद में यूनेस्को के अंतरराष्ट्रीय थिएटर इंस्टीट्यूट की डास कमेटी ने 29 अप्रैल को नृत्य दिवस के रूप में स्थापित किया था। जीन जॉर्ज नावेरे ने 1760 में लेटर्स ऑन द डास नाम से एक किताब लिखी थी, जिसमें नृत्य कला की काफी बारीकिया थीं। इसके बाद उन्होंने किताब लेट्स मीट द बैले को लिखा था।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।