बकरी बैलून से बचाएं बच्चेदानी
आगरा: बच्चेदानी में बकरी बैलून (डिवाइस) का इस्तेमाल करने के साथ टांके लगाकर रक्तस्राव रोका जा सकता है। ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, आगरा: प्रसव के बाद अत्यधिक रक्तस्राव (पोस्ट पॉर्टम हेमोरोज, पीपीएच ) में बच्चेदानी निकाली जा रही है। इसे बचाया जा सकता है। बच्चेदानी में बकरी बैलून (डिवाइस) का इस्तेमाल करने के साथ टांके लगाकर रक्तस्राव रोका जा सकता है। इसके लिए स्त्री रोग विशेषज्ञों को प्रशिक्षण लेने के साथ अनुभव भी होना चाहिए।
गुरुवार को होटल रमाडा में एसएन के स्त्री रोग विभाग, आगरा ऑब्स एंड गायनिक सोसायटी (एओजीएस) द्वारा आयोजित यूपी चैप्टर ऑब्स एंड गायनिक की कार्यशाला में क्रिटिकल केस के मैनेजमेंट पर चर्चा की गई। डॉ. साधना गुप्ता, गोरखपुर ने पीपीएच में बकरी बैलून के इस्तेमाल का डमी पर प्रशिक्षण दिया। उन्होंने बताया कि इसकी मदद से प्रसव के बाद रक्तस्राव की रोकथाम संभव है। इस तरह पीपीएच के केस में बच्चेदानी को निकालने की जरूरत नहीं पड़ती है। डॉ. किरन पाडे, कानपुर ने कहा कि 18 फीसद गर्भवती में जेस्टेशनल डायबिटीज (गर्भकालीन मधुमेह) होती है। इसे कंट्रोल न करने पर गर्भस्थ शिशु का वजन बढ़ जाता है, इससे सिजेरियन डिलीवरी और समय पूर्व प्रसव हो सकता है।
आयोजन सचिव डॉ. रिचा सिंह ने बताया कि उच्च वर्ग की महिलाएं भी एनीमिया की शिकार हो रही हैं। प्रसव के दौरान 20 फीसद मृत्यु का कारण खून की कमी है। भारत में 40 फीसद महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं। फोग्सी की अध्यक्ष डॉ. जयदीप मल्होत्रा ने कहा कि भारत में 82 फीसद प्रसव हॉस्पिटल में हो रहे हैं, इसके बाद भी एक लाख प्रसव पर 167 मौत हो रही हैं। यह चिंता का विषय है।
कार्यशाला का शुभारंभ पदमश्री डॉ. ऊषा शर्मा, चेयरपर्सन एसएन की प्राचार्य डॉ. सरोज सिंह ने किया। कार्यशाला में देश भर के 400 से अधिक प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। पीजी स्टूडेंट द्वारा 30 शोध पत्र भी प्रस्तुत किए गए। सोविनियर का विमोचन किया गया। इस दौरान प्रो. मीना दयाल, प्रतिमा मित्तल, डॉ. संध्या अग्रवाल, डॉ. वरुण सरकार, डॉ. मुकेश चंद्रा, डॉ. निधि गुप्ता, डॉ. शिखा सिंह, डॉ. सुधा बंसल, डॉ. अलका सारस्वत, डॉ. सविता त्यागी, डॉ. मधु राजपाल, अनु, डॉ. मीनल, डॉ. रचना, डॉ. पूनम, डॉ. उर्वशी, डॉ. रुचिका, डॉ. रेखा, डॉ. अभिलाषा, डॉ. संधि जैन आदि मौजूद रहे।
नसबंदी करने वालों को किया जाए प्रोत्साहित
चार लाख नसबंदी कर चुकी पदमश्री डॉ. उषा शर्मा, मेरठ ने बताया कि उन्होंने अलीगढ़ में एक दिन में 611 नसबंदी की थी। उन्हें नसबंदी के लिए ही पद्मश्री से सम्मानित किया गया। जम्मू कश्मीर में एक सप्ताह में नसबंदी के 900 ऑपरेशन किए थे। मगर, अब नसबंदी कम हो रही हैं। डॉक्टरों को प्रोत्साहित करना चाहिए, जिससे नसबंदी के केस बढ़े और जनसंख्या पर नियंत्रण के साथ महिला स्वास्थ्य का भी ध्यान रखा जा सके।

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