Agra Metro: आरबीएस कॉलेज से मन:कामेश्वर मेट्रो स्टेशन तक जल्द चलेगी ट्रेन, ट्रैक वेल्डिंग का काम पूरा
आगरा में यूपीएमआरसी ने आरबीएस रैंप से मनःकामेश्वर मेट्रो स्टेशन तक ट्रैक वेल्डिंग का काम पूरा कर लिया है। 4.5 किमी लंबी सुरंग में बने चार स्टेशन तैयार हैं, जहाँ दिसंबर से मेट्रो का परीक्षण शुरू होगा और फरवरी के दूसरे सप्ताह से ट्रेनों का संचालन शुरू होने की संभावना है। शहर में 30 किमी लंबे मेट्रो कॉरिडोर का निर्माण हो रहा है, जिसमें से 11 किमी पूरा हो चुका है।

आगरा में मेट्रो ट्रैक को तैयार करते कर्मचारी।
जागरण संवाददाता, आगरा। उप्र मेट्रो रेल कारपोरेशन (यूपीएमआरसी) ने आरबीएस रैंप से मन:कामेश्वर मेट्रो स्टेशन तक ट्रैक वेल्डिंग का कार्य पूरा कर लिया है। साढ़े चार किमी लंबी टनल में चार स्टेशन बनाए गए हैं।
एसएन मेडिकल कालेज, आगरा कालेज, राजा की मंडी और आरबीएस मेट्रो स्टेशन बनकर तैयार हो गए हैं। दिसंबर के अंतिम सप्ताह से इन स्टेशनों में मेट्रो का परीक्षण शुरू होगा। फरवरी के दूसरे सप्ताह से ट्रेनें चलेंगी।
औसत गति 40 किमी प्रति घंटा होगी। अधिकतम गति 90 किमी होगी। शहर में 30 किमी लंबा मेट्रो कारिडोर बन रहा है। अब तक 11 किमी कारिडोर बनकर तैयार हो गया है। बाकी 19 किमी पर कार्य चल रहा है।
फतेहाबाद रोड की तरह ही मेट्रो के बाकी हिस्से में तीसरे रेल लाइन से बिजली की आपूर्ति की जाएगी। अप और डाउन लाइन पर सिग्नलिंग सहित अन्य कार्य अंतिम चरण में चल रहे हैं। अब आइएसबीटी से सिकंदरा खंड पर यूपीएमआरसी टीम द्वारा फोकस किया जा रहा है।
संयुक्त महाप्रबंधक जनसंपर्क पंचानन मिश्र ने बताया कि रेलवे की तुलना में मेट्रो प्रणाली में पटरियों पर गाड़ियों का आवागमन अधिक होता है, यहां मेट्रो रेल औसतन पांच मिनट के अंतर पर चलती हैं।
ऐसे में तेजी से ट्रेन की स्पीड पकड़ने और ब्रेक लगाने की स्थिति में ट्रेन के पहिये और पटरी के बीच अधिक घर्षण होता है। जिसके कारण सामान्य रेल जल्दी घिस सकती है जिससे पटरी टूटने, क्रैक की समस्या आ सकती है।
हेड हार्डेंड रेल के अधिक मजबूत होने के कारण ऐसी कोई समस्या नहीं आती है। उन्होंने बताया कि भूमिगत भाग में ट्रैक बिछाने के लिए सबसे पहले क्रेन की मदद से आटोमेटिक ट्रैक वेल्डिंग मशीन को शाफ्ट में पहुंचाया जाता है।
इसके बाद पटरी के भागों को वेल्डिंग के जरिए जोड़कर लांग वेल्डिड रेल बनाई जाती है। इसके बाद टनल में ट्रैक स्लैब की कास्टिंग कर उस पर लांग वेल्डिड रेल बिछाई जाती है।
ऐसे होता है अंडरग्राउंड ट्रैक का निर्माण
अंडरग्राउंड मेट्रो निर्माण के लिए सबसे पहले स्टेशन का निर्माण किया जाता है। स्टेशन का ढांचा तैयार होने के बाद लाचिंग शाफ्ट का निर्माण कर टनल बोरिंग मशीन (टीबीएम) लांच की जाती है। टीबीएम के जरिए गोलाकार टनल बनकर तैयार होती है।
टनल का आकार गोल होने के कारण सीधे ट्रैक बिछाना संभव नहीं है, इसलिए यहां ट्रैक स्लैब की कास्टिंग की जाती है। इसके बाद इसी समतल ट्रैक स्लैब बैलास्टलेस ट्रैक बिछाया जाता है। बैलास्टलैस ट्रैक निर्माण के दौरान कांक्रीट बीम पर पटरियों को बिछाया जाता है।

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